बुधवार, 7 अप्रैल 2021

1999 A Love Story अ लव स्टोरी

ये बात 1999 की है,

हम 8वी कक्षा पास कर चुके थे और नवी में ,नई स्कूल में एड्मिसन की तैयारी थी।

आप कह सकते हैं कि इतनी पुरानी बात क्यों निकाली गई।

क्या है कि जब वर्तमान जिंदगी घिसी सी, बुझी सी, एक जैसी लगने लगती है तो हम अक्सर कोई पुराना किस्सा, या याद में सुख तलाशने लगते है, कि ,कभी जिंदगी हम पर भी मेहरबान थी।

हम 10,12 दोस्त लोग बचपन से ही घर के पास वाली इंग्लिश मीडियम स्कूल में जाते थे। इंग्लिश मीडियम स्कूल की ख़ासियत होती है कि वहां जाके आप अपनी हिन्दी खराब कर देते हैं और इंग्लिश का तो...

खेर छोड़िये।

इंग्लिश मीडियम स्कूल को मारवाड़ी मीडियम बनाने में हमने कोई कसर न छोड़ी।

अच्छी बात ये थी कि हमारी कोहेड स्कूल थी ,लडकिया साथ थी और बुरी बात ये की लड़कियों के पास बैठना या उनसे टच हो जाने वाले को अछूत का सर्टिफिकेट दे दिया जाता था। 

6,7 दिन दोस्त लोग बात नही किया करते थे, कुछ लात,घुसे और ठोले मारने के बाद ही इस पाप से मुक्त हुवा जा सकता था

अब हम आठवी पास कर चुके थे, ये स्कूल आठवी तक की ही थी।नवी क्लास में हमें माहेश्वरी स्कूल में डाल दिया गया।

क्यूँ?

क्योंकि कुछ दोस्तों को उनके पिताजी ने ,उस स्कूल में भेजने का निश्चय कीया।

अपने बच्चे की समझ के अलावा ,माँ बाप को क्लास के सारे बच्चो की समझ पे भरोशा होता है

खैर।।

हम दोस्त लोग 14,15 साल की उम्र के थे। एक ,दो, के बकरी की तरह हल्की दाढ़ी और मूछे उगने लगी थी, जैसे नई घास, जमीन से निकलती हुई प्रतीत होती है।

हम बचपन से इतने साथ रहे थे, कि दोस्त ,भाई जैसे हो गये थे।

ये वो उम्र थी, जब लगता था कि सूरज आप ही के लिए उगता है और चांद तारे आपके चारो तरफ ही चक्कर लगाते हैं।

आप सबसे खास व्यक्ति है और ईश्वर पूरे दिन बस आप ही का ध्यान रखने में व्यस्त रहते है।

पहली बार तोते पिंजरे से आज़ाद हो रहे थे। हुकसा, जो हमारे टेम्पो ड्राइवर थे ,बड़े मन मोजी, मस्त मोला इंसान थे, वो हम सबको इक्कठा कर, टेम्पो में भर कर ले जाते थे।

नये नये चार टायर वाले मिनीडोर टेम्पो शुरू हुवे थे।

दाग द फायर के तेज आवाज में गाने - दिल दीवाना ना जाने कब हो गया।।।।हमें दीवाना बना रहे थे।

महेश्वरी स्कूल इंग्लिश मीडियम तो थी, पर कोहेड स्कूल न थी।

पहला दिन ,स्कूल के सामने ही सोहन लाल मनिहार (sms;लड़कियों की स्कूल), हज़ारो की तादात में लड़कियां।

 हमारे पुरानी स्कूल में भी लडकिया काफी सुंदर थी, पर इस बार इनको देख कर हमारे हृदय की केमिस्ट्री में जो बदलाव महसूस हो रहे थे, वो अद्भुत थे।

उनको देख हमारे होठ कब स्माइली से हो जाते थे, पता न चलता था।

अच्छी बात ये थी कि चेहरे बदलते जाते थे पर हमारी भावनाएं तठस्थ थी।

मैं ओर मेरे जैसा ही साथी ओंकार जब इन लड़कियों को देख कर, आपस मे आंखे मिलाते थे तो एक दूसरे की खुशी ,आंखों में देख पाते थे।

आंखे भी होती हैं दिल की ज़ुबान…।

यश चोपड़ा और शाहरूख की फिल्मों का रोमांस कितना realism पे आधारित है, ऐसी भावनाओ के बाद ही आप समझ सकते है।

हमें जिंदगी के कुछ अद्भुत ज्ञान से परिचय इसी उम्र में हुआ।

सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखता हैं, ये कहावत हमें पूर्ण रूप से अब ही समझ आयी थी।

बहुत कम उम्र में इकोनॉमिक्स का सबसे बड़ा सिंद्धांत समझ आया कि, डिमांड और सप्लाई कैसे आप को प्रभावित करते हैं।

इंटरवल टाइम में प्याऊ के पास खड़े होके, लड़कियों को निहारते हुवे, मां के हाथ के खाने का स्वाद ही अद्भुत लगता था।

सालो साल हमने पराठे और कैरी का अचार ही खाया था, ज्यादातर टिफिन में यही आता था, हमें कभी कोई शिकायत नही हुई।

स्कूल जल्दी पहुंचना, इंटरवल में लगातार गर्दन घुमाये एक दिशा में देखना, छुट्टी में फिर उसी स्कूल को देखना, श्रद्धा और भक्ति में एक योगी की क्या दशा होनी चाइये, उसके हम उदाहरण थे।

 हम अपने लक्ष्य को लेके इतने तल्लीन थे कि पढ़ाई पे हमारा ज़रा भी ध्यान न था।

बस मुश्किल ये थी कि पहले दिन का चेहरा हमें अगले दिन याद न रहता था।

पर जो भी सुंदर व मासूम चेहरा हमारे सामने पड़ता ,हम उसे उसी श्रद्धा व प्यार से निहारते थे। भेदभाव के हम पक्षधर न थे।

क्लास से भी बाहर लडकिया दिखती थी ; क्योंकि उनकी स्कूल रोड पार कर सामने ही थी।

वैज्ञानिक बनने की दिशा में कदम उठाते हुवे हम कही से आईना ले आये, रिफ्लेक्शन व रिफ्रैक्शन की थ्योरी पे बहुत काम किया पर सफलता हाथ न लगी।

वो वक़्त ऐसा रहा कि कुछ तरंगे, भावनाएं हमारे आसपास तेर रही हो, स्वर्ग का सा माहोल हो जैसे। जैसे जोधपुर में मनाली उत्तर आया हो। जबकि हमने मनाली के वादियों के बारे में सिर्फ सुना था,पर इश्क़ शायद वादियों जैसा ही खूबसूरत होता है।

संत रैदास जी ने सही फरमाया - मन चंगा तो कटौती में गंगा।

हमारी ऐसी श्रद्धा से भगवन प्रशन्न कैसे न होते।

और विज्ञान मेले का महेश हिंदी मीडियम स्कूल में शुभारंभ हुवा।

पूरे जोधपुर प्रदेश से लड़के लड़कियां इसमें भाग ले रहे थे.

हमे हमारी स्कूल की यूनिफार्म सबसे सुंदर लगती थी, सुथिंग ब्लू पेंट पर स्काई ब्लू विद वाइट लाइनिंग का शर्ट बड़ा फबता था।

पर आज येलो शर्ट,रेड फ्रॉक वाली स्कूल ड्रेस हमे बड़ी आकर्षित कर रही थी।

पूरी क्लास को विज्ञान मेला देखने को बोला गया। सीढिया चढ़ जब हम उस हाल में पहुंचे, आंखों की जैसे प्यास बुझ गयी। भक्त को जैसे भगवान का साक्षात्कार हुवा।

एक सूरत भक से हृदय में उतर गई। मासूम सा चेहरा,हमारी ही उम्र की 14,15 साल की लड़की, घुंघराले बाल, वही रेड ,येलो मिक्स ड्रेस।माधुरी दीक्षित सी

माधुरी दीक्षित पे फिर प्यार उमड़ आया।

फिर से?

हुवा यूं कि मेरे एक दोस्त ,जीतू जैन ने एक दिन मुझे कहा -बिना कपड़ों के लड़किया देखनी हैं। मेने ईमानदारी से 'हां' में सर हिला दिया। मेने पूछा कोनसी लड़की, उसने कहा बहुत सारी.

 मुझे लगा, ये जैन है, अमीर ही होगा, हम दोनों कुर्शियों पे बैठे होंगे और लड़कियां आस पास घूमेगी, हमें रिझायेगी। और क्या पता में किसी को छू भी पाऊँ।

बड़ी उम्मीदें लिए में गया, हम कुर्सी पे भी बैठे पर वो साइबर कैफे था, नए नए शुरू हुवे थे, में पहली बार ही गया और उसने देसीबाबा।कॉम नाम की साइट खोली, उसमे माधुरी को देखा।

उत्साह और तकलीफ दोनों थी। जिस माधुरी को हम प्यार करते है वो किसी के साथ ऐसा कैसे कर सकती है।

खैर

वो लड़की माधुरी दीक्षित सी लगी मुझे। और प्यार हो गया।

हम्म........

पीछे मुड़ के देखा तो ओंकार की आंखों में भी मूरत उत्तर आयी थी।

दोनों भाई साथ बेठे, दोनों की हालत एक सी थी। दोनों का भगवान एक था।

भगवान तो एक ही होता है।

अब दोनों ने नाम पता करने की ठानी। पर नेम प्लेट जहां ,टांग रखी थी उसे देखने की सीधी हिम्मत न थी।

मुझे हमेशा आंखों में देख के ही प्यार हुवा है, शरीर पे मेरी कभी निगाह न गयी। आंखों से पीना ही मुझे आता था। भाव हिलोरे लेने लगते थे। मन पंख सा हल्का हो उड़ने लगता था। मुझमे ऐसे ही प्यार की भूख थी।

बार बार उसके पास जाना, उससे बात करना, उसकी, हां जी ,हां जी, सुनना।

कोयल सी आवाज़ क्या होती है।प्रेम में ये उपमायें क्यों दी जाती है। सब समझ आ रहा था।

हम भाषाविद हो रहे थे।

उसका नाम 'रक्षा' था। वो भी हमें देख के कभी कभी हल्की सी हंसती थी पर अपनी हंसी संभाल लेती थी।

उसको पता था कि हम दोनों उसके पास आयेंगे, और उसकी सहेलियों को भी पता लगने लगा था।

मोहब्बत छुपाये नही छुपती साहब।

उस विज्ञान मेले में उसके प्रोजेक्ट के अलावा क्या क्या था, हमें आज भी याद नही पड़ता.

जब मौका लगता, हमारे पैर उसकी तरफ चल पड़ते थे।

सुख के क्षण मिनटों में गुजर जाते है, वो 3 दिन कब निकले पता ही न चला।

इंटरवल में बाहर आये तो पता चला कि रक्षा को फर्स्ट प्राइज मिला था और कुछ देर पहले वो चली गयी।

जिस समय ये खबर मिली हम समोसे खा रहे थे।

यकीन मानिये हमारा मन बहुत दुखी था, दिल टूट गया हो जैसे।ऐसी अवस्था मे भी हमें समोसे का स्वाद बराबर आ रहा था।

अपने अनुभव से ही इस सत्य की प्राप्ति होती है कि शरीर और मन अलग अलग होते है.

हम क्लास में गये और उसकी याद में नई कलर की गई बेंच पर R।S। लिख , आहें भरने लगे.

आँखे बंद करते तो उसका चेहरा और आवाज़ का प्रयत्क्ष दर्शन होने लगता.

हम वियोग में इतने व्याकुल थे कि अपनी टेबल के अलावा और भी टेबल पर इश्क़ जाहिर करने लगे।

हमें तब रुकना पड़ गया जब हमारी चाहत की वजह से दोस्त रोहित शर्मा को मार पड़ने लगी।

हाफ इयरली एग्जाम हुवे और हम अच्छे नंबरो से फेल हुवे।

में इंटेलीजेंट बच्चा था और ये सदमा मेरे लिए भारी था।

घर आते ही तेज़ आंसुओ की धारा बह निकली। घर वालो ने रिपोर्ट कार्ड देखा पर कुछ नही बोला, हौसला ही बढ़ाया।

पर आंशू न रुके और मुझे लता जी के डीप गाने का भी अर्थ समझ आया..

जो मैं जानती कि प्रीत करे दुःख होए

तो नगर ढिंढोरा पीटती कहती

प्रीत ना करियो कोई

हमारी मोहब्बत मुकम्मल तो न हुई, पर प्यार के निशां आज भी उन क्लास की बेंचो पर जरूर होंगें।

बस कुछ नाम बदल गए होंगे और कुछ चेहरे।

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