बुधवार, 7 अप्रैल 2021

नागमणी

 सन 1940 ; आज चांदनी रात उगम कंवर को खाये जा रही थी। गांव की प्रकृति, सुंदर आसमान , मन मोहने वाला चंद्रमा सब उसके कलेजे पे कटारी से चल रहे थे।पति परमेश्वर राजाओं की फौज में थे और उनको देवलोक हुए एक महीना हो चुका था।चार आने की पेंशन भी मिलनी शुरू हो गयी। पर एक बिटिया और तीन लड़के, कैसे इनका लालन पालन होगा। बिटिया के हाथ पीले कैसे होंगे, सोच सोच कर उगमा का मन बैठे जा रहा था।


आज गर्मी और लू के थपेड़ो ने घर के खुले आंगन में सब जनानियो को सोने पर मजबूर कर दिया। नही तो रोज सब झोपड़ी या शाळ में ही सोते थे। जेठसा ठाकर साहब और घर के और पुरुष कोल्डी के बाहर माचे लगा के सो गए थे, इससे जनानियो को और आराम हो गया।


सब गहरी नींद में सोये थे । अब रात भी ठंडी हुवे जा रही थी पर उगमा के मन मे बवंडर उठा हुआ था। मन ही मन हाथ जोड़ राम जी का नाम सुमिरन करने लगी।


थोड़ी देर में आंख खुली तो साळ प्रकाशमान थी। इतना तेज प्रकाश की किवाड़ के कुंडे भी साफ दिख रहे थे। पास में सोये भाभीसा व अन्य औरतों को जगाने लगी तो सब बेसुध से पड़े थे। काफी हिलाने डुलाने पर भी सब अचेत पड़े थे।


पुरुषों की तरफ इस समय जाना सही न लगा। थोड़ा कलेजा मजबूत कर उगमा ने साळ का दरवाजा खोला। एक घोटवा पैसा जो अभी के एक रुपये के सिक्के से चार गुना बड़ा होता था, उसके आकार की, रत्न सी कोई वस्तु चमक रही थी।


उगमा ने जैसे ही उसे हाथ मे लिया। हथेलि की लकीरें और नाखूनों के नीचे की मांशपेशियां भी स्पष्ट दिखाई देने लगी। एक पल को उगमा शून्य सी हो गयी। ऐसी वस्तु उसने कभी न देखी थी। घबरा के उसने वो चमकती वस्तु फेंक दी। फेंकते ही प्रकाश का भी लोप हो गया।


वो वापस आके चुपचाप लेट गयी। कुछ देर में उगमा को घबराहट सी होने लगी, उसने फिर से भाभीसा को चेताया तो वो उठ खड़े हुए। सारी बात सुनने के बाद भाभीसा ठाकुर साहब को भी बुला लायी।


ठाकुर साहब ने बताया ये नागमणी हो सकती थी। प्रभु कृपा से स्वत ही किसी अधिकारी के पास चली आती हैं। सालों में कोई एक घटना ऐसी सुनने को मिलती हैं।


बहुत खोजने पर भी मणी न मिली।


ठाकुर साहब - बीनणी ये तुमने क्या किया। न त्यागती तो पूरे कुटुम्ब के भाग्य खुल जाते।


उगमा मन ही मन बोली ,शायद राम जी की यही इच्छा थी। एक सकारात्मक ऊर्जा से उगमा ओत प्रोत हो गयी। मैं अपने बच्चो का पालन पोषण अब पूरे जतन से करूँगी।



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