बुधवार, 7 अप्रैल 2021

Love ( लव)

किसी शायर ने क्या खूब कहा हैं -" दिलो की बात करता हैं ज़माना और मोहब्बत आज भी चेहरो से शुरू होती हैं"

पहली बात हम समझे कि "दिल" क्या है। दिल एक उर्दू शब्द हैं जिसे हिंदी में हृदय या मन कहते हैं।

संस्कृत में मन व हृदय पर्यायवाची शब्द हैं, जिसका मूल अर्थ हैं, शरीर के परे ,कुछ गहरा, आपके अंतर तक। ऐसे ही अंतर्मन या अंतरात्मा जैसे शब्द हैं।

सीने की धड़कन वाली मशीन जिसे हार्ट कहते हैं वो हृदय, मन, या दिल नही हैं। आप आज हार्ट बदलवा भी सकते हैं और भविष्य में शायद मैकेनिकल या इलेक्ट्रॉनिक हार्ट भी आ जाये जो आपकी आयु को और बढ़ा दे।

आपको ये जानकर भी शायद हैरानी होगी की महाभारत काल से पहले और उस वक़्त तक "प्रेम" शब्द अस्तित्व में ही न था।

खोज करने पर प्रेम के सबसे नजदीक जो शब्द आता हैं ,वह हैं "श्रद्धा"।

गुरु में, मित्रता में, या किसी नर नारी में श्रद्धा हो जाती थी। ये श्रद्धा बहुत शंकाओं और कशोटी पर खरे उतरने के बाद किसी व्यक्ति विशेष पे होती थी।

सिर्फ किसी के रूपवान होने पर ही उसमें श्रद्धा स्थापित नही हो जाती थी। मतलब की हम अंधे और मूर्ख नही थे। हम श्रद्धा शब्द के दास नही थे।

पर जब से बॉलीवुड ने विशेष तौर पर और फिर कुछ झूठे साधु, सन्याशी बने लोगो ने " प्रेम" शब्द का जमकर इस्तेमाल किया, तब से प्रेम के लिए विशिष्ट विचारधारा सी बन गयी। उस विचारधारा ने आँख पर पट्टी बांध दी। और हम एक शब्द "प्रेम" के दास हो गए।

जब कुछ महान विवेकी पुरुषों की जैसे कबीर, तुलसी, सूरदास, रैदास, मीरा की, प्रेम की, सही परिभाषाएं सामने आती भी हैं ,तो उनको सिर्फ आध्यात्मिकता से जोड़ दिया जाता हैं और समाज के लिए छूट भरी, सहूलियत अनुसार परिभाषा स्वीकार कर ली गयी।

आज किसी को उसका प्यार न मिले तो गुस्से में आ वो अपने प्रेमिका को चोट पहुंचा देता हैं और कुछ ने तो तेज़ाब जैसी निन्दनीय घटनाएं भी की हैं। क्या हो जाता हैं अगर पहला प्यार अधूरा रह जाता है या आपको किसी से प्यार नही मिलता। आप इतने क्यों तड़प उठते हो और आपको क्यों लगता हैं कि प्यार न मिला तो आपका जीवन अधूरा व बेकार हैं।

दूसरी भाषा में कहे तो किसी इंसान की श्रद्धा आप पर नहीं होती, भरोसा नही होता तो आप उसपर अत्याचार कर सकते हैं। जरा सोचिये दानव और क्या करते थे। श्रद्धा किसी की आप पर बलपूर्वक नही आ सकती, आपका व्यवहार, आपका चरित्र, आदतें किसी का विश्वास आप पर ला सकते हैं। पर ऐसे लोगों का रिश्ता सिर्फ शादी या शारीरिक संबंध तक जाए जरूरी तो नही।

क्या आपको ,जो दिखने में, आपकी परिभाषा में या यूं कहें आज की समाज की परिभाषा में सुंदर नही है, उससे प्यार हुआ हैं। जैसे कोई नाटा, मोटा, काला, गंजा या बेकार नाक नक्श का। पर हां ,अगर वो महान व्यक्ति हैं ,विशेष गुण वाला हैं तो आपकी श्रद्धा अवश्य हो सकती हैं मगर आप उससे प्रेम नही कर पाते है।

हम आपको आदर्शवादी भी नही बना रहे कि आप जबरदस्ती किसी से प्रेम करने लग जाये। बस आंख की पट्टी खोलने का प्रयास कर रहे हैं जो एक शब्द ने आप पे बांध रखी हैं।

या यूं कहें कि आपको कोई पसंद आ भी जाता हैं और चार लोग मजाक उड़ायें की तेरा दिल इस पर आया है, तो आपका प्रेम हवा हो जाता हैं।

आप जब किसी के रूप ,रंग का मजाक बनाने लगते हैं, तब तो आप इंसान भी नही रह जाते फिर आपमें प्रेम कैसे घटित हो सकता हैं।

अपनी शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति करने को कृपया प्रेम नाम न दे।

आप अकसर उसी को तलाशते हैं जिसके साथ खड़े होने पर कोई आप पे हँसे ना। मतलब समाज की परिभाषा में जो सुंदर हैं आप सिर्फ उसी से प्यार कर पाते हैं।

आजकल हर प्रेम आखिर शरीर तक ही क्यों आ जाता हैं। या प्रेम का नाम ले, शरीर तक पहुंचना आसान हैं।

क्या आप राजा ययाति की तरह इतने ईमानदार नही हो सकते जो संसार की समस्त स्त्रियों के साथ भोग करना चाहते थे। संसार में आपके लिए दरवाजे आज भी खुले हैं पर दृष्टिकोण तो साफ हो।

आप दुनिया से ईमानदार हो न हो, अपने से आपको पूर्ण ईमानदार होना चाहिए।

जब आप अपनी कमजोरियों और इच्छाओं को ईमानदारी से देखने लगते हैं तो उनमे सुधार और संतुलन किया जा सकता हैं।

क्या हम एक झूठ में, जैसे कि कुछ लोग धर्म,जाती के नाम पे अंधे हो जाते हैं ,बहुत कुछ गलत नही कर रहे?

कोई प्रेमिका का गला काट देता हैं, कोई उसके पिता की हत्या, कोई तेजाब फेंक रहा हैं, कोई शादी न होने पर उसका बलात्कार कर देता हैं, कोई ब्याही प्रेमिका को जबरदस्ती भगा ले जाता हैं ....

प्रेम की कोई विचार धारा या विचार नही हो सकते क्योंकि जब आप प्रेम में होते हैं तो मुक्त होते हैं, पूर्ण होते हैं, निर्विचार होते हैं। नही तो प्रेम आपमे घटित नही हो सकता।

विचार से चिंता या डर तो पैदा हो सकते हैं मगर प्रेम नही, सच्ची श्रद्धा का भाव नही।

सच्ची आस्था और प्रेम तभी होते हैं जब आप अपने " मै" मे नही होते।

जब तक मेरा प्यार, मेरी वो, में उसके बिना, मेरे साथ ही क्यों, में उसको; यह मैं रहेगा , प्रेम ,श्रद्धा का आप अनुभव ही नही कर सकते।

और जो आप इस "मैं "के साथ, अनुभव कर रहे हैं वो आपकी जिद, जुनून, ईगो (अहंकार), प्रतिशोध, क्रोध या शरीर की कोई और इच्छा हो सकती हैं पर प्रेम नही हैं।

क्योंकि जब आप प्रेम की अवस्था मे होते हैं तो यह सब विचार और नुकसानदेह भाव आप मैं नही होते।

और हां ,दुनिया के सबसे बड़े जाहिल और कुटिल हृदय इंसान ने ये बात कही थी कि "प्रेम और जंग में सबकुछ जायज हैं"

क्योंकि न तो युद्ध मे इंसानियत की हद पार होनी चाहिये और न ही प्रेम में।

किसी भी वस्तु, बात या अनुभव की एक एस्थेटिक (aesthetic) वैल्यू होती हैं। अपनी मर्यादा, संयम तोड़ हम उसे गन्दा बना देते हैं। फिर मनुष्य की इच्छाशक्ति( will power) होने का कोई अर्थ नही रह जाता।

तो हम कहना क्या चाहते हैं?

किसी भी भाषा या शब्द का कार्य होता हैं कम्यूनिकेट करना( अपनी बात कहना) , जब मनुष्य के पास बोलने की भाषा न थी तब सिर्फ इशारों की भाषा( आंगिक) थी। पर विवेक, समझ और करूणा आप मे सदा से थी।

पर आज हम कुछ शब्दों के गुलाम बन के रह गए और अपनी समझ, करुणा खो बैठे।



जिनसे आधार और संदर्भ लिया गया हैं

अमृतवाणी - स्वामी अड़गड़ानंद जी


कोई टिप्पणी नहीं: