गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

मैं पेड़ हूं , मैं स्तब्ध हूं..

 मैं पेड़ हूं , मैं स्तब्ध हूं..


तुम आते हो मेरे पास..


जब धूप ज़्यादा होती हैं


कुछ पल ठहरते हो,


फिर उड़ जाते हो , भंवरो की तरह


नए फूलों से नया रस पीने....




मैं पेड़ हूं , मैं स्तब्ध हूं..


मुझे प्रेम मिलता हैं


जब तुम आलिंगन करते हो


अपने पांवों से चढ़ते उतरते हो


थोड़ा जीवन दे मुझे तुम, घर को निकलते हो


फिर रात अकेली होती है और मैं अकेला होता हूं..




मैं पेड़ हूं , मैं स्तब्ध हूं..


जब तुम भरे हुवे होते हो


कभी प्यार बाटने आते हो तो कभी दुख


मेरे ही सीने को चीर के एक दिल बना जाते हो..


जब आंसू तुम्हारी आंखों से गिरते है ...


साथ तुम्हारे मेरे भी कुछ हिस्से टूट के गिरते हैं..




मैं पेड़ हूं , मैं स्तब्ध हूं..


सालो के मेरे जीवन में तुम कई रूपों में आए


मुझे जीवन किस्तो में, तुम सब से मिला


फिर वक्त के थपेड़े ने मुझे ठूंठ कर दिया..


फूल, पत्ते और छांव जब मुझमें न रही


मुझसे बेहतर और भी थे..


तुमने नई छांव तलाश ली..




मैं पेड़ हूं , मैं स्तब्ध हूं..


मुझे प्रकृति ने बाहें न बक्शी


की जब चाहूं तुम्हे आगोश में भर लू


मैं जीवन की , खुशबू की, तुम्हारी मांग नही कर सकता


मेरा अस्तित्व ख़ुद लूटने और लुटाने का हैं..


मैं तुमसे कैसे कहूं की मैं तुमसे कितनी मोहब्बत करता हूं


मैं पेड़ हूं , मैं निशब्द हूं..

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