बुधवार, 7 अप्रैल 2021

मनु तुम प्रकृति हो

मनु तुम प्रकृति हो
मनु तुम लहर भी हो
किसी गज़ल की बहर भी हो
तुम नई नवेली सहर भी हो
तुम हो बहती हवा
तुम हो रुत जवां
तुम हो बारिश, तुम गर्मी भी हो
तुम में हैं शोला, तुम नर्मी भी हो
मनु तुम प्रकृति हो..

मनु, तुम प्रकृति हो...
मैने तितलियों को साथ तुम्हारे झूमते देखा हैं..
थी जब तुम शहर की गलियों में मेरे साथ
रास्ते रोशन जुगनुओं को करते देखा हैं
मनु,  एक ताज मैने तुम्हारे सिर पे देखा हैं
लोगो को  उम्मीद तुमसे  भरते देखा हैं

मनु, तुम प्रकृति हो..
जब तुम पास बैठती हो, मैं पूरा हो जाता हूं.
मैने,  पास मेरे जीवन को ठहरते देखा हैं

मनु ,तुम प्रकृति हो
तुम्हारी थाह लेते लेते, मैने खुद को खोते देखा हैं
बहुत दूर भागते हुवे,खुद को तुम्हारा होते देखा हैं
जब तुम चहकती हो, चिड़ियां भी गुनगुनाती हैं
जब तुम हंसती हो, फूलों को मैने खिलते देखा हैं..

मनु ,तुम प्रकृति हो
बहुत फैली हैं शाखाएं तुम्हारी
तुम इधर भी हो, उधर भी हो
मैने, खुद को तुममे सिमटते देखा हैं..

मनु ,तुम प्रकृति हो
तुम धूप हो, तुम छांव हो
हरियाली में सिमटा एक गांव हो
तुम रात को सुंदर बनाता चांद हो
कितने ही भावो को आसरा देता बांध हो
तुम प्रेम का गीत, हृदय का नांद हो
मैने, संगीत को मौसम में घुलते देखा हैं

मनु ,तुम प्रकृति हो
मेरे बचपन का प्यार हो
छलकता आंखो का इज़हार हो
मेरे पास की सीट पे बैठी सुंदर नार हो
हां मनु,तुम जीवन की बहार हो
मैने , कितनो को तुममें, जीवन खोजते देखा हैं

मनु, तुम जीवन संगिनी हो
तुम मेरी नंदिनी हो
तुमने जीवन का निर्माण किया
ऐसा कुछ भी नही जो मेने बखान किया
जो तुम हो वो कहता हूं
बस तुम्हारे प्रेम में बहता हूं
मैने समक्ष तुम्हारे ,खुद को मरते देखा है
मनु  , मैने खुद को भी मनु बनते देखा हैं
मनु ,तुम प्रकृति हो

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