बुधवार, 7 अप्रैल 2021

दुःख

 19 साल की रचना शाम को छत पे टहल रही थी।


उसके चेहरे पे ना कोई खुशी थी, ना ही कोई और भाव।


मुरझाया सा चेहरा, सूखा सा बदन। 


कोई खोल ओढ़े रूठी सी जिंदगी, सूखी लड़की सी जैसे चली जा रही हो।


सामने की छत पर भैया भी टहल रहे हैं, बचपन से रचना उन्हें जानती हैं।


पर भैया कम ही दिखते हैं, कभी शहर के बाहर, कभी आफिस , सालों में कभी कभार ही दिखते हैं।


भैया को देख के हलकी सी खुशी रचना को महसूस हुई ही थी कि उसकी माँ की आवाज़ आयी।


जोर से चिल्लाते हुवे -" क्या इधर उधर देख रही हैं रांड, दिन भर फ़ोन पे लगी रहती हैं, अंदर जा"


भैया जो छत पे टहल रहे थे,उनकी नज़र रचना और उसकी मां पे गयी।


रचना ने एक पल भैया को देखा और फिर अपनी माँ को देख कर रोते हुवे चीख के साथ बोली -" तू हैं रांड, तेरी वजह से मेरी और सबकी जिंदगियां खराब हो गयी।


परेशान और झल्लाते हुवे रचना छत पे बने कमरे के अंदर चली गयी।


पीछे पीछे उसकी मां भी गालियां निकालते हुवे आयी।


रचना आँखे बंद कर पलंग पे सो गयी, उसे पता था अब माँ की बकबक आधे घंटे तो चलेगी ही।


वो कैसी थी और अब क्या हो गयी। कभी उसकी जिंदगी में भी खुशियां थी, प्यार था।


एक रील की तरह पुरानी जिंदगी उसके सामने चलने लगी।


चार पांच साल की रचना पापा की गोद मे खेल रही हैं।


पापा की दाढ़ी रचना को परेशान कर रही हैं।


पापा का प्यार, उनका आलिंगन ,उनकी बातें, रचना की दुनिया बहुत खूबसूरत थी।


वो अब स्कूल जाने लगी थी, पापा उसे छोड़ आते तो उसको बड़ा अच्छा लगता। मां तो जब भी आती बड़बड़ाती रहती ,जल्दी जल्दी चलाती, उसका हाथ भी खेंचती, गोदी भी नही लेती थी।


पापा की भी एक बुरी आदत थी, वो दारू बहुत पीते थे। पर मुझे वो हमेशा अच्छे ही लगे, कभी उन्होंने मुझे डांटा नही, मारा नही।


पीने के बाद उनके चेहरे पे हलकी मुस्कान और शान्ति सी रहती थी।


पापा जब भी पिके आते, मां झगड़ा करने पे उतारू रहती।


कहती -मूत पीके आ गए।


पापा कुछ ना कहते, मुझे गोद मे उठा खेलने लग जाते।


मां की बड़बड़ाहट चलती रहती।


माँ -तीन तीन बेटियां हैं ,तुम मूत पीके मस्त रहो, उनकी शादियां करवानी हैं, कल बड़ी हो जायेगी। पागल आदमी।।।


पापा बस सुनते रहते, कुछ ना कहते। बहुत ज्यादा होता तब ही कभी कभार बोलते


पापा - मेरे साथ चल, तेरे दिमाग का इलाज हो जाएगा, सब ठीक हो जाएगा, कितनी बार कहा है मैने। 


माँ- तू अपनी दारू का इलाज करवा, रोज मूत पीके आ जाता हैं।


आस पड़ोस के लोग कहते रहते हैं कि हमारे घर मे झगड़े बहुत होते हैं, हमारा घर का माहौल खुशनुमा नही हैं।


पर मुझे ये सब ना दिखता था, तीनो बहनों में पापा सबसे ज्यादा मुझे प्यार करते थे। मेरी दुनिया बहुत खुशनुमा थी।


धीरे धीरे हम बहने बड़ी हो रही थी और मां की जबान और खराब।


मां दिन में पांच बार नहाती थी, वो सनकी होने लगी, बाहर से जब भी घर मे आती नहाने लग जाती। चिल्ला चिल्ला के मां सूख के कांटा हो रही थी।


पापा रोडवेज में थे, सरकारी नौकरी थी। अच्छे पैसे कमाये, घर के बाहर पांच दुकाने बनवा दी थी। पापा की भी तनख्वाह बढ़ गयी थी।


लाख सवा लाख रुपया घर मे आने लगा।


एक एक कर दोनों बहनों की शादी अच्छे घर मे करवा दी।


पर मां का स्वभाव न बदला था।


कुछ पैसो की उधारी हो गयी थी इसलिए पापा अब बार बार बाहर का टूर लेते थे। उसमे उनकी ज्यादा कमाई होती थी। घर कम ही आते थे।


मां को जैसे लड़ने और बोलने की आदत हो गयी थी।पापा ना होते तो मुझसे ही लड़ पड़ती।


महीने में एक दो बार पापा आते तो उनसे उलझ पड़ती।


पापा मुझे कहते- बस बेटा एक बार तू इस घर से निकल जाए, तुझे अच्छा घर मिले। फिर मुझे कोई फिक्र ना रहेगी। तेरी मां का स्वभाव ऐसा ही बन गया है, तू दिल पे ना लिया कर।


पर में तो शादी ही नही करना चाहती थी। मां पापा को देखा था, उनकी शादी में कुछ भी तो न अच्छा था। इससे अच्छा तो वो अकेले अकेले खुश रहते।


पापा की वजह से मेरी जिंदगी में प्यार था नही तो क्या हैं मेरी जिंदगी।


मैंने सोच रखा था, मै शादी कभी नही करूँगी और हमेशा पापा के साथ ही रहूँगी। इसके लिए मां की बक बक भी सहन कर लूंगी।


पापा के कोई बेटा नही हुआ तो क्या ,मै बेटे का फर्ज निभाऊंगी।


मै 17 साल की हो गयी थी और पापा मेरे अठारह होने का इंतज़ार कर रहे थे ताकि मेरी शादी करवा सके।


पापा चाहते थे की मै आगे की पढ़ाई भी ससुराल जाके करूँ ताकि इस वातावरण दूर रहूँ। वो नही चाहते थे मेरी जिंदगी में जहर घुल जाये।


पर पापा के साथ मेरी जिंदगी प्यार से भरपूर थी।


मैं अक्सर सोचती थी, बाप को छोड बेटियां कैसे किसी के साथ भाग जाती हैं।


मेरे लिए तो प्यार का अर्थ ही पापा थे।


एक दिन जब, मेरे 18 होने में सिर्फ तीन दिन बाकी थे, पापा कुछ लोगो को घर लाये। वो सब मुझे देखने आए थे।


मुझे पापा पे बड़ा गुस्सा आया, वो मुझे खुद से दूर करना चाह रहे थे।


सब कुछ ठीक चल रहा था, मां कुछ देर तो शांत रही, फिर उनकी लड़ाई शुरू हो गयी।


मां मेहमानों के सामने भी चुप न रही। मेहमान उठ के चल दिये।


पापा का चेहरा लाल और हताश हो गया था।


बड़ी धीमी आवाज़ में वो मां से बोले।


पापा- बावली कितने अच्छे घर से रिश्ता आया था, लड़का भी कितना सुंदर था। हमारी बच्ची को देख रखा था, बच्ची की सुंदरता की वजह से कोई मांग भी न थी। तूने सब खराब कर दिया।


पापा की रात की ड्यूटी थी, रोडवेज़ में कंडक्टर थे।


सुबह वो घर आये, पर लोगो ने बताया ये उनकी लाश हैं। रात को इन्होंने ज्यादा पी ली थी। दरवाजे पे खड़े थे और चलती गाड़ी में बाहर की तरफ गिर गए थे।


मैं सूनी हो चुकी थी मुझे भगवान पे यकीन था, अच्छाई पे यकीन था, जीवन पे यकीन था।


पर एक भीड़ आयी और पापा को जला के चली गयी।


पापा ने नौकरी में मुझे नॉमिनी बना रखा था।


वो सरकारी नौकरी मुझे मिल गयी।


आज पैसो की कमीं नही हैं पर में इसी घर मे रहना चाहती हूं । मेरे पापा के पास। मां मेरी शादी करवाना चाहती हैं पर मै सिर्फ उनके मरने का इंतज़ार करती हूं।


इस घर को छोड़ में कहीं नही जाऊंगी। 


अब लोग मुझे भी सनकी और पागल कहने लगे हैं।

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