बुधवार, 7 अप्रैल 2021

अजीब वाकिआ

 हुआ यूं कि हमारे एक दोस्त मुंबई से पधारे थे और अक्सर जब वो आते थे तो दारू पार्टी के लिए मुझे याद फ़रमा लेते थे। मुझे याद करने की एक वजह तो ये कि मैं पार्टीया कम अटेंड करता हूं क्योंकि मुझे पीने का शौक़ कम है । दूसरी बताऊंगा तो आप कहेंगे की अपनी ही तारीफ़ किए जाते है.. सो छोड़िए। 


कोरॉना काल में भी उनका धंधा ठीक ही चल रहा था , मोबाइल एसेसरीज की होलसेल की दो बड़ी दुकान, मुंबई सिटी सेंटर मौल में हैं। मेरा बिजनेस टूर्स न ट्रैवल्स का था जो अब चारों ख़ाने चित, औंधे मुंह पड़ा था। मै थोड़ा बहुत डिप्रेशन में तो था लेकिन अच्छी बात ये थी कि बाईस साल की उम्र वाला शौक़ पूरा करने के लिए छत्तीस साल की उम्र में मैने थिएटर क्लासेज जॉइन करली थी।


मैं बहुत ख़ुश था और समय बहुत क्रिएटिव तरीक़े से गुज़र रहा था। एक अच्छा ग्रुप बन गया था और हमने आपस में कुछ व्हाट्सएप ग्रुप बना लिए थे।


कुछ महीनों सब बढ़िया चल रहा था। कुछ लोग धड़ाधड़ मैसेज करते थे, ज़रूरी भी और ग़ैर ज़रूरी भी और कुछ लोग बिल्कुल अमल खाके सोए पड़े रहते थे, कई बार ऐसा लगता था कि वाक़ई में वो जीवित भी हैं या नहीं।


क़रीब पांच महीने पूरे होने वाले थे और हमारा एक बन्दा रूठ के ग्रुप से एक्जिट हो गया। उसके इस ग़ैर ज़िम्मेदारान रवैए पर बड़ा अजीब लगा और ग़ुस्सा भी आया। कुछ दिन हमने उससे बात न की लेकिन बाद में सब ठीक हो गया।


बात असल में उसकी नहीं , मैं अपनी कह रहा था। हुआ यूं कि एक रविवार मैं प्रैक्टिस में नहीं गया , अब बाल बच्चेदार आदमी , सौ काम और बस एक इतवार। दूसरा ये भी की मेरा तलफ़्फ़ुज़ बिगड़ा हुआ था और मैं अपना समय उसमें देना चाह रहा था।


इस इतवार के बाद मुझे बड़ा अजीब सा लगने लगा। आप इसे सिक्स्थ सेंस कहे या कुछ और क्योंकि मैं ना सिक्स्थ सेंस को मानता हूं और ना ही भगवान वगवान को। विज्ञान अनुसार पांच ही सेंस मुझे समझ आते है।


यही बात मैं ड्रिंक करते हुवे अपने मित्र मंडली के साथ शेयर कर रहा था कि, मैं जब भी अपने इन व्हाट्सएप ग्रुपस को ओपन करता हूं, मुझे लगता है कोई जम कर मुझे गालियां दे रहा है।  


मेरा व्यवहार आदतन ' मुंशी प्रेमचंद जी' के उस गधे की तरह है जो किसी भी बात का सबसे कम विरोध करता है और सबके काम का और साथ का आदमी है, तो ज़ाहिर है कि मैं अल्फा मेल वाली थियरी में यक़िन नहीं रखता। क्या है की विदेशियों कि सारी थियरिज को मैं सही नहीं मानता , क्यूंकि जानवरों के लिए तो ये ठीक जान पड़ती है लेकिन जब भी इन्सान ने ऐसा बनने की कोशिश की है तो वो जानवर बन गया , जैसे कि रावण और दुर्योधन, उन दोनों में अल्फा मेल की सारी खूबियां थी। अरे.. र...र ये मैं कहां चला गया। असल में, मेरी इस आदत से मेरी पत्नी भी परेशान है , मैं कुछ बोलते बोलते , कहीं और ही दिशा मैं बोल पड़ता हूं। 


तो मै कह रहा था कि कोई मुझे जम कर गालियां दे रहा है ,ऐसा मुझे लग रहा था। इस वजह से मेरा क्लास में भी परफॉर्मेंस ख़राब हो रहा था और मैं हताश महसूस कर रहा था। दो दिन तो मैं इस बात को टालता रहा। मुझे लग रहा था कि मेरा कोई वहम ही होगा या कोई और वजह होगी। लेकिन आज चार दिन हो गए थे। दारू पीने के बाद दोस्तो के साथ गप्पे मारते हुवे अपना जी हल्का करने जैसा सुख, और कोई नहीं और कहीं नहीं। 


दोस्तो को सुन कर भी बड़ा अजीब लगा क्यूंकि वो मेरा स्वभाव जानते थे । मैं जितना सीधा था उतना ही मेरा स्वभाव अनप्रेडिक्टबल था। कोई मुझे मुंह पर गाली निकाले और वो मेरे लिए उपयोगी न हो तो मैं उसके हलक़ में हाथ डाल ज़बान भी खेंच लेता हूं। और वो जानते थे कि, कोई मुझे पीठ पीछे गाली निकाले तो मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता क्योंकि मैं ये मानता हूं कि ये दुःखी इंसानों के काम है या परेशान औरतों के , जिनको इससे अल्प सुख प्राप्त होता है। या फिर कोई मुझे छोटा दिखा, ख़ुद को बड़ा साबित करना चाहे ,लेकिन वो उस ग़रीब आदमी की परेशानी है, उससे मुझे क्या लेना देना?


दोस्तों ने कहा, इतनी छोटी बात से इतनी बड़ी परेशानी। ग्रुप से आउट हो जाओ। लेकिन दिक्कत ये थी कि एक तो मुझे एक्जिट होना ग़ैर ज़िम्मेदारान रवैया लग रहा था और दूसरा चार ग्रुप बने थे। एक ऑफिशियल गुरुजी के द्वारा और तीन दोस्तो के साथ । नज़दीकियों के हिसाब से किसी में दो दोस्त, किसी में चार और किसी में छह। दोस्तो ने पूछा कि कौनसे ग्रुप से आपको ऐसी भावनाए आ रही है ? अब ये तो मुझे भी नहीं पता। सब दोस्तो ने फ़ोन अनलॉक करने के लिए कहा। 


हम चारों दोस्तो ने फ़ोन को घेर लिया और तिलिस्म की खोज में लग गए। बड़े हिम्मत और संजीदगी से मैने गुरुजी वाला ग्रुप ही पहले खोला। सबने मेरी तरफ देखा , मैने महसूस करने की कोशिश की और मुझे बड़ा सुकून सा मिला, यहां से गालियां नहीं आ रही थी। बाक़ी रहे तीन ग्रुप, सब में से गोलियों कि बोछार की तरह गालियां आ रही थी। कुछ तो मेरे दोस्तो ने भी महसूस की। अब ये दारू का असर था या सच में कोई आध्यात्मिक अनुभव , कहा नहीं जा सकता। डिफेंस लेते हुवे मैं जल्दी से तीनों ग्रुप से आउट हो गया। ऐसा महसूस हुवा जैसे गहन युद्ध के बाद एक गहरी ख़ामोशी। एक शांति सा अनुभव हुआ और मैं घर आके सो गया। 


आपको ये वाक़िआ अजीब लग सकता हैं। 


क्या टेक्नोलॉजी भी नज़र लगा सकती है ?  


सिक्स्थ सेंस टेक्नोलॉजीज़ पर भी काम करता है? 


क्या कभी आपको भी ऐसा अनुभव हुआ है? हुआ हो तो नीचे लिखी मेल आईडी पर शेयर करना क्योंकि व्हाट्सएप नंबर देने की फ़िलहाल मेरी हिम्मत नहीं है। 


Yashsarathore@gmail.com





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