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बुधवार, 7 अप्रैल 2021

प्प्यार

आज का प्यार

मेरा मानना है कि प्रेम हो जाता है, ऐसा नही है न ही किया जाता है.

प्रेम निभाया जाता है.



नेह निबाहन कठिन है, सबसे निबहत नाहि

चढ़बो मोमे तुरंग पर, चलबो पाबक माहि। कबीर 



इसे ऐसे समझे

 पहली नज़र में ही कोई मन को अच्छा लगता है. वो इंसान की पसंद या दो इंसानों की केमिस्ट्री हो सकती हैं.

आपकी केमिस्ट्री 10 लोगो के साथ भी अच्छी हो सकती है.

प्रेम वही कर सकता है जो स्टेन्ड ले सकता हैं. आपके साथ खड़ा हो सकता है.

जो प्रेम करते है और कहते है कि वो मजबूर है, नही तो ये कर लेते, वो कर लेते और इमोशनल ड्रामा में उलझे रहते है.

वो अपना और दूसरे का नुकसान करते हैं.

आप साफ साफ क्यों नही कहते कि आप को दो थप्पड़ खाने में और अपने परिवार, पड़ोसी और समाज मे बदनाम होने का डर है.

जब तक चोरी चोरी चुपके चुपके आप को इमोशनल सैटिस्फैक्शन मिल रहा था, तब तक कोई परेशानी नही थी. अब जब साथ खड़े होने की, सामना करने की बात आई है तो जिम्मेदारी उठाने से डर रहे हैं.

असल मे आप डरपोक है और प्रेम आपके लिए हैं ही नही. 

रोते रहने को ,दुखी होने को , तड़पने को और अफसोस करने को प्रेम नही कहते हैं.

बॉलीवुड की प्यार की थ्योरी से बाहर निकले.

"वीर भोग्य वसुंधरा". वीर व्यक्ति ही इस संसार मे आनंद ले सकता है. कायर के लिए क्या सुख.

मुझे लगता है, प्यार सिर्फ संसार के एक प्रतिसत से भी कम लोगो के लिए है. सब इसके काबिल ही नही.

 स्वर्ग पाने के लिए या कुछ बड़ा पाने के लिए ,कुछ काबिलियत,और कुछ गुण आवश्यक हैं.

 प्रेम तो आपकी नजर में परमात्मा या स्वर्ग समान ही होगा.

वैसे ही प्रेम के लिए भी काबिलियत चाहिए.

मजबूर लोग कुछ नही कर सकते. मजबूर लोगो को प्रेम नही करना चाहिए.

वैसे भी आपके हिसाब से भी नब्बे प्रतिशत लोग, बिना प्रेम के ही साथ मे रहते है तो आप भी उनके साथ हो जाए.

सोचिए महाराणा प्रताप, गोबिंद सिंह जी, शिवाजी महाराज, दुर्गादास राठौड़, राजसिंह जी मेवाड़ मजबूर होते तो क्या होता. ये सब विपति में और उभर के आए और सही रास्ते पर ही बढ़े.

आप अपनी शारीरिक इच्छा व इमोशनल नीड्स पूरी कर रहे है ,तो उसके लिए, ईमानदार रहे. सामने वाले को बताए कि बस इतनी ही जरूरत है. उसके आगे प्रेम वरेम कुछ नही, इससे आगे बस का नही.

अपने आप से ईमानदार रहे.

या यूं कहें कि आप को रोमांस( romance) पसंद है. लव की जिम्मेदारी आप नही उठा सकते.

लड़को की और परेशानी है. "यार लड़की ने आई लव यू बोल दिया. अब तो उससे प्यार करना ही पड़ेगा". 

ये वो लोग है जो प्यार भी मजबूर हो के करते है. 

या फिर आप काम चला रहे है कि अभी इससे कर लेते है, आगे कोई और सुंदर आएगी तो उससे कर लेंगे.

ध्यान से समझिए आप सिर्फ कुछ मानसिक व शारीरिक सुख प्राप्त करने के मूड में हैं, उसमे कोई बुराई भी नही पर इसको प्रेम का नाम दे, सामने वाले को धोखे में रखना भी तो एक अपराध है.

क्या आप साफ साफ कह नही सकते ? या साफ कहने से आपके इरादे पूरे नही होंगे.

प्रेम बेईमान, मौकापरस्त, डरपोक और गैर जिम्मेदार लोगों के लिए नही है, इस और कदम न बढ़ाये.

प्रेम का गुण लड़का, लड़की दोनों में होना चाहिए. किसी एक मे होने से भी कुछ न बनेगा.

इसीलिए शास्त्र कहते है, कुपात्र को दान देने से दाता नष्ट हो जाता है.

गलत व्यक्ति पर दया, प्रेम, ज्ञान, धन लुटाने से, आप ही नष्ट हो जाते है.

अपने अहंकार को, अपने आप को, अपनी इच्छाओं को पिघलाना पड़ता है. पूरा चरित्र इंसानों को बदल जाता है. तब कहीं प्रेम की ज्योत प्रवेश करती है, आप में. प्रेम को पूर्ण इसीलिए कहते है क्योंकि उस अवस्था मे आप सिर्फ देने के भाव मे होते है, आप स्वयं संतुष्ट भाव मे होते है, आपको कुछ चाह ही नही होती.

स्वयंम प्रेम की चाह भी नही.

चाह गयी चिंता मिटी, अब हंसा बे परवाह
जिसको कुछ न चाहिए, वो ही शहंशाह



कबीरा यह घर प्रेम का,खाला का घर नाहीं,

सीस उतारे भुइं धरे,तब पैठे घर माहीं !! कबीर


मान

एक विचार हममे है और बहुत गहरा है कि हम बाकी लोगों से थोड़े ज्यादा समझदार है. दूसरी तरह से कहे तो आपको अभिमान है कि आपके पास दुसरो से ज्यादा ज्ञान हैं. और आपने ये तर्क की कसौटी पर तोल के देख लिया हैं और आपको बात ठीक भी लगती है.

क्योंकि आप जिनसे मिले हो, उनकी परेशानियां आपने हल की है और उन लोगो ने भी आपको कृतज्ञ होते हुवे अच्छा आदमी, गुरु और भगवान तक कि उपाधि दी हैं.

आप जानते हो कि आप कईयों की परेशानियां हल कर सकते हो. क्योंकि आप अपने आप को भी हैंडल कर सकते हो.

आप अपने जैसे ही लोगो से मिलते हो और आप सामने वाले कि तारीफ भी करते हो, वो भी आपकी तारीफ करता हैं. दोनों ही एक दूसरे को बुद्धिमान, हाई स्टेट ऑफ माइंड मानते हो.

अब जिनके मस्तिक के स्तर नीचे हैं ,उनके साथ उठ बैठ नही पाते. जो नीच, रेपिस्ट, हत्यारे हैं, वैसे आप नही है, इसका संतोष आपको है.

आप में एक नही, बहुत काबिलियत है. आप जहां बुद्धि से तेज़ है, वहीं आप शरीर से शक्तिशाली भी. उसके अलावा भी जिस भी फील्ड में हाथ डालते हो, वहां दुसरो से अच्छा करते हो.

आप अपनी पिछली जिंदगी को भी देखते है तो आपको अपने अनुभव ज्यादा गहरे लगते हैं और आपने जिंदगी में बहुत कुछ देख लिया है.

करीब करीब आप अपने को कृष्ण के समान, सोलह कलाओं से पूर्ण ही मानते हो.

आप परमात्मा के शुक्रगुजार भी हो कि उन्होंने आपको सही गलत की समझ दी है और नेक रास्ता दिखाया है.

साधु संतों की भी आपकी संगत है.

पर क्या ये सच्चाई है या आप ऐसा अपने बारे में सोचते है.

इतना सब अनुभव के बाद भी जिंदगी आपको नीरस क्यों लगती है.

आपका ज्ञान जिसने आप को बदल के रख दिया, क्या वो आपके अंदर से आया था

या

फिर अनुभवी इंसानों ,किताबो और गूगल से आपके पास आया और आप ने समझ लिया और जीवन मे उतार लिया.

चलो समझ तो आपकी अच्छी है. ये तो आपकी खुद की ही है?

अगर आप उस बच्चे की तरह पैदा होते जिसे आजकल स्पेशल चाइल्ड कहा जाता है. तब क्या होता?

यानी समझ भी प्रकृति से मिली है.

अगर शरीर मे कोई ऐब रह जाता, एक आंख, एक पैर, एक हाथ छोटा बड़ा तो क्या आप इतने ही शक्तिशाली होते.

इसलिए दुर्गादास, गुरु गोबिंद सिंह जी, शिवाजी महाराज व्यक्तिगत वीरता के गुलाम नही थे.

गुरु गोबिंद अपने बुद्धि बल व शारीरिक बल को कभी भी अपना न मानते थे, वो आंतरिक तोर से प्रभु ,प्रकृति जो भी आप कहे,उसके सामने नतमस्तक थे.

आपके पास जो ज्ञान है वो ही असल ज्ञान है इसका भी आपको मान है क्योंकि वो आपके आदर्श पुरुष, धर्म या परिवार से आपको मिला हैं.

पर क्या आपको फ़टे जूतों में दस तरह की सिलाई करनी आती है. या एक गांव का ग्वार अपने 100 ऊँटो के पैर के निशानों में अपने खोये ऊंट के पैर के निशान पहचान लेता है. 30 साल ऊंट चराते हुवे उसके सेन्सेस( इन्द्रिय समता) विकसित हुवे है.

एक आदमी बड़े तेज़ चाल में चल रहे हारमोनियम को सुनने मात्र से, बिना एक सेकंड की देर लगाए, सारे सुर गाके सुना देता है.

एक छोटा बच्चा भी कई परिस्थितियों को आपसे अच्छे ढंग से संभाल लेता है, आप अब गुस्से और जानकरी के बोझ में वो लचीलापन खो चुके हो.

लेकिन आपको आपका ज्ञान ज्यादा महत्वपूर्ण लगता है क्योंकि वह जीवन की वास्तविकताओं और आध्यात्मिकता से जुड़ा हुवा है. क्या ऐसा नही है?

आप अपने आप को शिवाजी महाराज की तरह मानते हो, आपको लगता है जैसे उनका ज्ञान, उनके भाव आप मे उतरे हो. और क्या की कोई आंगिक के शिक्षक आपको कहे कि आपकी आंगिक भाषा थोड़ा लड़की या किन्नर की तरह है.

क्या 100 लोगों की नज़रों में आपकी इमेज अलग अलग नही हो सकती. आपको कोई बोले भले न पर मन ही मन मानता हो कि आप एक नीच ,आलसी,मतलबी और मूर्ख इंसान हो. जो कि स्वयंम आप अपने बारे नही मानते.

लेकिन आप इतना तो मानते हैं कि आपके जीवन मे बहुत गरीबी और तकलीफे आयी जिसने आपको और मजबूत बनाया, है ना?
इसके लिए तो ताली होनी चाहिए.

पर कितने लोग है जो कॉलेज, स्कूल तक भी पहुंच नही पाते. उनकी माएं कचरा चुग चुग के उनको जिंदा रख रही हो.

और क्या जो गरीबी कोई मापदंड ही न हो? जैसे बुद्ध, महावीर, राम, कृष्ण...

तो फिर तुम क्या हो.

एक नाली में दारू पीके सोये आदमी में और आप मे रत्ती भर का फर्क नही हैं.

कुछ तो फर्क हैं, नही?

हां हैं, जीवन की संभावनाओं का फर्क हैं.

इसलिए विवेकानंद हमेशा आशावादी व अति उत्साही थे. क्योंकि जीवन मे संभावनाएं है.

जिसको आप ज्ञान दे रहे हो ,वो कल आपका गुरु बन के बैठा होगा और जिसको आप गुरु मानते हो वो 70 साल की उम्र में किसी बच्ची के बलात्कार के जुर्म में सजा भुगत रहा होगा.

पर एक बात तो हैं, आपने रास्ता सही चुना है , नही?

जरा सोचिए ह्त्या तो आप भी करना चाहते थे, किसी के साथ जबरदस्ती भी करना चाहते थे. आप सोचने में लगे थे और किसी ने कर दिया.

और जो हल्का सा फर्क आप मानते हो ,वही बस आपका मान, अहंकार घमंड हैं, उसको विदा हो जाना चाहिए.

फिर आप सबसे बात कर सकते है. सबके दिल के करीब जा सकते है. फिर आप दोस्त हो सकते है.

इसलिए बुद्ध नतमस्तक हो अंगुलिमाल के पास जा सकते है. आपको क्या लगता है ,उन्होंने एक हत्यारे को ज्ञान दिया और दस मिनट में वो आदमी बदल गया. क्या ऐसा हो सकता है ? या क्या आपके साथ ऐसा होता है?

अंगुलिमाल से अंगुलिमाल ही मिला था और कुछ बात हो गयी थी बस... और दो बुद्ध साथ हो गए थे.

राम केवट, बन्दर, भालुओं के साथ केवट बन्दर भालू ही थे. यह तरलता , शीतलता तब ही आती हैं जब आप कुछ होते नही है.

अब क्या करे में और आप तो समझदार भी है और अच्छे इंसान भी.

Note - लेख का अर्थ बिल्कुल भी नही है कि आप कुसंगति में रहे. बस ये हैं कि आप अपने को और गहरा जान सको.




Love ( लव)

किसी शायर ने क्या खूब कहा हैं -" दिलो की बात करता हैं ज़माना और मोहब्बत आज भी चेहरो से शुरू होती हैं"

पहली बात हम समझे कि "दिल" क्या है। दिल एक उर्दू शब्द हैं जिसे हिंदी में हृदय या मन कहते हैं।

संस्कृत में मन व हृदय पर्यायवाची शब्द हैं, जिसका मूल अर्थ हैं, शरीर के परे ,कुछ गहरा, आपके अंतर तक। ऐसे ही अंतर्मन या अंतरात्मा जैसे शब्द हैं।

सीने की धड़कन वाली मशीन जिसे हार्ट कहते हैं वो हृदय, मन, या दिल नही हैं। आप आज हार्ट बदलवा भी सकते हैं और भविष्य में शायद मैकेनिकल या इलेक्ट्रॉनिक हार्ट भी आ जाये जो आपकी आयु को और बढ़ा दे।

आपको ये जानकर भी शायद हैरानी होगी की महाभारत काल से पहले और उस वक़्त तक "प्रेम" शब्द अस्तित्व में ही न था।

खोज करने पर प्रेम के सबसे नजदीक जो शब्द आता हैं ,वह हैं "श्रद्धा"।

गुरु में, मित्रता में, या किसी नर नारी में श्रद्धा हो जाती थी। ये श्रद्धा बहुत शंकाओं और कशोटी पर खरे उतरने के बाद किसी व्यक्ति विशेष पे होती थी।

सिर्फ किसी के रूपवान होने पर ही उसमें श्रद्धा स्थापित नही हो जाती थी। मतलब की हम अंधे और मूर्ख नही थे। हम श्रद्धा शब्द के दास नही थे।

पर जब से बॉलीवुड ने विशेष तौर पर और फिर कुछ झूठे साधु, सन्याशी बने लोगो ने " प्रेम" शब्द का जमकर इस्तेमाल किया, तब से प्रेम के लिए विशिष्ट विचारधारा सी बन गयी। उस विचारधारा ने आँख पर पट्टी बांध दी। और हम एक शब्द "प्रेम" के दास हो गए।

जब कुछ महान विवेकी पुरुषों की जैसे कबीर, तुलसी, सूरदास, रैदास, मीरा की, प्रेम की, सही परिभाषाएं सामने आती भी हैं ,तो उनको सिर्फ आध्यात्मिकता से जोड़ दिया जाता हैं और समाज के लिए छूट भरी, सहूलियत अनुसार परिभाषा स्वीकार कर ली गयी।

आज किसी को उसका प्यार न मिले तो गुस्से में आ वो अपने प्रेमिका को चोट पहुंचा देता हैं और कुछ ने तो तेज़ाब जैसी निन्दनीय घटनाएं भी की हैं। क्या हो जाता हैं अगर पहला प्यार अधूरा रह जाता है या आपको किसी से प्यार नही मिलता। आप इतने क्यों तड़प उठते हो और आपको क्यों लगता हैं कि प्यार न मिला तो आपका जीवन अधूरा व बेकार हैं।

दूसरी भाषा में कहे तो किसी इंसान की श्रद्धा आप पर नहीं होती, भरोसा नही होता तो आप उसपर अत्याचार कर सकते हैं। जरा सोचिये दानव और क्या करते थे। श्रद्धा किसी की आप पर बलपूर्वक नही आ सकती, आपका व्यवहार, आपका चरित्र, आदतें किसी का विश्वास आप पर ला सकते हैं। पर ऐसे लोगों का रिश्ता सिर्फ शादी या शारीरिक संबंध तक जाए जरूरी तो नही।

क्या आपको ,जो दिखने में, आपकी परिभाषा में या यूं कहें आज की समाज की परिभाषा में सुंदर नही है, उससे प्यार हुआ हैं। जैसे कोई नाटा, मोटा, काला, गंजा या बेकार नाक नक्श का। पर हां ,अगर वो महान व्यक्ति हैं ,विशेष गुण वाला हैं तो आपकी श्रद्धा अवश्य हो सकती हैं मगर आप उससे प्रेम नही कर पाते है।

हम आपको आदर्शवादी भी नही बना रहे कि आप जबरदस्ती किसी से प्रेम करने लग जाये। बस आंख की पट्टी खोलने का प्रयास कर रहे हैं जो एक शब्द ने आप पे बांध रखी हैं।

या यूं कहें कि आपको कोई पसंद आ भी जाता हैं और चार लोग मजाक उड़ायें की तेरा दिल इस पर आया है, तो आपका प्रेम हवा हो जाता हैं।

आप जब किसी के रूप ,रंग का मजाक बनाने लगते हैं, तब तो आप इंसान भी नही रह जाते फिर आपमें प्रेम कैसे घटित हो सकता हैं।

अपनी शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति करने को कृपया प्रेम नाम न दे।

आप अकसर उसी को तलाशते हैं जिसके साथ खड़े होने पर कोई आप पे हँसे ना। मतलब समाज की परिभाषा में जो सुंदर हैं आप सिर्फ उसी से प्यार कर पाते हैं।

आजकल हर प्रेम आखिर शरीर तक ही क्यों आ जाता हैं। या प्रेम का नाम ले, शरीर तक पहुंचना आसान हैं।

क्या आप राजा ययाति की तरह इतने ईमानदार नही हो सकते जो संसार की समस्त स्त्रियों के साथ भोग करना चाहते थे। संसार में आपके लिए दरवाजे आज भी खुले हैं पर दृष्टिकोण तो साफ हो।

आप दुनिया से ईमानदार हो न हो, अपने से आपको पूर्ण ईमानदार होना चाहिए।

जब आप अपनी कमजोरियों और इच्छाओं को ईमानदारी से देखने लगते हैं तो उनमे सुधार और संतुलन किया जा सकता हैं।

क्या हम एक झूठ में, जैसे कि कुछ लोग धर्म,जाती के नाम पे अंधे हो जाते हैं ,बहुत कुछ गलत नही कर रहे?

कोई प्रेमिका का गला काट देता हैं, कोई उसके पिता की हत्या, कोई तेजाब फेंक रहा हैं, कोई शादी न होने पर उसका बलात्कार कर देता हैं, कोई ब्याही प्रेमिका को जबरदस्ती भगा ले जाता हैं ....

प्रेम की कोई विचार धारा या विचार नही हो सकते क्योंकि जब आप प्रेम में होते हैं तो मुक्त होते हैं, पूर्ण होते हैं, निर्विचार होते हैं। नही तो प्रेम आपमे घटित नही हो सकता।

विचार से चिंता या डर तो पैदा हो सकते हैं मगर प्रेम नही, सच्ची श्रद्धा का भाव नही।

सच्ची आस्था और प्रेम तभी होते हैं जब आप अपने " मै" मे नही होते।

जब तक मेरा प्यार, मेरी वो, में उसके बिना, मेरे साथ ही क्यों, में उसको; यह मैं रहेगा , प्रेम ,श्रद्धा का आप अनुभव ही नही कर सकते।

और जो आप इस "मैं "के साथ, अनुभव कर रहे हैं वो आपकी जिद, जुनून, ईगो (अहंकार), प्रतिशोध, क्रोध या शरीर की कोई और इच्छा हो सकती हैं पर प्रेम नही हैं।

क्योंकि जब आप प्रेम की अवस्था मे होते हैं तो यह सब विचार और नुकसानदेह भाव आप मैं नही होते।

और हां ,दुनिया के सबसे बड़े जाहिल और कुटिल हृदय इंसान ने ये बात कही थी कि "प्रेम और जंग में सबकुछ जायज हैं"

क्योंकि न तो युद्ध मे इंसानियत की हद पार होनी चाहिये और न ही प्रेम में।

किसी भी वस्तु, बात या अनुभव की एक एस्थेटिक (aesthetic) वैल्यू होती हैं। अपनी मर्यादा, संयम तोड़ हम उसे गन्दा बना देते हैं। फिर मनुष्य की इच्छाशक्ति( will power) होने का कोई अर्थ नही रह जाता।

तो हम कहना क्या चाहते हैं?

किसी भी भाषा या शब्द का कार्य होता हैं कम्यूनिकेट करना( अपनी बात कहना) , जब मनुष्य के पास बोलने की भाषा न थी तब सिर्फ इशारों की भाषा( आंगिक) थी। पर विवेक, समझ और करूणा आप मे सदा से थी।

पर आज हम कुछ शब्दों के गुलाम बन के रह गए और अपनी समझ, करुणा खो बैठे।



जिनसे आधार और संदर्भ लिया गया हैं

अमृतवाणी - स्वामी अड़गड़ानंद जी