बुधवार, 7 अप्रैल 2021

कुम्हलाये फूल

ये साँझ को मन क्यों नहीं लगता। इतना अकेलापन ओर खालीपन क्यों घेर लेता है। 6 से 7 तो लगता है जैसे समय रुक सा गया हो।

7 बजे के बाद तो (राम - गरिमा के पति) इनके आने का रहता हैं तो खाने वग़ैरह में समय निकल जाता है।

गरिमा यही सोच उदासी सा भाव लिए छत पे टहल रही थी।

घर के पीछे की सड़क , ट्रेन के पुल के नीचे से हो, आगे हाईवे से जुड़ती है, ट्रकों की एक हम्म। सी आवाज़ आती ही रहती हैं, शाम को एक संगीत सी लगती हैं ये ध्वनि, एक लय एक ताल में।

सर्दियों के दिनों में अंधेरा जब जल्दी हो चलता हैं तो पुल पर से जाती ट्रेन की खिड़कियों से झाँकती रोशनी और झाँकती कितनी जिंदगियां।

क्या इन सब की जिंदगी भी लय और ताल में हैं या बेमेल सी,हमारी ही तरह।

घर में सब ही तो हैं, माताजी, पिताजी और देवर । कोई कमी भी नहीं, फिर भी कुछ तो हैं, जो नहीं हैं।

माताजी - बेटा, राम के आने का समय हो गया है।

गरिमा - आई मां

गरिमा खाने में व्यस्त।

स्कूटर की लाइट और आवाज़ सुन के गरिमा के चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती हैं।

पहली मंजिल की रसोई की खिड़की से राम को हेलमेट उतारती हुई देखती हैं।

गरिमा (मन ही मन) फॉर्मल ड्रेस में राम कितने सुंदर लगते हैं।

राम ऊपर आकर, जुते उतारकर सीधे रसोई में आते हैं।

राम - क्या बना रही हो

गरिमा - बैंगन भरता, आपको पसंद है ना इसलिए

राम - परसो तो बनाया था।

गरिमा - क्यों आपको नहीं खाना क्या आज।

राम - नहीं खाना हैं, मुझे तो बहुत पसंद है, पर मम्मी बोलेगी ना।।

गरिमा - कोई नहीं, उसकी आप टेंशन ना लो, कपड़े चेंज करलो और जल्दी से खालो, गरमा गरम हैं

राम - हां, खुशी के भाव में

सोने से पहले गरिमा और राम छत पर टहलते हुवे

गरिमा टहलते हुवे राम का हाथ पकड़ती हैं

राम - हाथ ना पकड़ो, कोई देखेगा, सब लोग (पड़ोसी) टहल रहे हैं

गरिमा - उदास और खिन्न होते हुवे - सब पकड़ के चलते हैं और मेरे पति का हाथ ना पकड़ू तो किसका पकड़ू

राम - मुझे ये सब लोगो के सामने चिपकना अच्छा नहीं लगता

गरिमा - राम तुम बहुत बदल गए हो

राम - कैसे

गरिमा - २ साल पहले जब अपनी शादी हुई थी तब कितना चिपकते थे, सगाई के बाद भी कितनी बातें किया करते थे, अब तो दिन में एक बार फोन भी नहीं करते हो

राम - बात को टालते हुए- ऐसा नहीं हैं। नई नई शादी होती है तब तो ऐसा होता ही हैं।

गरिमा - अब तो बस तुम्हारा मतलब होता है तभी तुम पूरे मेरे पास होते हो, नहीं तो लगता है कि मै कुछ हूं ही नहीं तुम्हारे लिए

बहुत अकेली महसूस करती हूं, ऐसा लगता है अब तो सारी इच्छाएं ही मर गई।

राम - अरे कुछ नहीं हैं ऐसा, देखो पहले कॉलेज लाइफ होती है, बहुत सारे दोस्त होते हैं, अब वो रुटीन नहीं हैं, एक जैसी लाइफ चलती रहती हैं तो ऐसा लगता है, धीरे धीरे इसकी भी आदत हो जाएगी, में भी कभी कभी बोर फील करता हूं

गरिमा - राम, क्या मै तुम्हे पसंद हूं

राम - ऐसा क्यों कह रही हो

गरिमा - तुमने मुझे 5 साल पहले शादी में देखा था, जैसा सब कहते हैं, मैने तो आपको नहीं देखा था, उसके 3 साल बाद आपके घर से ही मेरे लिए बात चली, मुझे इतनी जल्दी शादी नहीं करनी थी, मैने बस म ।ए। पास किया ही था। में 24 साल की थी और आप 29 के।

मैने पापा को कहा भी था कि लड़का तो बड़ा हैं, पर पापा ने कहा लड़का तुझे पसंद करता है और रिश्ता आगे से आया है।

मै यही सोच के खुश थी कि कोई मुझे भी पसंद करता है और मना नहीं कर पाई।

शुरू शुरू में ऐसा लगता भी था कि आप मेरे पीछे पागल हो पर अब लगता हैं कि सिर्फ शरीर के पीछे पागल थे या क्या पता सच में प्यार करते थे।

जब शादी के बाद हम गोवा घूमने गए थे, कितने अच्छे दिन थे, काश वो दिन वापस आ जाए

राम -अरे कुछ नहीं, तुम ज्यादा सोच रही हो, चलो सोने चलते हैं। काफी टाइम हो गया,तुम्हे कहीं घुमाने नहीं लेके गया। जल्द ही चलेंगे

गरिमा - हां चलते है ना, मेरा मन नहीं लग रहा काफी दिनों से

राम - ठीक है चलेंगे

गरिमा सो गई है, राम डिम लाइट में अपने में ही खोया हुआ है

उसके सामने 4 साल पहले की यादें उमड़ आयी और कोमल का मासूम चेहरा उसके नज़रों के सामने आ गया।

वक़्त गुज़र जाता है, बस बाते रह जाती हैं

वो पहली मुलाकात, बस यादें रह जाती है

4 साल पहले, दिल्ली, जनवरी महीना

राम और विनय जी बात करते हुवे

राम और विनय दोनो ने ही नई कंपनी जॉइन की और ट्रेनिंग के लिए कंपनी के दिल्ली के गेस्ट हाउस में रुके हुवे है। 6 दिन की ट्रेनिंग हैं।

गेस्ट हाउस की लॉबी में सोफे पर बैठे बात करते हुवे

राम - विनय सर, गेस्ट हाउस तो अच्छा है कंपनी का

विनय जी - हां भाई, अच्छा हैं, जिनका ये घर हैं वो इसी कंपनी के कर्मचारी हैं और मुंबई में उनकी ड्यूटी हैं तो अपना घर कंपनी को गेस्ट हाउस के तौर पर दे दिया है

राम - बड़े शहरों में कमाने के कितने चांस होते हैं

विनय जी - हां वो तो है ही भाई

राम - सर, आपको तो 15 साल से ऊपर हो गए होंगे

विनय जी - हां भाई 17 साल हो गए

राम - मुझे भी 5 साल हो गए सर, 20 का था,तब ट्रैनी लगा था

विनय जी - अब तो ब्रांच मैनेजर हैं, हमको देखो 17 साल बाद ब्रांच मैनेजर बने हैं

राम - आप सेल्स में लेट आए ना सर, पहले आपरेशन डिपार्टमेंट में थे ना

विनय जी - हां वो तो है भाई

राम उठ कर फ्रिज खोलते हुवे बोलता है

राम - सर फ्रिज में तो बियर रखी है

विनय जी - हां भाई होगी, कंपनी का गेस्ट हाउस हैं, कोई लाया होगा।

ये तीसरा वाला कमरा हैं ना इसमें से कोई 2 एम्पलॉइज अभी ऑफिस को निकले हैं

बालू गेस्ट हाउस का हाउस कीपींग देखता है

राम - बालू ये बियर किसकी है

बालू - वो दो, सर' हैं, कभी कभी ही आते हैं, उनकी हैं, पहले 2 महीने यही रहे थे अब तो नया रूम ले लिया है उन्होंने, पर कभी कबार आ जाते हैं।

आज से आप लोगो की ट्रेनिंग हैं ना, तो अब नहीं आएंगे कुछ दिन, सुबह ही लॉक लगा के निकल गए हैं।

राम- अच्छा तो दो ही रूम खाली हैं फिर, विनय सर, हम 4 लोग हैं ना, तो दो दो हो जाएंगे

विनय जी - हां

बालू - नहीं सर एक तो मैडम आ रहे हैं ना पंजाब से

राम - तो फिर क्या एक रूम में हम तीन लोग रहेंगे

बालू - वो तो नहीं पता सर, मैडम का कॉल आया था, कल सुबह आयेंगे। में तो सुबह 9 से शाम 7 बजे तक रहता हूं, तो आप दरवाजा खोल देना।

गार्ड साहब भी 6 बजे निकल जाएंगे, तब तक आए तो वो हैं, बाद में 9 बजे तक आप देख लेना, फिर तो में आ जाऊंगा।

राम - ठीक है बालू, हम बियर पी सकते हैं क्या रूम में

बालू - मुस्कुराते हुवे। - रूम क्या सर, हॉल (लौबी) में भी पी सकते हो।

कैमरे लगे हैं सर, बस हा हल्ला ना हो, नहीं तो कम्पलेन हो जाती हैं।

राम - हां वो तो है ही भाई, यहां ठेका कहां हैं

बालू -, गार्ड साहब ही ले आएंगे आप उनको बोल देना वैसे पास में ही हैं, सीधा जाके राइट मै हैं

राम - विनय सर आप पियोगे

विनय जी - हां भाई, अभी शाम हो ही गई है, बाहर चलेंगे तो ले आएंगे

राम - बालू किचन हम यूज कर सकते हैं क्या

बालू - हां सर, सामने ही किराना स्टोर हैं, दूध दही भी मिलता है, लेके आ जाओ और बनाओ। नॉन वेज का भी आगे हैं

राम - ओक फिर तो ठीक है

रात का समय, विनय और राम ड्रिंक करते हुवे लॉबी में बाते कर रहे हैं

विनय जी - एक पंकज नाम का लड़का है वो आने वाला था, आया नहीं और वो पंजाब से कोमल नाम की लड़की आने वाली हैं

राम - आप को नाम केसे पता सर, जानते हो क्या पहले से

विनय जी - नहीं, वो जिस रजिस्टर में एंट्री की थी ना अपन ने, उनमें उनका भी नाम लिखा है

राम को कोमल नाम सुन के अच्छा सा लगा, एक शांति सी महसूस हुई

राम - कहां से हैं ये लड़की, कोन सी सिटी से हैं

विनय जी - जलंधर से हैं शायद

राम - अच्छा, राम ड्रिंक करते हुवे

विनय जी -मेरा तो हो गया भाई

राम - एक ग्लास तो बीयर, हुई नहीं सर आपकी

विनय जी -भाई सोचा तो था ज्यादा पियेंगे पर हो गया अपना, चार बियर लाए थे अब तो वेस्ट ही होगी

राम - अरे सर में पीऊंगा अभी तो, और बाकी रही तो कल पियेंगे

विनय जी - अरे नहीं यार, कल तो वो लड़की आयेगी, वो अकेली होगी और वो लड़का भी आ गया तो,अच्छा नहीं लगता

राम - में तो पीऊंगा सर, अपनी पीने के बाद टॉक और व्यवहार में कोई बदलाव तो आता नहीं हैं। मै तो उलटा ज्यादा शांत हो जाता हूं।

विनय जी - लड़की के सामने इंप्रेशन खराब होता है रे और तो कुछ नहीं

राम - इंप्रेशन जमा के अपने को करना क्या है सर, में लड़कियों से थोड़ा दूर ही रहता हूं

विनय जी -क्यूं

राम - एक बार कॉलेज में इश्क में जले हुवे हैं सर, उसके बाद इनसे दूरी ही भली

विनय जी - अच्छा, कोई नहीं। में अब सोऊंगा

राम -ठीक हैं सर

राम के मन में एक खुशी, शांति सी, अच्छा सा महसूस हो रहा था। न चाहते हुए भी कल आने वाली लड़की के लिए उसके मन में एक उत्सुकता थी।

राम मन ही मन में सोचता हैं - अरे ये में क्या और क्यों सोच रहा हूं

कुछ देर और पीने के बाद सो जाता है

एक घंटे बाद

राम को महसूस होता है कि वो कोमल नाम का जप कर रहा है,नींद में ही,

राम - ये क्या,में पागल हो गया हूं, मन ही मन हंसता हैं और वापस सो जाता हैं

सुबह 6 बजे

विनय जी जी सो रहे हैं, राम उठ जाता है

राम - अरे मेरी नींद जल्दी केसे खुल गई, में तो घर पर भी 8 बजे तक सोता हूं

फिर कोमल का याद आता है तो बाहर जाके देखता है, अभी तो कोई नहीं आया।

राम - विनय जी में नहाने जा रहा हूं, वो लड़की आए तो गेट खोल देना, गार्ड नहीं है शायद।

विनय जी नींद में ही - ठीक है, तू इतनी जल्दी क्यों बाथ ले रहा है

राम -अब उठ ही गया हूं तो सर तो।

राम कोमल को अच्छा दिखना चाहता है, जल्दी से तैयार होने लगता है।

विनय जी वापस सो जाते हैं

राम शेविंग दो दिन में एक बार ही करता है पर आज वो कर रहा था।

राम तैयार होके बाहर आता ही है कि, तभी टैक्सी की आवाज़ सुनाई देती हैं

राम हॉल की खिड़की से कोमल को देखता है, बीच में एक पेड़ होने की वजह से साफ नहीं देख पा रहा था।

पर लोवर में एक लंबी भरी पूरी सी लड़की, लंबे घने बाल, 5 फूट 7 इंच की,23,24 साल की आकर्षक लड़की

उसके साथ एक लड़का भी हैं, राम को लगता है वो पंकज होगा।

राम गेट खोलता है

राम - आइये

कोमल अपना सामान लॉबी में रखती हैं और सोफे पर बैठती है, उसके साथ वो लड़का भी बैठ जाता है

राम सोचता हैं ये पंकज होगा और पहले से इस कंपनी में ये दोनों होंगे, एक दूसरे को जानते होंगे, शायद गर्ल फ्रेंड, बॉय फ्रेंड होंगे।

राम आगे बढ़कर बात करता है

राम - आप कोमल हो ना

कोमल - हां

राम लड़के से - और आप पंकज हैं ना

लड़का - नहीं में तो दीदी को ड्रॉप करने आया हूं

कोमल - ये मेरा कजिन हैं,रात की बस थी तो

राम -ओके,ये सीढ़ी के पास वाला दूसरा रूम आप ले लीजिए

कोमल - ठीक है

कोमल सामान उठाती हैं और रूम में जाती हैं, राम भी अपने रूम में चला जाता है और रेस्ट करने लगता है

सुबह 9 बजे

विनय जी तैयार होके लॉबी में आ गए हैं, राम भी तैयार हो के बैठा है

विनय जी - अभी निकलना चाहिए, नहीं तो लेट हो जायेगें

कोमल का भाई, कमरे से बाहर आते हुए, इस रूम की चाबी नहीं है क्या?

राम - चाबी तो होगी ही, अभी यहां एक लड़का काम करता बालू, वो आएगा तो दे देगा

कुछ देर में बालू आता है, चाबी मिलने के बाद कोमल का भाई चला जाता है।

विनय जी, 9:20 हो गई, चले क्या

राम - ये भी तो ट्रेनिंग में ही जाएंगे

विनय जी - बात करले तो

राम कोमल को गेट के बाहर से पूछता है, आप चल रहे हो क्या ट्रेनिंग में

कोमल - बस 5 मिनट, आयि

पहला दिन

विनय जी और राम टैक्सी कर लेते हैं, तभी तक कोमल भी आ जाती हैं

कोमल ने एक जीन्स और शेर की डिजाइन का टॉप पहन रखा था, वो जितनी सुंदर लग रही थी उतनी ही शादगी उसके चेहरे पे थी

राम पहले टैक्सी में बैठ जाता है, कोमल विनय जी को बैठने को कहती हैं, और फिर बैठ जाती हैं

राम को लगता है जैसे उसने ज्यादा बात की तो लड़की उसे गलत समझ रही हैं, वो अपने आप को संभाल कर बैठ जाता है।

टैक्सी नेहरू पैलेस से होते हुवे, कमल सिनेमा पहुंचती हैं।

एक घंटे के इस सफर में राम कोमल को नहीं देखता है, उसे वैसे भी किसी लड़की के ज्यादा करीब जाने से डर लगता है और शायद कोमल उसे चिपकू समझ रही थी

विनय जी पेमैंट करते हैं, कोमल अपना पेमेंट देने लगती हैं तो विनय जी कहते हैं हम बाद में हिसाब कर लेंगे।

ऑफिस में एक छोटे मीटिंग रूम में

कोमल, विनय जी, पंकज और राम बैठे हैं और बातें कर रहे हैं। एच। आर। मैनेजर सब का इंट्रोडक्शन करवा के गए हैं और ट्रेनिंग मैनेजर के आने से पहले उनको आपस में बात करने का और ऑफिस देखने का बोल के गए हैं

राम - पंकज से - अरे सर आप गेस्ट हाउस नहीं आए

पंकज बहुत सीधा सा, थोडा कम हाईट का पहाड़ी लड़का हैं, पूरे बाल ऊपर की तरफ बनाता हैं

पंकज - अरे राठौड़ साहब( राम से ) सर मत बोलो। मेरे भैया का रूम ऑफिस के पास ही हैं, तो इतना दूर कहां जाता, आप कोन कोन लोग हो वहां

राम - में, आप मैडम और विनय सर

पंकज - अच्छा, अभी 3 दिन के बाद, ऑल इंडिया की ट्रेनिंग भी तो हैं फिर तो होटल में ही होगा सब का स्टे

राम -पता नहीं,जेसे एच। आर। बोलेंगे, कर लेंगे

सब आपस में अपने एक्सपीरिएंस बता रहे होते हैं, पंकज कोमल में काफी दिलचस्पी ले रहा होता है, राम ये देख रहा होता है और सोचता हैं कि चलो इनका सुरु हुआ, पर, अपने को क्या

राम कुछ शेयर कर रहा होता है तभी

कोमल - ( राम के लिए)- इसकी आवाज़ कितनी प्यारी है

राम को अपनी आवाज़ तो कभी अच्छी लगी नहीं और कभी किसी ने ऐसा बोला भी नहीं। पर राम को सुन के अच्छा लगा

ऐसा क्या है जो मेरा मन इसकी तरफ बहे जा रहा है(राम), पर राम ये सब कोमल पे जाहिर नहीं होने देना चाहता था

राम - मेरी आवाज़, मेरी तो हिंदी में भी राजस्थानी असेंट है

कोमल - तभी तो अच्छी लग रही हैं, वो सीरियल में बोलते हैं ना -" ए भाया" और खुल के हंसती है

राम, विनय जी और पंकज भी हंसता हैं

राम को भी कोमल का हिंदी में पंजाबी एसेंट लुभाता है पर वो कुछ नहीं बोलता

कोमल मीटिंग रूम से बाहर निकल कर ऑफिस के कुछ जान पहचान के स्टाफ से मिल रही होती हैं, राम उसको इधर उधर जाते हुवे देखता रहता है।

शाम का समय गेस्ट हाउस में 7 बजे

कोमल - विनय जी आप मुझे बहुत क्यूट लगे, बहुत कम लोगों के साथ ना सेफ महसूस करती है लड़कियां। आप में ना फ़ैमिली वाली फीलिंग आती है

विनय जी - मुझे भी तू सिस्टर जैसी लगती हैं

कोमल - खाने का क्या करेंगे

विनय जी - ले आएंगे बाहर से, क्या खाओगे

कोमल - में तो बटर चिकन

राम - मेरा भी सेम

विनय - चल राम ले आते हैं

सब खाना खाते हैं और फिर सब बातें करते हैं

कोमल विनय जी से ही ज्यादा बात कर रही होती है, राम समझ जाता है तो वो बात करना कम कर देता है

कोमल - चाय कोन कोन पियेगा

दोनो हां कर देते हैं

तीनो चाय पी रहे होते हैं

विनय जी - अब सोएंगे यार, आज थकान काफी हो गई। (कोमल को) आप की भी तो रात की बस थी रेस्ट कर लो

कोमल - अभी 15 मिनट सोई थी, थोड़ी देर बाद देखते हैं

राम - सर ड्रिंक करोगे

विनय जी - अरे नहीं रेे

कोमल - तू ड्रिंक करता है

राम - रेगुलर नहीं पर कभी कभी

कोमल - यहां नहीं पीना नहीं तो में कम्पलेन कर दूंगी

राम - आपको क्या प्रॉबलम हैं, मैं तो सिगरेट भी पिता हूं, वैसे भी मैने बालू ओर गार्ड साहब को बता रखा है। कंपनी गेस्ट हाउस हैं यार

कोमल - हां, सिगरेट पीते तो मैने तुझे आज आफ्टर लंच देखा भी था

राम - सिगरेट तो में बाहर जाके भी पी सकता हूं ताकि आपको परेशानी ना हो बट ड्रिंक तो

कोमल - पर अभी तो चाय पी हैं, खाना खाया हैं

राम - मेरे को चलता है

कोमल - फिर तो ये ज्यादा पीता हैं

विनय जी - नहीं ये कभी कभार ही पीता हैं, अभी ट्रेनिंग में है तो, आप डरो नहीं सीधा लड़का हैं, अच्छे घर का लड़का हैं

कोमल - क्यूं अपने आप को खराब कर रहा है

विनय जी सोने चले जाते हैं

कोमल वहीं बैठी हैं, राम पीने में लगा हैं

कोमल - ड्रिंक के अलावा, तुम्हे क्या अच्छा लगता है

कोमल ने चश्मा लगा रखा होता है, राम को कोमल और भी अच्छी लगती हैं, वही लोवर और हलका लूज टॉप पहना होता है, उसके घने बाल उसको और सुंदर बना रहे हैं

राम - मुझे उन लोगो से बातें करना अच्छा लगता है जो मुझे अट्रैक्ट करते हैं या अच्छे लगते हैं, लड़को के साथ तो इसमें प्रॉबलम नहीं हैं बट गर्ल्स काफी इसको अदरवाइज ले लेती हैं, उनको लगता है मेरे पे लाइन मार रहा होगा

काश मै यूरोप में पैदा होता,वहां ये गैप नहीं हैं लड़के लड़की का

कोमल - बाते तेरी अच्छी है, अच्छा लड़का हैं,क्यूं अपने आप को वेस्ट कर रहा है, कहीं इन्वेस्ट कर अपने को सही जगह पर

काफी देर दोनो बातें करते हैं, एक दूसरे को ऐसा लगता है जैसे सालो से जानते हो, राम कोमल को विनय जी वाली बात बताता है कि चार बियर लाए और विनय जी आधी ग्लास में ही सेट हो गए

कोमल सोफे पर बैठी,पैर उठा के, ताली बजा के जोर से हंसती हैं, उसका चोर दांत राम को दिखता हैं, कोमल की हँसी राम को बहुत प्यारी लगती हैं

कोमल से आंखे मिलती हैं तो ऐसा लगता है जैसे समय ठहर गया हो, बारिश का मौसम हैं, और मधुर धुन मौसम में घुली हैं।

बीच में कोमल एक बार फिर चाय बनाती हैं, राम कोमल को चाय बनाते हुवे देखता है, एक बार कोमल भी देखती हैं, स्माइल करती हैं, पूछती हैं क्या हुआ, राम कहता हैं कुछ नहीं

राम का दिल जैसे पतझड़ के बाद फिर हरा हो गया हो, बातें करते हुवे 2 बज जाती हैं।

कोमल -अब सोये

राम - हां

राम बड़ा शांत सा, खुश सा फील करता है, सोने चला जाता है

दूसरा दिन

सुबह टैक्सी में कोमल फिर पहले विनय जी को ही बैठने का बोलती हैं, पर राम को बुरा नहीं लगता, वो नजर बचा बचा के कोमल को देखता है।

आज मीटिंग रूम में कोमल और राम एक दूसरे से काफी बात करते हैं, पंकज को भी समझ आ जाता है,दोनो का एक दूसरे को बार बार देखना और उनकी खुशी।

शाम को गेस्ट हाउस में खाने के बाद राम ड्रिंक कर रहा है और विनय जी और कोमल से बात करता है, कुछ भूतो की स्टोरीज भी राम सुनाता हैं,

कोमल - फ़ैमिली में कौन कौन हैं तेरे और क्या करते हैं

विनय जी - ये स्ट्रॉन्ग फ़ैमिली से हैं, सब बहुत अच्छा हैं

कोमल - - अच्छा

कुछ देर बाद विनय जी सोने चले जाते हैं

कोमल - चाय पियेगा

राम - हां

कोमल - ड्रिंक के बीच में चाय केसे पी लेता है

राम - चलता है मेरे को

कोमल - चाय बना के लाती हैं, सोफे पर बैठती हैं- पता हैं मेरा बापू बहुत पिता था, मै नवी क्लास में थी,तभी चला गया

राम - ओह

कोमल - बहुत सारी प्रॉपर्टी थी उसकी, प्रॉपर्टी डीलर था, अभी भी एक ज़मीन का केस में काफी सालो से लड़ रही हूं

राम - अच्छा तुम, क्या ऐज है तुम्हारी

कोमल - 23 साल,

राम - बड़ा हिम्मत का काम इतनी ऐज में ये सब संभालना

कोमल -,पापा ने जो भी कमाया, हमे मिला नहीं, ज्यादातर उनके पार्टनर ही खा गए, नवी क्लास से काम कर रही हूं, कभी कहीं, कभी कहीं

में बड़ी जल्दी बड़ी हो गई थी, मेरा भाई छोटा हैं, बड़ी बहन मुझसे 2 साल बड़ी है, वो भी काम करती हैं, पर बहुत सीधी है,सो सारा काम मुझे ही देखना होता है ये कोर्ट वाला और सब

राम - सैल्यूट हैं, कम ही लड़कियां इस ऐज में इतनी मैच्योर होती है, तुम्हे देख के लगता नहीं तुम इतना सब झेल रही हो

कोमल - पता है मेरी बहन बहुत सुंदर हैं, फोटो दिखाती हैं

राम - हां सुंदर तो हैं

कोमल - शादी करेगा इससे

राम -पागल हो गई हो क्या

कोमल - क्यूं,मेंरी बहन के लिए मै लड़का नहीं देखूंगी तो कोन देखेगा

राम - फ़ैमिली वाले

कोमल - कौन फ़ैमिली वाले, उन्होंने तो हमारे पुस्तेनी मकान पे भी कब्जा कर रखा है, हम जलनधर में रहते हैं, मामाजी के फ्रेंड का घर है वहां, वो फ़ैमिली बाहर रहती है, नहीं तो रोड़ पे होते

मैने कहा था ना तुझे, मै तुझे कहीं इन्वेस्ट करना चाहती हूं, वो में तुझे सिस्टर के लिए ही सोच रही थी, तू मुझे अच्छा लगा पहली बार में, लेकिन फिर सिगरेट और ड्रिंक का देख के चुप हो गई

राम - कमाल हो आप तो

पर हमारे साथ ये पॉसिबल नहीं हैं, में राजपूत कम्यूनिटी से हूं, वहां हमारी जात में भी सारे गांव पता करके और फिर रिश्ता करते हैं, अलग कास्ट या धर्म तो बहुत दूर की बात है

कोमल -पर ये तो गलत हैं ना, फिर क्या करते हैं, लड़का लड़की को मार देते हैं

राम - अरे ऐसा नहीं हैं, मेरे मां बाप खुद ही हार्ट अटैक से मारे जाएंगे ये सुन के, की मैने कहीं और शादी की हैं, सीधे लोग है, मार पिट उनके स्वभाव में नहीं हैं

कोमल - आज के टाइम में भी ऐसा चलता है

राम - कई घरवाले अपने ही बच्चो को घर से बाहर कर देते हैं, समाज के लोग ऐसे लोगो से फिर रिश्ता भी नहीं करते।

गलत तो हैं ये सब, इंसान तो सब एक ही हैं। पर अब वो पुराने लोग हैं नहीं समझ पाएंगे।

शॉर्ट में - हमको इश्क़ करने की इजाज़त नहीं हैं।

कोमल - बाप रे, फिर अगर उस लड़के को कुछ हो जाए तो उस लड़की को भी अपनाएंगे नहीं

राम - हां

कोमल - फिर वो लड़की तो अपने ही घर पे बोझ बन जाएगी।

क्या बेकार बात हैं, ऐसे लोगो के साथ कभी रिश्ता ना करू मेरी बहन का

राम - हां यही सही हैं

राम -तूम्हारे हाथ पर ये निशान केसा

कोमल - मेरा भाई जब छोटा था तो उसने बिजली की तार पकड़ ली थी, घर के ऊपर से ही लाइन जाती थी, मैं वहीं थी, मै भाई को पकड़ के गिरी, उसी से ये हाथ जल गया था

राम - तुम्हे कुछ ज्यादा भी हो सकता था

कोमल - मेंरा भाई बहुत प्यारा है, उसे केसे कुछ होने देती, 

राम - बुरा ना मानो तो तुम्हारे हाथ को छु के देखूं

कोमल कुछ नहीं बोलती हैं

राम जले हुवे निशान को छूता है, पहले एक उंगली से, फिर 2 से, फिर पूरे हाथ से

कोमल - बस बस हो गया

राम पीछे हटता हैं

राम - पता हैं, मुझे हाथ देखना आता हैं

कोमल - अच्छा

राम - तुम्हारा देखूं

कोमल - दूर से

राम हाथ देखते हुवे कोमल की लकीरों को अपनी उंगली से टच करता हैं

कोमल रात बहुत हो गई है सोए, फिर से 2 बज गए हैं

तीसरा दिन

राम जब कोमल को ट्रेनिंग के लिए बुलाने गया, कोमल छोटे सफेद फूल से इयररिंग पहन रही थी, कोमल ने ब्लू जीन्स पे व्हाइट शर्ट पहन रखा था।

राम बस उसे देखे जा रहा था, राम का देखना कोमल को भी अच्छा लग रहा था, कुछ देर बाद

कोमल - हंसते हुवे - जाओ आती हूं

राम वहीं खड़ा रहता है और सोनू निगम का गाना गुनगुनाने लगता है जो उसने कुछ ही दिन पहले सुना था

तेरी शर्ट दा, में ता बटन सोनिए।।

कोमल रेडी हो जाती हैं, राम और विनय जी के साथ ऑफिस निकल जाती हैं

ट्रेनिंग में राम की नज़रे बार बार कोमल पे चली ही जाती है ।

शाम को आते वक़्त कोमल टैक्सी में पहले बैठ गई, राम उसके पास में बैठ गया। कोमल के बाल उड़ उड़ कर राम पे आ रहे थे, राम कोमल को बस देखे जा रहा था।

कोमल भी जानती थी कि राम उसे देख रहा है, कोमल बहुत खुश लग रही होती है, उसके गालों की लाली का रंग आज अलग ही लग रहा होता है।

राम के मन का और दिल्ली का मौसम बड़ा खुशनुमा हो रखा होता है

राम के मुंह से एकाएक सा निकल पड़ता हैं

राम - आई लव यू

कोमल - हंसती हैं और कहती है आई लव यू टू और फिर हंसती हैं

विनय जी - अरे ये क्या

कोमल और राम एक दूसरे को देख के हसने लग जाते हैं

शाम को खाने के बाद वहीं तीनो का एक साथ बैठना ओर बातें करते हैं

विनय जी - कल तो होटल शिफ्ट होना हैं

राम - हां सर आपका, मेरा और पंकज का रूम एक साथ हैं

कोमल - हमारी भी पंजाब से टीम आ रही हैं, मेरा, स्वाति और सोनल का रूम एक साथ हैं

विनय जी - में तो यार होटल में नहीं रुकूंगा, होटल के पास ही कॉलोनी में एक स्कूल फ्रेंड का घर हैं, उसकी बीवी अभी मायके गए हुई हैं सो वो जिद कर रहा है

राम - अरे सर कहां जा रहे हो, गप्पे मारेंगे,एंजॉय करेंगे

कोमल - हां विनय जी

विनय जी - दिन भर तो रहूंगा ही, बस रात को जाऊंगा, तेरे और पंकज के भी आराम हो जाएगा, वैसे भी अब इतनी बातें कहां कर पाएंगे, अभी 3 लोग हैं, कल 300 के ऊपर स्ट्रेंथ होगी।

और बॉसेस भी होंगे, तो सब यही बोलेंगे, अपनी अपनी स्टेट टीम के साथ रहे, ज्यादा इधर उधर जाओगे तो बातें भी बन जाती हैं और सीनियर्स की नजर में आ जाते हैं

विनय जी कुछ देर में सोने चले जाते हैं

कोमल चाय बना के लाती हैं

कोमल - आज ड्रिंक नहीं कर रहा

राम - नहीं तुझे भी तो पता चले की होश में भी में वैसा ही हूं, जैसा पीने के बाद

आज मैने जो आई लव यू बोला उसको दिल पे नहीं लेना। तुम मुझे बड़ी अच्छी लगी बट तुम्हे पता है ना

कोमल - हां की तुम लोगो को इश्क़ करने की इजाज़त नहीं हैं

राम - हां पर मुझे अच्छा फील हो रहा है, आगे कुछ बनना नहीं हैं हमारा, पर जिसके मन में प्यार हो वहीं प्यार को समझ सकता है। और शायद प्यार से भरा इंसान,सब को प्यार भी कर सकता है

कोमल -अच्छा तो तू सच में प्यार करता है

राम - वैसा नहीं की जैसा फिल्मों में होता है कि तेरे बिना जी नहीं सकता,

एक अच्छा एहसास हैं, तू दूर भी रहेगी तो भी तकलीफ नहीं हैं, बड़ा पॉजिटिव टाइप का अहसास हैं।

कोमल - ओये मुझे कोई प्यार व्यार नहीं हैं,तूने बोला था,तो मैने भी बोल दिया था

तू अच्छा दोस्त हैं, बड़ा प्यारा हैं, मुझे अपना सा लगता है, बाकी कुछ नहीं

राम - तू ऐसा मान ले

कोमल - ओर मुझे ऐसे रिश्ते ही अच्छे लगते हैं और ऐसे रिश्ते ही चलते हैं

नहीं तो यहां कोन देखने वाला,जो मर्जी करो, पर तेरे से ना मुझे जिंदगी भर के लिए दोस्ती रखनी है

राम - यार उसकी में गारंटी नहीं दे सकता, मै तो यहां से जाने के बाद तुझसे बात भी नहीं करने वाला

कोमल - क्यूं, कोई नहीं,मै तुझे कॉल कर लूंगी

राम - नहीं यार वो सब शायद मुझसे ना हो

कोमल - क्यूं शाले मुझसे बात नहीं करेगा

राम - मेरे कुछ पुराने एक्सपीरिएंस अच्छे नहीं रहे

कोमल - में तो करूंगी

दोनो काफी देर एक दूसरे से बातें करते हैं

कोमल -वही 2 बज गए, कमीने तेरी बातें खत्म ही नहीं होती

दोनो फिर बातों मै लग जाते हैं, दोनो की छवि एक दूसरे में जैसे घुल सी जाती हैं। सुबह के चार बज जाते हैं

दोनो एक दूसरे को देखते हैं, स्माइल करते है

कोमल - चल सोते हैं, कल पूरे दिन की ट्रेनिंग हैं

चोथा दिन

सब अपने अपने रूम में सेटल हो जाते हैं और 9 बजे ट्रेनिंग सुरु हो जाती हैं।

कोमल थोड़ी आगे को बैठी हैं अपनी पंजाब टीम के साथ, राम विनय जी के साथ,राजस्थान टीम में, और पंकज हिमाचल की टीम में

राम की नजर रह रह कर कोमल पे ही चली जाती हैं, कोमल की नजर भी हर इंटर्ववेल में राम ही को ढूंढती रहती हैं

लंच टाइम में कोमल और राम एक साथ बैठ के ही लंच करते हैं

उनमें कोई डर या शर्म का भाव नहीं आता, उनकी ईमानदारी उनकी ताकत बन जाती हैं, वो सबसे आंख मिला कर बात करते हैं और साथ में भी हैं।

लंच के बाद ट्रैनिंग में कोमल राम के पास आके बैठ जाती हैं

शाम को ट्रेनिंग खत्म होने के बाद, सब लोग पुराने लोगो से मिलते हैं। राम को इस सेम इंडस्ट्री में 5 साल हो गए, वो भी कई लोगो से मिलता है जो इसी कंपनी में आ गए थे

कुछ देर बाद सब चेंज करके इधर उधर घूमते हैं

कोमल - चल कमिने, मुझे आज जो पढ़ाया, रिवीजन करा उसका

राम - कहां समझाऊं

कोमल - इधर ही होटल लॉबी में

राम - हां फिर ठीक है, मैने सोचा रूम में ओर भी लड़कियां हैं, फालतु बात बनेगी

दोनो लॉबी में बैठ कर बातें कर रहे होते हैं

तभी कोमल की फ्रेंड्स स्वाती और सोनल आती हैं, कोमल सब का इंट्रोडक्शन राम से कराती हैं और बताती हैं कि वो स्टडी कर रहे हैं, कल मॉर्निंग एग्जाम के लिए, सोनल चली जाती हैं, स्वाति वहीं बैठ जाती हैं ।

कुछ देर में पंकज और विनय जी भी आ जाते हैं। विनय जी बात करके अपने दोस्त के वहां निकल जाते हैं।

स्वाति पंकज में बहुत घुल जाती हैं।

कोमल राम को बताती है कि पंकज के बारे में स्वाति पूछ रही थी आज ट्रेनिंग में,

इसका कोई बॉयफ्रेंड था उसकी शक्ल पंकज से मिलती है थोड़ी

राम और कोमल एक दूसरे की ,स्टडी में भी, कंपैनी एन्जॉय करते हैं

कुछ देर डिनर के बाद, पंकज और स्वाति चले जाते हैं

राम और कोमल फिर वहीं लॉबी में बैठ के बातें करते हैं।

राम को कई कलीग उसे ड्रिंक का ऑफर करते हैं वो सबको मना कर देता हूं।

कुछ खास जान पहचान वालो को भी

कोमल उसे कहती भी हैं कि,जाना चाहो तो चले जाओ, पर राम मना कर देता है

दोनो बातों में घुल जाते हैं, बीच में कोमल चाय बी ऑर्डर करती हैं

बातें करते करते 12 कब बज जाती हैं, पता ही नहीं चलता

कुछ 7,8 कलीग बाहर से आते हैं ड्रिंक किए हुवे, उसमे एक राम के जान पहचान का होता है

अन्ना - क्या कर रहे हो राम

कोमल - हम स्टडी कर रहे हैं

अन्ना - तो हम भी थोड़ी स्टडी कर लेते हैं, टौंटिंग अंदाज़ में

अन्ना की हरकतें ट्रेनिंग में भी बदमाश की तरह होती है और वह और बाकी लोग दिखने में भी बदमाश की तरह लगते हैं

सब लोग वहीं बैठ जाते हैं, कोमल घबरा जाती हैं, वो कहती हैं

कोमल - राम में निकलती हूं

राम - तुम रुको

राम अन्ना और बाकी लोगों को देख के, गुस्से में, पर शांत आवाज़ में, उनसे कहता है

राम - अभी तो तुम सब लोग पिए हुवे हो, सुबह होश में आओ फिर में तुम्हे अच्छे से स्टडी करवाता हूं

अन्ना समझ जाता है

अन्ना - अच्छा में चलता हूं

सब लोग निकल जाते हैं

राम - कोमल तुम जा क्यूं रही थी

कोमल - सब लोग आ गए थे, मुझे लगा कोई बात बढ़ जाएगी

राम - तुम तो मुझे अपना मानती हो ना, कोई भी एरा गेरा मेरे पास आके बैठ जाएगा तो तुम चली जाओगी क्या

कोमल को अफसोस होता है

कोमल - जब तक तुम नहीं कहोगे में तुम्हारे पास से अब कभी नहीं जाऊंगी, में थोडा डर भी गई थी, ओकवर्ड सा लग रहा था

राम - कोई बात नहीं

कोमल के कंधे पर हाथ रखता हैं और रूम तक ड्रॉप करके आता है

5वा दिन

आज कोमल नीले और हरे कलर का पंजाबी सूट पहन के आती हैं, वो बहुत मासूम और सादगी भरी लगती हैं

राम की आंखे बार बार उसपे जाती हैं

ट्रेनर का आज टॉपिक ही ड्रेसिंग सैंस था, वो कोमल के ड्रेसिंग सैंस की तारीफ भी करता हैं

राम और कोमल पूरे ट्रेनिंग में आस पास ही रहते हैं

शाम को कोमल और राम लॉबी में बातें करते हैं

राम - यार ये ट्रेनर कितना कांफिडेंट हैं ना, मुझे बड़ा अच्छा लगा

कोमल - हां वो बड़ा अच्छा हैं पर तू उससे भी बेटर हैं, तू किसी से कम नहीं

तेरी भी एक टोर हैं, तू बड़ा क्वालिटी वाला इंसान हैं

सिगरेट दारू में अपने को वेस्ट ना कर

राम - ठीक हैं में गिव अप की कोशिश करूंगा

कोमल - राम तू सच में जाने के बाद मुझसे बात नहीं करेगा

राम - हां, यही मेरे लिए और तुम्हारे लिए अच्छा है

कोमल - राम एक बात बोलूं

राम - हां

कोमल - मेरी आंखें ना हरदम तुम्हे ही ढूंढती रहती हैं

आंखे बंद करके सोती हूं तो तुम्हारा चेहरा और बातें सामने आ जाती है, मुझे बड़ी खुशी सी होती है, शांत हो जाती हूं, बड़ा अच्छा अच्छा लगता है

राम - अच्छा, सच्ची

पता हैं मुझे ऐसा गेस्ट हाउस में भी लगता था, पर वहां मैने अपने को समझाया कि तुम अकेली लड़की हो और बहुत बाते हुई हैं तो शायद लगता होगा

पर अब तो खूब हैं पर नजर कहीं नहीं जाती, तुम्हे ही नज़रे तलाश करती रहती हैं

जब रूम में जाता हूं, पंकज बात भी करता है, तो भी आंखें बंध कर तुम्हे ही देखता हूं, बहुत खुश होता हूं।

किसी की बात सुनाई ही नहीं देती,मन करता है कोई कुछ ना बोले

बस तुम्हारे ध्यान में डूबा रहूं

कोमल - क्या कर दिया तूने, मुझे भी यही सब लगता हैं

दोनो एक दूसरे को देख के हंसते हैं

कोमल अपने घर के बारे में बहुत सारी बातें बताती हैं, बाते करते करते काफी देर हो जाती हैं

दोनो सोने चले जाते हैं

छटवा दिन

लंच में राम ट्रेनर को अपनी तबीयत खराब होने का हवाला दे, ऑफ ले लेता है

वो कोमल को मेसेज करता हैं की वो उसके रूम में आ जाए

राम मन ही मन सोचता हैं वो कुछ गलत तो नहीं सोचेगी मेरे बारे में,

वो रूम का दरवाज़ा थोड़ा खोल भी लेता है ताकि अगर वो आए जाए तो उसके बारे में कोई बुरा ना सोचे

आधे घंटे बाद कोमल आती हैं

आज ब्लू जीन्स पे ब्लैक टॉप पहन रखा था

राम - बुरा ना मानो तो एक बात बोलूं

कोमल - हां

राम - कल हम चले जाएंगे, में तुम्हे गले लगाना चाहता हूं

कोमल कुछ नहीं कहती बस खड़ी रहती हैं

राम पास आता है कोमल के हाथ को अपने हाथ में लेता हैं

कोमल के हाथ की गरमास राम के हृदय में उतर जाती हैं

कोमल कुछ नहीं कहती तो राम उसे गले लगाता है

कोमल भी उसे गले लगाती हैं, सामने आइना होता है, दोनो उसमे एक दूसरे को देखते हैं

राम - तुम्हारे शोल्डर वाइड हैं, तुमपे टीशर्ट और टॉप बड़े अच्छे लगते हैं

तुम पहले दिन आई थी तब मैने तुम्हे विंडो से देखा था और तुम मुझे बहुत अच्छी लगी थी

कोमल - अच्छा, मुझे लगा हमारा नेचर और परवरिश शायद एक जैसी हैं इसलिए में तुम्हे अच्छी लगी

राम - हां वो तो है ही, पर तुम अट्रैक्टिव बहुत हो

कोमल - सच्ची

राम - हां, राम अपनी सारी बातें बताता हैं जो उसने पहले दिन से फील की

राम - मेरे मन में,तुम्हे छूना जरूरी नहीं लगा, मै तुम्हारे पास भी होता हूं तो बहुत सेटिस्फाई और खुश होता हूं

पर ऐसा खास लगाव और इतने पॉजिटिव रिश्ते की एक याद साथ रखनी थी कि तुम मेरी हो

कोमल उसे फिर से गले लगाती हैं

कोमल अब जाने का कहती हैं, ट्रेनिंग खत्म होने वाली हैं

राम भी हां कहता है।

ट्रेनिंग के बाद कोमल राम से लॉबी में मिलती है

कोमल - राम सुबह मेरी ट्रेन हैं, आज बाहर चले, मुझे तुझे एक गिफ्ट देना हैं

राम - क्यूं तो, वैसे भी सर्दी ज्यादा हैं

कोमल - मेरा मन हैं

राम - अच्छा फिर सभी चलते हैं

कोमल, राम, पंकज, विनय जी, स्वाति सब चलते हैं

पैदल ही सब घूमने निकल जाते हैं

सर्दी बहुत तेज होती है, कोमल जैकेट में राम को बहुत सुंदर लगती हैं

बीकानेर वाला रेस्ट्रौंट में पास पानी पूरी खाते हैं, कोमल एक गिफ्ट शॉप से राम को एक गिफ्ट लेकर देती हैं

काफी घूमने के बाद, और बाहर ही खाना खाने के बाद वापस आते हैं

होटल की तरफ चलते हुवे

राम - कोमल मै दिल्ली पहले भी आ चुका हूं पर कभी मुझे अच्छा नहीं लगा

आज पहली बार दिल्ली कि रात अच्छी लग रही हैं।

रोज अखबारों में दिल्ली की रेप की खबरे पढ़ के इस शहर में घूमने से भी डर लगता हैं

पर आज मुझ में कोई डर नहीं हैं, कोई चिंता भी नहीं

तुम्हारे साथ क्या केमिस्ट्री हैं, मेरे अंदर कोई डर नहीं

कोमल - हां में भी बहुत फ्री महसूस कर रही हूं

होटल आते आते 11 बज जाते हैं,होटल आके देखते हैं तो कोमल और स्वाति का रूम अन्दर से लॉक होता हैं

गेट काफी नोक करने के बाद में भी कोई दरवाजा नहीं खोलता, स्वाति कॉल भी नहीं उठाती हैं

सब रिसेप्सन पे जाके रूम में कॉल करने का बोलते हैं

एक रिंग जाने के बाद कोई फोन को उठा साइड में रख देता हैं

रिसेप्शनिस्ट मास्टर की। ले साथ चलता है पर डोर की चिटकनी अन्दर से बंद होने की वजह से ओपन नहीं होता

सब उससे पूछते हैं कोई रूम खाली है क्या आज, पर होटल पैक होता है

राम - अब क्या कर सकते हैं, हद दर्जे की बेवकूफी हैं

हम तो लड़के हैं, कोई बात नहीं लड़कियां क्या करेगी

स्वाति - अरे वो संदीप नाम का लड़का हैं, उसकी सोनिया से सगाई हुई हैं, वो ही अंदर होगा

पंकज - पर गलत है ना, अब रात को क्या करेंगे

स्वाति - बॉस को भी बताएं तो बात बढ़ जाएगी

राम - विनय जी भी चले गए, अब तो गप्पे मारो और क्या

वापस लोबी की तरफ आते हुवे दो कलिग को लिफ्ट में ही सोता हुआ पाते हैं

राम - ये देखो पीके पड़े हैं

सब लॉबी में बैठते हैं, चाय का आर्डर करते हैं

स्वाति - तुम्हारे रूम में और कोन हैं

पंकज - हम दो ही हैं

स्वाति - तो तुम्हारे रूम में चलते है यहां तो सर्दी भी बहुत हैं

राम - नहीं यार बातें बन जाएगी, रात का टाइम हैं

स्वाति - तुम बोलो तो बॉस से बात करूं

राम - नहीं नहीं

स्वाति - यार होटल हैं, सिर्फ हमारे लोग थोड़ी हैं, हर आता जाता देख रहा है, 12:30 हो गई है, 4बजे तक तो बाहर निकलेंगे, तब हम चले जाएंगे

राम को बात ठीक लगती हैं, रात भर तो सबकी नजरों में आएंगे

राम - ठीक हैं चलो

राम रूम में बेड पर लेट जाता है, रजाई को पैर पर डाल देता है,कोमल पास में ही बैठ जाती हैं

राम कोमल का हाथ पकड़ लेता है, रजाई ऊपर होने से कोई देख नहीं पाता, दोनो को एक दूसरे के हाथ का अहसास अच्छा लगता है

राम को ऐसा लगता है जैसे सारा जहान मिल गया हो।

स्वाति और पंकज सामने की चेयर पर बैठे हैं, सब बातें कर रहे हैं।

स्वाति की नीयत पंकज पर अच्छी नहीं होती, उसके पंकज को देखने के अंदाज़ से ही राम और कोमल को साफ साफ दिख रहा होता हैं

कुछ देर बाद

स्वाति - अब में और नहीं बैठ सकती,मुझे नींद आ रही हैं

राम को कॉर्नर पे खिसकने को बोलती हैं, कोमल को बीच में बैठने का बोलती हैं और खुद लेट जाती हैं

स्वाति - पंकज कितनी देर चेयर पर बैठोगे, आ जाओ रेस्ट कर लो, 1:30 तो हो ही गए हैं

पंकज - नही नहीं में ठीक हूं

स्वाति - अरे कमर तो सीधी कर लो, चेयर पर कब तक बैठे रहोगे, राम भी तो बैठा ही है, लेटना मत, बैठ तो जाओ

पंकज - अरे नहीं में ठीक हूं

स्वाति - गुस्से से - तो लाइट बंद करो

कोमल - राम में भी सोऊंगी, मेरा सर दर्द हो रहा है

राम - हां आप आराम करो

कोमल रजाई ओढ़ सो जाती हैं, राम बेड के कॉर्नर पर ही सहारा लिए बैठा हैं

स्वाति - लाइट बन्द करो पंकज

पंकज लाइट बन्द करता हैं, स्वाति खड़ी होती है पंकज का हाथ पकड़,खेंच के अपने पास कॉर्नर पर लेटा देती हैं

स्वाति - खा नहीं जाऊंगी पंकज आपको, 2 घंटे रेस्ट भी कर लो

राम आप भी लेट जाओ, बी मैच्योर

राम भी लेट जाता है

कुछ देर में सब सो जाते हैं पर राम को नींद नहीं आती

राम को कोमल की सांसों की आवाज़ सुनाई देती हैं

राम कोमल की तरफ मुंह करके सोता हैं

कमरे में गहरा अंधेरा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा

राम हिम्मत करके अपना हाथ कोमल के सर पर रखता हैं

उसके सॉफ्ट बालों को छूता हैं

थोडा ओर करीब होता है तो कोमल की नाक,राम की नाक को लगती हैं

एक पल के लिए सब खो गया, संसार जैसे रुक सा गया

राम सोचता हैं, क्या मुझे किस्स कर लेना चाहिए

पर कोई उतावलापन मुझ में क्यों नहीं हैं, इसकी ज़रूरत भी मुझे क्यूं नहीं लग रही।

ये क्या अहसास हैं की में खुश हूं, संतुष्ट हूं, सुखी हूं, इतना भरा भरा हूं।

कोई दुनियाँ की नज़र से देखे तो मुझे मूर्ख ही बोले शायद

इस लड़की के साथ ये क्या रिश्ता है कि शरीर की कोई जरूरतें ही न रही।

अपने आप को कितना पूरा महसूस कर रहा हूं

आज किसी की कमी नहीं, में अधूरा नहीं।

क्या यही प्रेम हैं और सुना हैं प्रेम अपने में पूर्ण होता है

मैने इतना भी कहां सोचा था कि ऐसे हालात बनेंगे, इसके साथ रात भर रहूंगा, इतना पास

कोई भगवान है तो आज उसे शुक्रिया कहता हूं

राम कोमल पे हाथ रख सो जाता है

कोमल का भी हाथ राम पे आता है, दोनो ऐसे ही सो जाते हैं

सुबह 6 बजे राम उठता है

राम - कोमल उठो 6 बज गए हैं

कोमल, स्वाति रूम को चले जाते हैं

राम कॉल कर के पूछता हैं, कोमल बताती हैं कि रूम खुला हैं

राम फिर से सो जाता है

दोपहर 1 बजे रेलवे स्टेशन

विनय जी, पंकज राम कोमल को स्टेशन ड्रॉप करने आए हैं

कोमल के मामाजी, मम्मी और भाई किसी कारण से दिल्ली आए हुवे हैं, वो आने ही वाले होते हैं

कोमल - तू ड्रॉप करने आया, अच्छा लगा

राम -नहीं आता क्या

कोमल -मैने विनय जी से तेरे नंबर लिए हैं, तूने तो दिए नहीं, कभी कभी बात कर लेना

राम - नहीं वो में नहीं करूंगा

तभी कोमल की फ़ैमिली आती हैं, कोमल सब से इंट्रोडक्शन करवाती हैं

कोमल की ट्रेन लगी हुई हैं मामाजी सामान रखने की जल्दी करते है,सब मदद करते हैं

ट्रेन के जाने का टाइम ही होता है, राम ग्लास से धुंधली सी कोमल को देखता है

गोल्डन कलर सूट में, हाइ हील में कोमल परी सी लगती हैं

कोमल को राम साफ सा दिखता है, राम स्माइल करता है

कोमल के मन में एक हूक सी उठती हैं वो दौड़ के बाहर आती हैं

और सब के सामने कश के राम को गले लगा लेती हैं

अलार्म बजता हैं

गरिमा का मासूम चेहरा उदासी लपेटे सोया हुआ हैं

राम मन ही मन - मैने ही कहा था, प्यार भरा मन सबसे प्यार कर सकता है

राम गरिमा को बड़े प्यार से चूमता हैं

गरिमा जग जाती हैं

गरिमा - क्या हुआ जी

राम - कुछ नहीं, गोवा घूमने चलोगी

गरिमा का चेहरा खुशी से खिल जाता है, कहती हैं - हाँ।

अधूरी आश

फ्लैट की खिड़की से सुबह की धूप में ये फूलों की क्यारियां कितनी अच्छी लग रही है . रोड से लगातार गाड़ियों की आवाज फ्लैट तक आती ही रहती हैं. पर अच्छा भी है, इससे मन लगा रहता है.

जब राजदीप (किरण के पति) ऑफिस चले जाते हैं तब ये गाड़ियां अकेलापन महसूस नहीं होने देती है ;ऐसा लगता है अकेली नहीं हूं बहुत सारे लोगों के बीच हूं।

चाय का सिप लेते हुए किरण यही सोच रहे थी।

हम हैं भी तो दो ही जने यहां, जयपुर जो आ गए राजदीप ।   

मां बाबूजी ,इनके छोटे भाई सब बनारस ही हैं।

यह शहर भी बड़ा सुन्दर है बस यहां गंगा नहीं बहती ।

तभी राजदीप स्नान करके बाहर आए, ऑफिस के लिए तैयार होने लगे।

किरण - आप की चाय टेबल पर रख दूं।

राजदीप - हां

राजदीप अखबार के पन्ने पलटते हुवे , बड़ी जल्दी में अखबार पढ़ते हुवे,

राजदीप ने अपनी चाय उठाई ओर किरण की तरफ देखते हुवे बोला।

राजदीप- आज काफी खुश लग रही हो.

किरण - हां , आज बड़ा अच्छा सा लग रहा है, ऐसा मन कर रहा है अपनी पसंद के गाने सुनू, बहुत दिनों बाद ऐसा लग रहा है.

राजदीप - मुस्कुराते हुवे, अच्छी बात है, तुम्हारा मन तो लगा, मुझे तो डर था अनजान शहर में तुम्हारा मन केसे लगेगा।

राजदीप - अच्छा में अब निकलता हूं, बैग उठाते हुवे। अपना ध्यान रखना, कुछ बात हो तो कॉल कर लेना।

किरण - हां, ध्यान से जाना।

राजदीप - हां, मुस्कुराते हुवे।

किरण ने दरवाजा लगा दिया। ओर बेडरूम में चली गई थी।

घर का काम आज किरण ने जल्दी कर दिया था ओर तैयार भी जल्दी हो गई थी. 

किरण आइने के सामने बैठी हुई, एक खुशी एक उमंग अपने मन में महसूस कर रही थी।

किरण धीरे धीरे गुनगुनाते हुवे -

' जाना पिया के देश, मोहे जाना पिया के देश

मनवा , बदले है कितने भेष..जाना पीया के देश।

शादी को 3 साल हो गए, राजदीप ने हमेशा सम्मान व प्यार दिया पर आज भी दीपांशु का चेहरा आंखो के सामने रहता है।

उसकी वो हसीं, मीठी मीठी बातें, उसकी बरोनी, मासूम सा चेहरा, उसके कान भी बड़े सुन्दर लगते थे मुझे।

मेरे भाई का दोस्त था वो, अगली गली में ही रहता था, पर, कभी उसके घर के आगे से निकलने की हिम्मत ना हुई मेरी।

घरवाले कहीं जाने ही नहीं देते थे,वो पड़ोस के गुड्डी दीदी ने भाग के क्या शादी कर ली, सब घरवाले को लगता था कि सब लड़किया ही भाग जाएगी।

में तो थी भी अकेली लड़की पूरे परिवार में.

ना बाबा ना अपने बस का नहीं ,कहीं भागना, मुझे तो बड़ा डर लगता था, ये सब सोचते हुवे भी।

बी. ए. करने के बाद मैने ताऊजी का एनजीओ यूंही जॉइन कर लिया था, वहां दीपांशु भी काम करता था. पहले पहल में कितना डरती थी , हिचकिचाती थी उससे बात करते हुवे.

पर वो बातूनी बातें करवा ही लेता था. उसके ख्वाब भी कितने बड़े थे, बिजनेस करूंगा बस एक दो साल में कुछ पैसे इक्कठे कर लूं ,ऐसा कहता था. आज वो बिजनेस करता भी हैं ,कुछ तो बात हैं उसमें।

कैसे मैरा मन चुरा ले गया. उसने तो पूछा भी था भागना है क्या ? पर ये सब मेरे बस की बात कहां थी, आज तो फिर भी कुछ जानती हूं पहले तो बस कोरी थी, कुछ भी तो नहीं पता था, बी. ए. करके भी ऐसा लगता था अनपढ़ ही हूं ,कुछ भी तो नहीं जानती थी. लोग केसे भागने की हिम्मत कर लेते है.

पापा का नाम खराब हो जाता, भाई कभी भी मुझसे बात ना करता, मां तो मर ही जाती, उस वक़्त मुझसे ये सब ना हुआ.

पापा ने राजदीप से शादी करवा दी, कहा -'जानता हूं इस परिवार को अच्छा घर हैं, लड़का भी अच्छा है ओर तू खुश रहेगी'।

राजदीप सच में अच्छे इंसान है, मैने भी उन्हें अपना ही लिया पर कहीं ना कहीं एक अधूरापन, एक टीश सी हैं।

अगर में दीपांशु के साथ होती, उस वक़्त हिम्मत कर लेती तो क्या जिंदगी कुछ ओर ही होती।

दीपांशु ने भी तो शादी के बाद बात करना बंद कर दिया था, बहुत कम ही बात करता है, सामने आ भी जाए तो बस हां हूं ही करता है।

वो नाराज़ था, शादी से पहले वो मेरे साथ आगे बढ़ना चाहता था अगर उस दिन अपने मन को काबू में करके, नहीं भागती तो क्या से क्या हो जाता. कहां मुझमें इतनी हिम्मत थी ये सब करने की.

अब सोचती हूं क्या वो होने देना चाहिए था ?

नहीं नहीं वो तो गलत ही होता।

उसके बाद से ही दीपांशु नाराज़ रहने लग गया था, फिर तो मेरी शादी ही हो गई थी. अब फिर भी जनाब( दीपांशु) कभी कभी बात कर लेते हैं.

मैने राजदीप को बताया भी था कि दीपांशु मेरा अच्छा दोस्त है ओर वो काफी अच्छा लड़का है.

आज दीपांशु जयपुर आया हुआ है, मुझसे मिलने भी आ रहा है। मैने राजदीप को बताया कि दीपांशु जयपुर है, हो सकता है मिलने आए, पर पक्का भी नहीं है।

मैने राजदीप से क्यूं छुपाया, पर दीपांशु ने भी तो कहा था की वो अकेले में ही मिलना चाहता है, उसे कुछ जरूरी बात करनी है.

कहीं वो कुछ बदमाशी तो नहीं करेगा ?

पर में उसको संभाल सकती हूं।

अरे नहीं नहीं ,ये भी मैं क्या सोच रही हूं, अब तो उसकी शादी को भी २ साल हो गए.

किरण का मन ऐसे ही बातें सोच सोच के हिलोरे ले रहा था.

तभी घंटी बजी ।..

किरण भागती सी दरवाजे पे गई। दरवाजा खोला

संभल कर बोली - आओ दीपांशु, केसे हो.

दीपांशु- हल्का मुस्कुराते हुवे, ठीक हूं किरण, तुम केसी हो.

किरण - बैठो पानी लाती हूं, चाय पियोगे ना.

दीपांशु - चाय नहीं, मैं, जल्दी निकलूंगा।

किरण - क्या.. , अभी तो आए हो, अभी से जाने की बाते, बैठो.

दीपांशु - पर चाय नहीं सिर्फ पानी.

किरण - ठीक है.

दीपांशु का चेहरा मुरझाया सा था, उदासी परेशानी चेहरे पर थी.

किरण दीपांशु को देखते हुवे ,नजर भी तो नहीं मिला रहा है, कभी घर को देख रहा ओर कभी फर्श को.

किरण - क्या हुआ, थके से लग रहे हो

दीपांशु - नहीं सब ठीक है, ओर सब केसे है, राजदीप जी ओर सब घर में

किरण - सब बढ़िया है, तुम सुनाओ रमा ( दीपांशु की पत्नी) कैसी है ओर अंकल आंटी

दीपांशु - सब बढ़िया हैं

किरण पानी का ग्लास पकड़ाते हुवे ओर दीपांशु से आंखें मिलाते हुवे

किरण - तुमने तो भुला ही दिया दीपांशु।

दीपांशु - नहीं ऐसी..

किरण बीच में ही बात काटते हुवे

किरण- कभी बात नहीं, कितने फोन मिलाएं थे मैने, सामने भी आ जाते तो बस इग्नोर करके निकल जाते। मैने बताया था ना तुम्हे ये भागना वागना मेरे बस का नहीं। तुम थे कि गुस्सा पकड़ के बैठे थे। अरे शादी नहीं हुई तो क्या दोस्ती का रिश्ता भी नहीं रख सकते थे क्या.

दीपांशु - चौंकते हुवे, तुम इतनी बेबाक कब से हो गई.

किरण - संभलते हुवे, मुस्कुराने लगी. हां नहीं तो क्या. पहले मन की बात नहीं कह पाती थी पर अब कह तो देती हूं, अच्छा लगे या बुरा, कोई परवाह नहीं

दीपांशु - अच्छी बात हैं

किरण - में तुम्हे कभी भुला नहीं पाई दीपांशु, तुम्हारा चेहरा ,बातें ,हरदम मेरे साथ रहती हैं, जब भी अकेली होती हूं, तुम मेरे साथ होते हो. ऐसा प्यार तो मेरा राजदीप के लिए भी नहीं है.

वो इतने अच्छे इंसान हैं,

क्या मैने उनके ओर अपने साथ गलत किया?

क्या में तुम्हारे साथ भाग जाती तो सही होता..?

दीपांशु - टोकते हुवे, रुको रुको किरण, मेरी बात सुनो

किरण - हां

दीपांशु - तुम्हारा प्यार सच्चा है किरण, में जानता हूं, इन तीन सालों में भी ,मैं

वो देख पा रहा था ओर वो ही मुझे डरा भी रहा था.

किरण - डरा रहा था? समझी नहीं..

दीपांशु - किरण मेरी बात ध्यान से सुन ना, एक कहानी समझ कर, वादा करो इसे दिल पे नहीं लगाओगी तो में बोलु, नहीं तो में चला जाता हूं।

किरण - क्या बात है

दीपांशु - पहले वादा करो, तुम ध्यान से सुनोगी ओर समझोगी

किरण - ठीक है

दीपांशु - किरण तुम्हे याद होगा जब हम पहली बार एनजीओ में मिले थे.

किरण - हां

दीपांशु - बोलो मत सिर्फ सुनो.

किरण - सिर हिलाते हुवे

दीपांशु - मैने जब तुम्हे पहली बार देखा, तुम मुझे पसन्द नहीं थी. पर उम्र कहो या बेईमानी में तुम्हे अपना बनाना चाहता था, मुझे सिर्फ शरीर पाना था, जो और लड़के भी करते थे, मेरे दोस्त लोगो के भी किस्से थे, में भी ऐसा ही कुछ करना चाहता था.

किरण - हं...

दीपांशु - सिर्फ सुनो अभी, पर जब तुमसे बातें करने लगा , तुम्हे समझने लगा, मुझे तुमसे कुछ और मिलने लगा , ओर शरीर की भूख कहीं खो गई. पर प्यार में तुमसे तब भी नहीं करता था.

किरण के गालों पर आसुं बहने लगे.

दीपांशु - अभी सुनो किरण

किरण - हम्म।.. आसुं हटाते हुवे

दीपांशु - जितना समय में तुम्हारे साथ रहा,मैने जिंदगी को अलग नजरिए से जाना.

एक दिन तुम्हे याद होगा मैने आगे बढ़ने की भी कोशिश की पर तुम्हारे ना कहने पर आगे नहीं बढ़ पाया. वो ठहराव भी मैने तुमसे पाया.

पर जब तुम्हारी शादी की बात हुई तो में खुश भी था कि ये सही घर चली जाएगी ओर जो जूठ मैने प्यार के नाम पे बुना था उससे में आजाद हो जाऊंगा.

तुम्हारी शादी के बाद मैने इसीलिए तुम से दूरी बना ली की अब सब ठीक हो गया है.

किरण - तो अब क्यूं बता रहे हो.

दीपांशु - तुम जब भी मुझसे टकराई हो ,तुम्हारी आंखों में मैने वो कशिश देखी हैं, वो टिस देखी है, वो काश देखा है जो मेरे जैसे आदमी के लिए ठीक नहीं था.

कुछ पाप दिखते नहीं है किसीको , पर पापी को तो पता होता है ना उसने क्या किया है.

दीपांशु भावुक होते हुवे व संभलते हुवे.

पर अब में खुद को रोक नहीं पाया, मुझे तुमसे कहना ही था.

ये बात तुम्हे चोट पहुंचा सकती थी, तोड़ सकती थी, सो फोन पे नहीं बताना चाहता था. बनारस में कहना भी मुश्किल था, बस इसी काम से जयपुर आया था सिर्फ तुमसे मिलने.

किरण - अपने आसुं साफ करते हुवे.

दीपांशु - मुझे माफ़ करदो किरण

किरण - कोई बात नहीं.. रोते हुवे

दीपांशु - अगर तुम मुझे दोबारा कॉल करोगी तो अब एक सच्चा दोस्त तुमसे बात करेगा, कोई बहरूपिया नहीं.

नहीं भी करोगी ,तो भी कोई बात नहीं , पर में तुमपे भरोसा करता हूं कि तुम कोई गलत काम नहीं करोगी, तुम्हे में जितना जानता हूं तुम बहुत हिम्मत वाली लड़की हो.

अब में चलता हूं. दोबारा बुलाओगी तो तब मिलने आऊंगा जब राजदीप जी घर में होंगे.

दीपांशु उठ कर जाते हुवे, एक बार को रुकता है ओर पूछता है

दीपांशु - कुछ कहना चाहती हो किरण..

किरण खड़ी होके, आसुं साफ करते हुवे

किरण - कुछ नहीं, हल्का मुस्कुराते हुवे, तुम एक अच्छे इंसान हो दीपांशु

दीपांशु एक पल किरण को देखता है ओर बिना कुछ बोले निकल जाता हैं

किरण जाके सोफे पर बैठती है, एक लम्बी सांस लेती हैं, पानी का ग्लास उठाती ,पानी पीती हैं, फिर एक लम्बी सांस लेती हैं, फिर कुछ सोचती हैं ओर मुस्कुराती है.

किरण गुनगुनाते लगती है

जाना पिया के देश, मोहे जाना पिया के देश

मनवा बदले है कितने भेष..जाना पीया के देश।

किरण रसोई की तरफ जाती हैं

किरण - आज में गूंजे बनाऊंगी , राजदीप को गूंजे बड़े पसंद है, किरण के सामने राजदीप का चेहरा आ जाता है ओर वो हसने लगती हैं फिर गुनगुनाती हैं

जाना पिया के देश, मोहे जाना पिया के देश

मनवा बदले है कितने भेष..जाना पीया के देश।

गुन्नू का चेतक

4 साल का गुन्नू सुबह से ही परेशान सा घूम रहा था। किसी के पास उसके साथ खेलने का समय नहीं था।

पापा ऑफिस के लिए तैयार हो रहे थे ओर मम्मी घर के काम कर रही थी।

गुन्नू दौड़ते हुवे पापा के पास जाता है।

गुन्नू - पापा मुझे जंगल घूमने जाना है, आप साथ चलो ना

पापा - टाई ठीक करते हुवे, बेटा पापा को ऑफिस जाना है ना, शाम को आता हूं फिर चलते हैं, कार की चाबी उठाते हुवे

गुन्नू मम्मी के पास दौड़ के जाते हुवे

गुन्नू - मम्मा मुझे जंगल घूमने जाना है।

मम्मी - बेटा में तो काम में लगी हूं, अभी झाड़ू भी नहीं लगा हैं, तू फोन देख ले

गुन्नू -नहीं मुझे जंगल घूमने जाना है

मम्मी - अकेला केसे जाएगा

गुन्नू - अपने घोड़े चेतक पर चला जाऊंगा।

मम्मी - अच्छी बात है, कहां है चेतक

गुन्नू - आओ मेरे घोड़े

तभी काले रंग का बलिष्ठ सुडौल शरीर का बलवान घोड़ा आता है। उसके काले घने बाल लहलहा रहे हैं। वो जोर से हिनहिनाता है हिन्न...

गुन्नू ये रो घोड़ा

मम्मी मुस्कुराती हैं

घोड़ा - आप हबराइए नहीं माताश्री में गुन्नू को जंगल घुमा लाऊंगा, ओर मालिक को कुछ नहीं होने दूंगा

गुन्नू मुस्कुराता हुआ बहुत खुश हो जाता हैं।

मम्मी - ठीक है पर टाइम से घर आ जाना गुन्नू

गुन्नू -हा मम्मा, घोड़े पर बैठते हुवे, चल मेरे घोड़े।।।

घोड़ा भागता है, शहर की सड़कें पार करते हुवे, बहुत दूर ,नदी पार करके जंगल की तरफ चलता हैं।

जंगल में बड़े बड़े पेड़ थे जो ऐसा लग रहा था आसमान को छू रहे हैं।

सूरज की रोशनी भी छन छन के कम ही आ रही थी।

पक्षियों ओर तोतो की आवाज़ें आ रही थी

गुन्नू बहुत खुश हो रहा था

गुन्नू ओर चेतक जंगल के काफी अन्दर तक आ गए थे

कुछ ओर दूर चलने के बाद

शेर के दहाड़ने की आवाज़ आई।

गुन्नू डर सा गया ओर चेतक से बोला

गुन्नू - अब क्या करेंगे घोड़े

चेतक - डरिए नहीं मालिक मैंने माताश्री से वादा किया था आपको कुछ नहीं होने दूंगा

तभी सामने से शेर आ जाता है

शेर - में इस बच्चे को खा जाऊंगा

गुन्नू डर सा जाता हैं

घोड़े अपने दोनो पैर आगे के उठाता हैं ओर जोर से हिनहिनाते हुवे धनाधन शेर पे वार करता है

शेर डर से भागता है ओर कहता है

शेर - हे राम इसने तो मेरी कमर ही तोड़ दी

तब तक चेतक भी वहां से गुन्नू को भगा ले जाता हैं

गुन्नू ओर चेतक आगे बढ़ते हैं

अब जंगल का नदी वाला भाग आ गया था , एक तरफ नदी ओर एक तरफ पहाड़, पतली सी पगडंडी पे चेतक चला जा रहा था, जंगल काफी गहरा ओर सटा हुआ था, गुन्नू को जंगल बहुत अच्छा तो लग रहा था पर डर भी लग रहा था।

कुछ देर के चलने के बाद एक काला सांप सामने आया

सांप - पतली आवाज़ में - इस बच्चे को तो में खा जाऊंगा।

गुन्नू डर जाता है

चेतक - डरिए नहीं मालिक, ये आपको छू भी नहीं पायेगा

चेतक पीछे की दोनो टांगे उठाता है ओर धड़ाम धड़ाम मारता है

सांप - हाय राम, मेरी तो ढुई तोड़ दी, कचूमर निकाल दिया र

चेतक ओर गुन्नू मुस्कुराते हुवे आगे बढ़ते हैं

गुन्नू - चेतक ओर तेज, मुझे बहुत मज़ा आ रहा है

चेतक लगातार दौड़ता हैं, शाम सी होने वाली होती हैं, काफी दूर चलने के बाद एक खुला मैदान आता है, सूरज भी पहाड़ी में ढलने वाला ही था।

खुले मैदान में एक भेंसो का झुंड था, एक तरफ नदी अभी भी बह रही थी।

चेतक को पता था, पहाड़ी के सहारे से ही नदी के पास से होते हुवे शहर को रास्ता निकल जाएगा, शाम भी होने वाली थी ओर घर भी जाना था

तभी भेसों के सरदार, जिसने नाक में बड़ी सी बालि पहनी थी, भारी आवाज़ में बोला

भैंसा - तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमारे इलाके में आने की, यहां आने से तो शेर भी डरता हैं।

तुम आ ही गए हो तो अब जा नहीं पाओगे, कुचल के मार दिए जाओगे

चेतक खतरे को भांप गया

चेतक - मालिक मुझे कस के पकड़ लेना, हमे बहुत ऊंची छलांग लगाने होगी

गुन्नू - हां मेरे प्यारे घोड़े

चेतक जहां मार्ग उंचाई की तरफ होता हैं, वहां की तरफ दौड़ता हैं, भैंसे भी उसकी तरफ दौड़ते है, चेतक अपनी गति तेज कर देता,उंचाई पे चड़के, लम्बी छलांग लगाता हैं ओर भैंसो के ऊपर से निकल जाता है, भैंसे पीछे मुड़ के देखते हैं।

चेतक अपनी गति ओर तेज कर देता है

गुन्नू - ओर तेज प्यारे घोड़े ओर तेज , मम्मा बहुत प्यार करेंगे, चने वाली दाल खिलाएंगे

चेतक जंगल ओर खतरे दोनो से बाहर आ जाता हैं, चेतक दौड़ते हुवे घर तक आता हैं, गुन्नू घोड़े से उतर के मम्मा के पास भागता हैं

गुन्नू - मम्मा, मम्मा घोड़े ने मेरी जान बचाई, शेर से, सांप से ओर भैंसो से

मम्मी- शबास चेतक ओर मम्मी चेतक को प्यार करती हैं गुन्नू बहुत खुश होता है।

आवारा इश्क़

सन 2003, जुलाई महीना, राज को 20 वा साल लगने वाला था।

आज से वो कॉलेज जाने वाला था।

राज जो सौ बातें जानता था और सौ बातों से अनभिज्ञ।

एक अजीबोगरीब पर्सनलिटी, अपने बारे में बहुत कुछ जानते हुए भी, अपने से, बहुत अनजान भी था।

स्कूल की पूरी पढ़ाई कुछ ख़ास और सुंदर दोस्तो के साथ हुई।

पांच छह अच्छे दोस्त, जिसमे वो सबसे छोटा था। सारे छोटे मोटे निर्णय, काम सब दोस्त ही करते थे।

अपनी अक्ल लगाने की जरूरत न थी।

नवी वलास में सब दोस्तो ने स्कूल बदला,उसी स्कूल में राज भी चला गया।

दोस्तो से जरूरी कुछ भी न था, वो ही खुशी थे, बाते करने के साथी और जिंदगी भी।

राज के लिए दोस्ती बहुत महत्व रखती थी और वो दोस्तो को चाहता भी बहुत था। दोस्त भी सब उससे ज्यादा ही काबिल थे सो ऊपरवाले ने पूरी स्कूलिंग में साथ बनाये रखा।

दशवीं तक जिंदगी में खास परेशानी न थी, दोस्तो के साथ हँसी खुशी जिंदगी गुजर रही थी।

बस पैसों की तंगी का रोना लगा रहता था। राज अपने दोस्तों में सबसे गरीब ही था। दौ कमरों के गंदे से दिखने वाले मकान में रहता था।

ऊपर से जॉइंट फैमिली थी तो कई चीजों का अभाव था और पिताजी कम ही सुना करते थे।

कुछ तो उनको घर को अच्छा दिखाने में कोई दिलचस्पी ही न थी, कुछ पैसों की तंगी भी थी।

पर फिर भी सब ठीक ही था।

राज पढ़ाई में होशियार था, दशवीं अच्छे नम्बरों से पास हुई। ग्यारवी में कुछ दोस्तों ने मैथमेटिक्स ली थी और राज होशियार था तो घरवालो ने भी उसे मैथमेटिक्स दिलवा दी।

यही से बखेड़ा शुरू हो गया, जॉइंट फैमिली में बटवारा शुरू हो गया और झगड़े भी, उसी वक़्त पिताजी की नौकरी भी जाति रही।

वैसे ही तंगी थी,अब उसका विकराल रूप था।

घर की परेशानी सिर पर हावी हो गयी, और गणित समझ से दूर।

ट्यूशन के पैसे न थे, पिताजी जैसे तैसे करवा रहे थे पर मन न लगता था।

आर्ट्स लेने की कोशिश की पर घरवाले इंजीनयर ही बनाना चाहते थे।

राज चाहता था अच्छा बुरा कोई काम करके घर की मदद कर दे।

पर उसमे ना ही इतनी समझ थी,ना ही लगन।

हाथ जोड़ कर कई मास्टर से फीस माफ करवाई, कई से कम।

साथ साथ उसका आत्म विश्वास भी कम हो रहा था।

होशियार राज बाहरवी में ग्रेस से पास हुआ।

सारे दोस्त जहां इंजीनियरिंग और डॉक्टर्स की तैयारी करने कोटा निकल गए।

राज का दिमाग अब साइंस में न लगता था, वो आर्ट्स लेना चाहता था।

घर से चिल्ला चिल्ला के झगड़े किये पर उन्होंने प्रेशर बना इंजीनियरिंग का एग्जाम दिलवा दिया।

नई कॉलेजेस खूब आयी थी उस वक़्त, तो बेकार पेपर होने के बाद भी कुछ कॉलेज एडमिशन के लिए तैयार हो गई।

इंजीनिरिंग का खर्चा राज को पता था सो एडमिशन नही लिया और साइंस की कॉलेज के लिए फॉर्म भरा।

सरकारी कॉलेज का खर्चा दौ हजार से ज्यादा न था।

अब राज बिल्कुल अकेला था, सारे विश्वास पात्र दोस्त दूर हो गए थे और अब उसे सारे निर्णय खुद करने थे।

बचपन से ही बहुत शूरवीरो की कहानियां सुन वो बड़ा हुआ सो खुद को बहादुर और संस्कारी ही समझता था।

पैसा नही था पर अपने आप को किसी से छोटा भी न समझता था।

घरवालो ने उसे कॉलेज की काउंसलिंग के लिए अकेले ही भेज दिया।

यहीं से राज की पागलपन की कहानी शुरू होती हैं।

राज सरकारी कॉलेज की लाइन में फॉर्म लिए खड़ा था, तभी उसकी नज़र दूसरी लाइन में खड़ी एक लड़की पर गयी।

मासूम चेहरा, झुकी सी नज़र, प्यारी सी आवाज़, सलवार सूट में सादगी सी मूरत, राज देखता ही रह गया।

उसी लाइन में स्कूल का एक क्लासमेट खड़ा था, उससे बात हुई,उसने कहा- कहाँ सरकारी कॉलेज में जा रहे हो, प्राइवेट में आ जाओ, मस्ती करेंगे।

वो लड़की उसी लाइन में थी, राज भी खड़ा हो गया।

कॉलेज में साल की 13000 की फीस थी, अभी पांच हज़ार जमा कराने थे।

पिताजी के पास आया तो वो चोंक गए -पांच हज़ार कहाँ से लाएंगे इतने पैसे?

राज ने कहां वही से जहां से आप मुझे इंजीनियरिंग करवाने वाले थे।

कॉलेज में एडमिशन हो गया।

और आज उसका पहला दिन था।

अब कॉलेज के साथ प्रॉब्लम ये थी कि उसका ड्रेस कोड नही था।

स्कूल में तो एक ही ड्रेस होती हैं तो गरीब अमीर बच्चे का पता नही लगता था।

राज के पास घर मे पहनने की 2 ड्रेस और एक शादी ब्याह की थी।

और गाड़ी के नाम पे रेसर साईकल।

अच्छी बात थी राज कुछ भी छिपाने में विश्वास नही करता था, वो सबके सामने साईकल लेके जाता था।

कॉलेज में रैगिंग का ज़माना था सो बचने के लिए एक मुक्का मारने वाली क्लिप जेब मे लेके गया।

दाड़ी मूँछ बड़ा के गया, जितनी भी आयी हो।

पर कॉलेज बड़ा अजीब लगा पहले दिन।

कॉलेज में घुसते ही जो अध्य्क्ष पद के दावेदार थे अपना इंट्रोडक्शन दे रहे थे।

जो बदमाश दिख रहे थे वो सीधे निकले और जो सीधे लग रहे थे वो बदमाश।

राज ने एटीट्यूड ही ऐसा बना रखा था कि रैगिंग तो नही हुई,उल्टा कई लोगो ने आगे बढ़ कर बात की।

2003, बेल बॉटम की फैशन फिर से आई थी, एनटाइसर बाइक आयी थी।

जवान चेहरे रंग बिरंगे कपड़ो के साथ बारिश के बाद धुले हुवे,साफ नज़ारे से लग रहे थे।

सब के चेहरे पर हँसी, मस्ती और उम्मीदे बता रही थी कि जिंदगी यहाँ मस्त मगन हो नाच रही हो जैसे

इस रंगीन नज़ारे में ब्लैक पेंट और वाइट शर्ट,जिसमे शर्ट थोड़ा लंबा और बाहर था और अलग दिखने के लिए जूतियां भी पहन रखी थी।

दूसरे तीसरे दिन ही वो लड़की भी दिख गयी जिसके पीछे राज यहां आया था।

पांच छह लड़कियों का ग्रुप जैसे एक गैंग हो।

सबने ब्लैक जीन्स पहन रखी थी, सिल्वर कीज़ विद सिल्वर चैन स्टाइल से जीन्स में लगी थी। सबके कलरफुल टॉप्स ।

देखते ही राज हिम्मत हार गया, न उसके पास इतना कॉन्फिडेंस बचा, ना पैसे ही था, ना ही कपड़े।

कुछ पुराने क्लासमेट दिखे, राज ने बात भी की, पर उसकी हालत देख, उसे इग्नोर कर, उन्होंने अपने जैसो का ग्रुप बना लिया।

राज ने भी अपने जैसे सात आठ तलाश लिए और उसने भी अपना एक ग्रुप बनाया।वैसे राज को सबसे मिलना बात करना पसंद था।

लड़कियों से दोस्ती करने की उम्मीद राज छोड़ चुका था।


पर वो जीना चाहता था तो अपने तरीके से दोस्तो के साथ एन्जॉय कर रहा था।

उसे गुमनाम होने से बदनाम होना ठीक लगता था।

घर के हालात और बाहर के हालात ने उसमे बहुत गुस्सा तो भर ही दिया था।

इसी बीच उसके एक दोस्त दिनेश को लड़की पसंद आई और उसका पंगा एक ऐसे लड़के से हो गया जो कॉलेज का सबसे स्मार्ट और चहेता लड़का था, उसकी गैंग बड़ी थी,अमीर थी और ताकतवर भी।

राज ने उसकी मदद का वादा किया, दो लोग 30 से कैसे लड़ेंगे, समझ नही आ रहा था।

राज के पागल दिमाग को कुछ न सूझा,वो एक गुप्ति और तेजाब की बोतलें ले, अकेला ही लड़ने आ गया।

पूरे कॉलेज में हंगामा हो गया, सामने वाली गैंग ने आके माफी मांग ली जबकि कुछ गलती दिनेश की ही थी कि वो सिचुएशन अच्छे से हैंडल नही कर पाया और उतावला हो गया।

इस कांड ने राज को बदनाम कर दिया, लोग उसे गुण्डा और सनकी मानने लगे गए। पर अब उसे अच्छा लग रहा था कि सारा कॉलेज उसे जानता हैं और दौ मिनट रुक के उससे बात करता हैं।

उसे इग्नोर करने की हिम्मत अब लोगो मे न थी। राज ने सब से दोस्ती करनी शुरू कर दी।

अब राज़ भी इस कॉलेज का जरूरी हिस्सा था, जिंदगी उसमे भी हिलोरे ले रही थी।

बेवजह नाहक परेशान करने की आदत राज की नही थी, उसे किसी की मदद करना ज्यादा अच्छा लगता था।

हां उसके दोस्त लोग उसके नाम का,डर का फायदा उठा लेते थे कभी कभार।

कॉलेज में मन रच गया था,सब ठीक चल रहा था, बस पढ़ाई समझ नही आ रही थी।

ग्यारवी, बाहरवी में बेस स्ट्रांग नही बना था सो कॉलेज की पढ़ाई समझ नही आ रही थी। ट्यूशन के पैसे थे नही। फेल होना पक्का था।

दूसरी क़िस्त जमा करवाने से पहले, घरवालो के पैसे बर्बाद हो जाएंगे ये सोच निर्णय लिया कि आर्ट्स ही ले लेते हैं।

बहुत दिन झगड़े हुवे,घरवाले नही माने।

आखिरकार सुसाइड की धमकी दी, तब डर के आर्ट्स कॉलेज में एडमिशन करा दिया ।

आर्ट्स की क्लास होती ही न थी, सरकारी कॉलेज था,1600 रुपये फीस थी।

ग्रुप प्राइवेट कॉलेज में बना हुआ था, आई कार्ड भी बने हुवे थे, कुछ मास्टर भी जानने लग गए थे।

सो एन्जॉय करने के लिए इसी कॉलेज में आता रहा।

अब इस कॉलेज में थे ही नही तो डर बिल्कुल भी न रहा।

दिनभर कॉलेज में रहना और दोस्तो से गप्पे,ऐसे ही लाइफ चल रही थी।

दोस्त लोग जब राज को पूछते थे, किसी लड़की को नही पटाते तो राज मन ही मन सोचता "गर्लफ्रैंड होगी तो कुछ खर्चे होंगे, घुमाने के लिए गाड़ी भी नही, अच्छे कपड़े भी नही"

राज कहता यूं समझलो ब्रह्मचारी हूँ, लड़कियों मैं इंटरेस्ट नही।

किस्मत ने ऐसा नाम दिया कॉलेज में की राज के कहे हर काम होने लगे।

क्लास के टाइमिंग चेंज कराने हो, बाबू या प्रिंसिपल से काम कराना हो, वो हो जाता था।

राज को भी लगता, ये कैसे हो गया।

राज के काम बढ़ते गए, दोस्तो के भेष में कई चापलूश बढ़ते गये।

पर राज था सीधे स्वभाव का, उसको काम के बदले पैसा बनाना न आता था।

अपना काम निकालने के लिए लोग उसे - बात का पक्का, एक बार बोल दिया तो काम हो के रहेगा, ईमानदार, डॉन, ब्रह्चारी, ये सब कहने लगे।

राज भी इनमें बंधता गया।

वैसे भी राज की खुद की भी आदत थी, प्राण जाए पर वचन न जाये।

दोस्तो के लिए कई और झगड़े भी हुवे, उसका कोई पर्सनल झगड़ा किसी से न था।

समय ने राज का ख्याल रखा और उसका नाम कॉलेज में और बड़ा हो गया।

घर के हालात और साईकल अब भी वही थे। पर राज की हिम्मत और हौसला बढ़ चुका था।

ऐसे में ही पहला साल निकल गया।

दूसरा साल शुरु हुआ और अब राज सीनियर था, उसकी रैगिंग तो नही हुई थी पर उसके दोस्त लोग रैगिंग लेना चाह रहे थे।

राज ने हां की तो सब मस्ती से उछल पड़े।

रैगिंग में जब ज्यादतियां होने लगी तो राज ने मना किया, उसके साथियों की हिम्मत न थी कि उसके बिना अकेले रैगिंग करले।

उन्हें पता था, लड़ने के लिए राज हैं।

तभी एक लड़के अनिल ने कहा- यार आप तो ब्रह्मचारी रह गये, नही तो लड़कियों की रैगिंग करते।

राज को आईडिया अच्छा लगा, उसने लड़कियों से फर्स्ट ईयर में बहुत दूरी बना ली थी। उसमे कई डर थे।

उसे लगा पटानी नही तो क्या, बात करने में क्या जायेगा।

राज ने हां करदी।

सब उसे देखने लग गए, पर रैगिंग लेगा कोन, हमारे ग्रुप में तो कोई लड़की भी नही।

राज ने कहा -हम लोग।

राज साथ आया तो एक बड़ा ग्रुप साथ हो गया, कुछ उसके दोस्त और कुछ और लोग भी।

रैंगिंग की क्लास तक पहुंचे तो किसी की हिम्मत न हुई कि लड़कियों से बात करें।

राज समझ गया,इनमे किसी के बस की बात नही।

राज ने इंट्रोडक्शन लेना शुरु किया, कुछ देर बाद सब बोलना शुरू हुवे।

राज ने सब लड़कियों को सीनियर्स को देखते ही सैलूट करने को कहा।

सबने माना भी, बाद में ये सीन उसी साल आयी मूवी " तेरे नाम" मे भी आया तो सब दोस्तो ने बहुत एन्जॉय किया।

उन्हें लगा हमारा आईडिया फ़िल्म वालो को कैसे पता चला।

कुछ देर बाद राज बाहर आ गया।

बाहर क्लासरूम की गैलरी में कॉलेज हॉल से आती हुई एक लड़की दिखाई दी।

उसकी आंखें टाइटैनिक के रोज़ जैसी थी, रंग भी वैसा।

राज उन आंखों में खो ही गया।

तभी सर आ गये। तो सब निकल गए।

राज के दिल मे वो आंखे उतर गयी, उसे चेहरा भी याद नही रहा।

जब नजरें इनायत हुई थी पहली बार, बेखुद में यार हुआ

चेहरा भी तो याद नहीं रहा, पहला पहला प्यार हुआ

यह न पूछो वो रात कैसे गुजरी वह सुबह का इंतजार कैसे हुआ

तुझसे मिलने के लिए ए जिंदगी मैं कितना बेकरार हुआ

चेहरा भी तो याद नहीं रहा, पहला पहला प्यार हुआ

सुबह राज ने अपने दोस्त दिनेश को बात बताई।

अगले दिन राज उसी क्लास के बाहर खड़ा था, उसे चेहरा नही याद था।

सब दोस्त लोग उसपे हँस रहे थे, की हम क्या क्या देख लेते हैं,आपको चेहरा भी याद नही।

राज बड़ा अजीब लड़का था, एक तरफ 22 का होके अपने तोर तरीको से वो 26 का लगता था और उसकी दबंगई थी।

दूसरी तरफ वो शराब, सिगरेट, गाली गलौच, गंदा बोलना इन सबसे उसे परहेज़ था। उससे दोस्त लोग भी आदर से बात किया करते थे।

राज को आज किसी की भी रैगिंग लेने की इच्छा नही थी, उसे बस उसका इंतज़ार था।

तभी वो हुस्न परी आई, आंखे मिलते ही राज ने उसे पहचान लिया।

बात की, इंट्रोडक्शन लिया, नाम पूछा।

उसका नाम राज़ के दिल मे उत्तर गया। "नेहा"

वो चली गयी पर राज के मन मे अपनी छवि उतार गयी।

दीवानों सी हालत हो गयी।

अब बस कॉलेज में हरदम नज़रे उसे ही तलाश करती।

उसके दीदार से एक तृप्ति सी मिलती।

एक तो वो लड़की जूनियर थी दूसरा राज का नाम बदनाम था।

पर उसे डर किसी बात का न था, न अपनी गरीबी का, न कपड़ो का।

वो बस उससे किसी बहाने बात करना चाह रहा था।

राज मोके निकाल निकाल के बात कर रहा था, कभी नोट्स के बहाने, कभी बुक्स के बहाने, उसकी हेल्प करना राज को अच्छा लग रहा था।

उसे भी राज से बात करने में कोई प्रॉब्लम न थी, उसे अच्छा भी लगता था बस राज का अति उतावलापन उसे थोड़ा परेशान करता था।

एक आध महीना ऐसा चला कि एक दिन कुछ साथी शिकायत लेके आये की एक लड़की हैं जिसने इंट्रोडक्शन नही दिया और हमें झाड़ दिया।

राज ने उस लड़की से क्लास में बात करनी चाही पर वो गैलरी में आ गई।

राज ने उससे बात करनी चाही पर उसने तड़ाक से जवाब दिया- " हु द हेल आर यू"

राज ने कहा - मै आपका सीनियर हूँ। आपसे बात करना चाह रहा हूँ।

लड़की ने ब्लैक जीन्स और शार्ट टॉप पहन रखा था, उसकी कमर दौ, तीन इंच साफ दिख रही थी।

लड़की बोली - यू हेव नो राइटस टु रैगिंग

लड़की की तेज आवाज सुन गैलरी और हॉल में काफी स्टूडेंट इक्कठे हो गए।

राज ने उसको रोकना चाहा पर वो मुह फेर के जाने लगी।

सब लोग राज को देख रहे थे, राज को क्या करना चाहिए, उसे पता न था।

उसने उसे रोकने के लिए हाथ बढ़ाया पर वो थप्पड़ में तब्दील हो गया।

लडक़ी रो के भाग गई, सारे हाल में सन्नाटा छा गया।

राज भी वहाँ से चला गया, पर उसे बड़ा अफसोस हो रहा था कि उससे ये पाप हो गया।

ये मामला बढ़ने से पहले ही कंट्रोल हो गया।

पर ये बेड पब्लिसिटी इतनी फैली की, कॉलेज तो क्या, उसके बाहर भी लोग उसे जानने लगे।

कुछ बाहर के खराब लोग जिनको अपने काम साधने थे, राज की तारीफ कर कर उससे दोस्ती करने लगे।

कॉलेज में तो हर जूनियर सीनियर की जबान पे उसका नाम था।

एक दोस्त के प्रोजेक्ट रिपोर्ट पे साइन न हुआ तो,राज क्लास में जा टीचर को धमकी दे आया। डर के टीचर ने साइन कर दिए।

सब बातों ने राज की बदनामी में चार चांद लगा दिए।

बात नेहा तक भी पहुंची और उसने दूरी बना ली।

राज को भी लगा अब क्या करें, कोई नही जाने दो।

राज के छिछोरे दोस्तो ने भाभीजी, भाभीजी कह नेहा को परेशान कर दिया।

गलती राज की भी थी कि उसने दोस्तो को ज्यादा ही ढील दे रखी थी।

राज के सच्चे दोस्त जो बचपन के साथी थे, जिसके साथ उसे सोचने समझने की जरूरत न थी, वो तो दूर थे, कोटा में थे।

और ये सब जो थे वो सब नए थे और जरूरतों की वजह से साथ थे।

राज नेहा को भूलने की कोशिश कर रहा था कि नेहा ही एक दिन उसके पास आई।

तुम्हारे सारे दोस्त मुझे परेशान करते हैं, सब मुझे भाभीजी भाभीजी कहते हैं।

राज ने कहा आज से कोई नही कहेगा।

राज ने गुस्से से समझाया तो सब मान गए।

पर अब राज की हरकतों से नेहा दूर रहने लगी।

नेहा की दूरी राज को परेशान करने लगी।

वो उससे बात करना चाह रहा था पर उसकी गलतिया और गुस्सा कंट्रोल नही कर पाने की कमजोरी उसे खाये जा रही थी।

एक दिन जब तड़प बढ़ गयी थी किसी ने आ के बताया कि नेहा कॉलेज के पीछे जूस की दुकान पर हैं।

राज दो दोस्तों के साथ उनकी बाइक पे वहां गया।

नेहा से बात करनी चाही तो जूस वाले ने रोका।

किसी न किसी से कॉलेज में बहस बाजी होती रहती थी तो राज ने एक लंबा चौड़ा छुरा किसी मेले से लिया था।

यह छुरा दिखने में ही बहुत खूंखार था, उसने वो निकाल, दुकान वाले से दुकान बंद करवा दी।

नेहा भी डर गई, वो बहुत परेशान थी और गुस्सा भी।

वो एड़ी पटक के बोली, अपने आप को देखो, अपनी हरकते देखो, गुंडे लगते हो। अपने दोस्तों को देखो सब चोर लफंगे लगते हैं। लड़ाई के अलावा तुम्हे आता क्या हैं। कोंन तुमसे दोस्ती करेगा।

राज को बात ठीक लगी, वो चला गया।

अगले दिन अकेला नेहा के पास गया और बोला- मैं सब छोड़ रहा हूँ, गलत लोगो से दोस्ती और लड़ाई झगड़े। फिर क्या तुम दोस्ती करोगी।

नेहा - छह महीने देखते हैं, अगर सुधर गए तो सोचूंगी

राज- किसी ने तुम्हे छेड़ा तो

नेहा - मैं खुद आके हेल्प मांगू, तब करना, नही तो कोई झगड़ा नही

राज और नेहा की कहानी कॉलेज में मशहूर और बदनाम होने लगी।

राज ने अपने पास जो भी छोटे मोटे हथियार थे, जैसे गुप्ति, छुरा, क्लिप, चैन सब दोस्तो में बांट दिए।

कुछ से दोस्ती तोड़ ली।

कुछ जो पहले डरते थे अब उसका मजाक उड़ाने लग गए।

कुछ जो बिना वजह ही राज से जलते थे या दुश्मन थे, नेहा को परेशान करने लगे।

पर राज चुप ही रहा।

एक दोस्त जो थोड़ा समझदार था, उसने कहा हुलिया देखो अपना, कोई लड़की क्यों पसंद करेंगी।

राज ने पहली बार ध्यान से अपने आप को देखा और उसे बात सही लगी।

राज ने लाल टिका लगाना बंद किया, कान से बालिया निकाली, बालों को थोड़ा ट्रिम किया।

मूछें हटा दी, जिसे वो अपनी शान समझता था।

कुछ पैसे इकट्ठे कर कुछ जीन्स और टीशर्ट लिए।

अब जो राज निकल के बाहर आया वो 22 साल का, सुंदर नयन नक्श का लड़का था।

वो रूप में अब कॉलेज में किसी लड़के से कम न था।

वो चुपचाप कॉलेज जाता था, नेहा से भी बात न करता था, उसे बस छह महीने खत्म होने का इंतज़ार था।

इसी बीच नेहा ने एक लड़के से दोस्ती करली थी, जो राज का ही क्लासमेट था। लड़का राज को ठीक ही लगता था।

राज ने न कुछ कहा न कुछ किया।

कुछ ने बहुत चिढ़ाया की लड़की ले जायेगा, गुस्सा आते हुवे भी राज कंट्रोल कर लेता।

अब राज का सीधा नजरिया देख कुछ दोस्त बेलगाम होने लगे।

एक बार राज के साथ ही बैठे बाइक पे, दिनेश ने एक स्कूटी पे जाती लड़की के पीठ पे मारा।

राज ने डांटा, उसको ये सब बिल्कुल पसंद न था, पर उसको ज्यादा फर्क न पड़ा।

राज ने ऐसी हरकत में आगे से साथ न बैठाने को कहा।

पर राज ऐसे दोस्तो से भी दोस्ती न तोड़ी।

अच्छे दोस्तो की कमी ने,उनके अभाव ने राज को बेकार दोस्तो की दोस्ती का भी गुलाम बना दिया था।

उससे ना कहना, न होता था।

लगभग चार महीने गुज़र गए। नेहा अपने नये दोस्तो में खुश थी,उसके दिमाग से राज का खतरा निकल गया था।

उसे अब कोई लगाव भी न था राज से।

राज ने बात करनी चाही पर उसको सही रेस्पोंस न मिला।

राज - नेहा मेने सब छोड़ दिया हैं, बिल्कुल बदल गया हूँ।

नेहा - हां, दिख रहा हैं, अब अच्छे लग रहे हो।

राज - अब बात कर सकते हैं।

नेहा - हां क्यों नही, कभी कभी कर सकते हैं

राज- कभी कभी? मै तुमसे रोज बात करना चाहता हूं, तुम्हारे साथ टाइम गुजारना चाहता हूं।

नेहा - क्यों

राज - क्यों? तुम्हे नही पता। में तुम्हारे बिना जी नही सकता। तुम्हारा चेहरा हरपल मेरे साथ रहता हैं।

नेहा - आप गलत समझ रहे हो। आप कहां जा रहे हो, मैने दोस्ती का, नार्मल बात करने का बोला था।

राज गुस्से में आ जाता हैं।

राज - नेहा मै तेरे बिना नही जी सकता, या तो तुझे मार दूंगा या खुद मर जाऊंगा।

नेहा - गुस्से में - मुझे जीना हैं, तुम्हे मरना हैं तो मरो।

राज गुस्से में चला जाता हैं, रात भर सोचता हैं और मरने का फैसला कर लेता हैं।

उसने नेहा को मरने का बोला हैं तो मर जायेगा, पीछे नही हटेगा।

वैसे भी वो अपनी बात से, अपने वचन से पीछे नही हटता।

कहीं मरने में चूक ना हो जाये सो फिनाइल के अलावा एक ब्लेड पिछली जेब मे डाल देता हैं।

और इससे भी बच गया तो कॉलेज के ऊपर से कूद के जान दे देगा।

राज ने नेहा के लैंडलाइन नंबर पहले ही पता कर लिए थे।

उसको कॉल कर के कह भी दिया कि कल 12 बजे तक तूने " आई लव यू'

नही बोला तो में मर जाऊंगा।

नेहा कॉलेज ही नही आती हैं।

12 बजते ही बीच कॉलेज में राज फिनाइल पिने लग जाता हैं।

2 घूंट से ही उसका गला चोक हो जाता हैं।

तभी पास में खड़े उसके जूनियर्स उससे बोतल ले फेंक देते हैं।

सब लोग उसे देखने लग जाते हैं।

कुछ साथी राज को दूर लेके चले जाते हैं।

राज को पता होता हैं कि उसके पास ब्लेड भी हैं पर वो उससे सुसाइड नही कर पाता, पता नही क्यों?

उसे मरने का या दर्द का कोई डर नही होता, पर वो ब्लेड से ट्राय नही करता हैं, न ही कॉलेज से जम्प करता हैं।

कोई नेहा को खबर देता हैं, नेहा स्कूटी लेके आती हैं।

कॉलेज की दीवार पर ही उदास, हताश राज को देखती है।

एक मिनट के लिए आंख मिलाती हैं और वापस घर चली जाती हैं।

शाम को जैसे जैसे दोस्तो को खबर मिलती हैं,सब इक्कठे होते हैं।

सब नेहा को बुरा भला कहते हैं, राज मना करता हैं।

कुछ कहते हैं- अच्छे भले आदमी को खराब कर दिया।

कुछ - उठा लेंगे साली को।

राज को दो एक पेग भी पिला दीये जाते हैं।

एक ने राज से नेहा के नंबर मांगे।

कोई समझदार आदमी न थे पर राज ने नंबर दे दिए।

वो कॉल कर पहले नेहा को, फिर उसकी माँ को, फिर उसके भाई को गंदी गालियां देते हैं, डराते हैं।

राज जिस भाषा में नेहा से बात नही कर सकता,उस भाषा मे उसके दोस्त लोग, उसके परिवार से बात करते हैं।

राज जानता था कि सब गलत हो रहा हैं, पर वो बातें सुन पागलो की तरह हँसता हैं।

अगली सुबह

राज जानता था कि नेहा को उसने हमेशा के लिए खो दिया हैं।

उधर नेहा के पिताजी राज के घर का पता कर, उसके वार्ड पंच को कॉल कर सारी बात बताते हैं और सब ठीक करने को कहते हैं।

वार्डपंच राज को कॉल करता हैं, पर राज का गुस्सा कम नही हुआ होता वो वार्डपंच को भी धमकी देता हैं और नेहा की स्कूटी तोड़ने की धमकी देता हैं, क्योंकि वो नेहा को नही मार सकता पर उसकी स्कूटी तो तोड़ ही सकता हैं।

वार्ड पंच राज के पिताजी को खबर देने की बात कहते हैं, इससे राज घबरा जाता हैं।

उसकी गरीबी उसे घेर लेती हैं, वो भावुक हो जाता हैं, पिताजी क्या सोचेंगे।

वो वॉड पंच को कहता हैं अब सब खत्म, कुछ नही होगा। सब मस्त रहो।

कुछ ही देर बाद एक छिछोरे दोस्त ने पुराने किसी दुश्मन से झगड़ा मोल ले लिया। क्योंकि राज वही था उसकी हिम्मत बढ़ गयी।

कुछ देर में बहुत सारे लोग आ गए, राज अपने दोस्त को बचाने के लिए लड़ा।

पर वो लोग ज्यादा थे, राज ही लड़ रहा था तो वो ही सबका शिकार हुआ।

कुछ ही देर में उसके होंठ, नाक, कान फटे थे, वो जमीन पे गिरा था।

कुछ देर में पुलिस आ गयी, बड़ी मुश्किल से वो वहाँ से निकला।

हालांकि इन लोगो की राज से और राज को इनसे कोई दुश्मनी न थी पर नेहा का गुस्सा इन लोगो पर उतर गया।

राज ने सौगंध खायी की जिसने पीछे से वार किया था, उसको मार डालूंगा।

राज जो कि दोस्तो को ढाल की तरह लगता था, वो ढाल अब उन्हें कमजोर लगने लगी।

मर्डर की सौगंध भी सब मे डर पैदा कर देती हैं।

जो लोग राज के आगे पीछे रहते थे, वो अब दूर भाग रहे थे, मिल भी नही रहे थे।

कुछ कहते थे, की अब उसकी आँखों मे वो तेज़ नही रहा।

कुछ लोगो को राज ने बोल रखा था कि वो लड़के कहीं दिखे तो बताना।

कुछ ने बताया भी पर वो दूरी पे थे और राज के पास बाइक नही थी और कोई साथी साथ चलने को या सिर्फ गाड़ी देने को राजी नही था।

राज निराश होता गया। बदला लेने की शर्त ने उसे बहुत अशांत कर दिया था।

और वो अकेला ही निराश, हताश और परेशान था।

जिनकी दुश्मनी थी वो डर गए थे या शांति धर ली थी।

राज सोचता था काश मेरे पास जीप होती, दुश्मनों के उपर से चढ़ा देता।

राज लड़ाई में भी बहुत ईमानदार था और अकेला था।

कुछ दिन के लिए उसको शहर से बाहर जाना पड़ा।

उस वातावरण में उसे समझ आया कि उसके दोस्त कैसे हैं।

वो बदला इसलिए लेना चाहता हैं कि 2 साल का बनाया नाम खराब न हो।

बाकी तो लड़ने का कोई मतलब ही नही या फिर मेरा घमंड ही मुझसे ये सब करवा रहा हैं।

राज अपने आप से ईमानदार होने लगा, खुद को और जानने लगा।

क्यों उसे जूठे दोस्तो की नज़र में सम्मान चाहिये।

राज मन ही मन सोचता था, कही मुझमे डर न बैठ जायें सो एक बार सामने आएंगे तो मारूँगा जरूर पर जान से नही मारूँगा।

एक महीने बाद तीन लोग जिनसे लड़ाई हुई थी, एक साथ दिखे। राज अकेला था।

वो कुछ दूरी पर थे राज उन्हें घूरे जा रहा था, वो सोच रहा था, इनमे कूद पडूं।

पर उसमे अन्दर से वो ऊर्जा नही आ रही थी।

तीनो ने नज़रे झुकाई और पास के किसी बिल्डिंग में चले गए।

राज ने जैसे ही इन सब चीजों से हटने की सोची, उसको बड़ी शांति सी महसूस हुई।

शांति कितनी जरूरी हैं उसे पहली बार एहसास हुआ।

अब उसे कुछ न चाहिए था, न सम्मान, न नाम, न प्यार।

उसे बस अपने मे कुछ सुधार करने थे और बहुत कुछ अपने बारे में जानना था।

छह महीने के लिये राज ने खुद को घर मे कैद कर लिया।

सब मूर्खो से दोस्ती तोड़ी।

गलत को गलत और सही को सही देखना सीखा।

आखिरी एग्जाम के दिन, अपने शांत सुंदर रूप में नेहा के पास गया, अब वो छह महीने बाद नेहा से मिला।

उसने नेहा से पूछा - केसी हो

नेहा - ठीक हूँ।

एक बार आंख मिला, थोड़ा मुस्कुरा, राज नेहा की जिंदगी से हमेशा के लिए चला गया।

पर वो अकेला नहीं था, लव विद नॉलेज से वो परिपूर्ण था।

एक जीवन ऐसा भी

ये बैठवास गांव हैं। छोटा सा गांव। जोधपुर जिले के ओसियां तहसील में आता है। ओसियां से 11 किलोमीटर दूर स्थित है।प्राकर्तिक रूप से गांव बहुत सुंदर हैं, यहां ज्यादा हरियाली तो नही हैं पर पहाड़, रेगिस्तानी टीले इसकी खूबसूरती बड़ा देते हैं। दो एक तालाब हैं और बारिश का पानी टांको में इक्कठा कर सालभर के पानी की पूर्ति हो जाती हैं।हर जगह आखड़े, खेजड़ी, केर, कुम्भटिये के पेड़ पौधे इसकी सम्पदा हैं।

देर रात तक बच्चो का भाकळ (घर के बाहर की जगह) में खेल का शोर सुनाई देता है।2005 तक यहां न बिजली थी, न पानी की टंकियां। आसपास के गांवों में लाइट थी पर इनकी ढाणियों में बिजली न आई थी। इसके बहुत हद तक जिम्मेदार गांव के लोग ही थे। आलस्य इनकी रग रग में समाया था और ज्यादार लोग अनपढ़ भी थे।

आप इसे ठाकुरो या राजपूतों का गांव कह सकते हैं। दुनिया बहुत आगे बढ़ गयी थीं पर इनके लिए इनका गांव ही पूरी दुनिया थी।गांव में  इंद्र देव की कम ही कृपा थी। दो तीन साल में एक अकाल पड़ ही जाता था। गांव के केर, सांगरी, भटकनिया, तोरुं सब्जी के तौर पर काम आ जाते।

गोधन दूध दही की पूर्ति कर देते थे। जीवित रहने के लिए इतना काफी था।

रुपया देखनो को न था। किसी के पास एक रुपये का नोट भी होता था तो जलपे की थैली में संभाल के, बनियान की अंदर की जेब मे रखा जाता था। जब कोई नोट निकालता था तो सारे गांव का एकनिष्ठ ध्यान उस आदमी को देखने मे रहता। चार पांच फोल्ड किये हुवे जब वो थैली खुलती तो उस व्यक्ति का सम्मान राजा की तरह होता।

यहां पे 1942 में भूर सिंह जी पैदा हुवे, एक बहन और तीन भाइयों में तीसरे नंबर पे थे।

तीन साल की उम्र में पिताजी का देहांत हो गया था।भूर सिंह ने बड़ा कठिन बचपन देखा था। जब मां, पिताजी के देहांत के बाद मायके चली गयी, तो भूर सिंह और उनके बड़े भाई को मासी के घर छोड़ गई थी।

दो वक्त के खाने के लिए इतना गोबर और लकड़ियों से भरे कुंडे(तगारी) उठाने पड़ते की तीन साल और छह साल के बच्चो के सिर में टाकिया पड़ गयी थी और उन हिस्सों से बाल उड़ गए थे।

बहुत छोटी उम्र में भूर सिंह को रुपये पैसे की अहमियत पता लग गयी थी। पिताजी राजाजी की फौज में थे तो चार आने पेंशन मिलती थी उस वक़्त। अड़ी घड़ी में वो पैसे काम आ जाते थे।

गांव में कोई स्कूल उस वक़्त थी नही सो वो भी अनपढ़ ही रहे। 16 साल के थे तब ओसियां में भर्ती आयी थी। अपनी उम्र 18 बता वो बड़े भाई के साथ भारतीय थल सेना में भर्ती हो गए। या यूं कहें कि पूरे गांव के अस्सी प्रतिशत युवा फौज में भर्ती हो गए।

उस वक़्त फौज में भी तनख्वाह और सुविधाएं बहुत कम थी। आने जाने का बार बार खर्चा न लगे सो साल में एक बार ही घर आते थे। 1962, 1965 और 1972 कि लड़ाई लड़ी।

1965 की लड़ाई में गोलियां गिनके मिला करती थी। अनाज भी कभी कभी तीन चार दिन लेट आता था। वो कौआ मारके भी खा जाते थे। एक दिन सात दिन के लिए अनाज न आया था। गोलियां खत्म हो गयी थी, वही हालत पाकिस्तान के सिपाहियों की भी थी। उन्होंने निर्णय किया कि कल सुबह बंदूक की बेनेट से लड़ेंगे, भूख से मरने से अच्छा दुश्मन को मारके मरे।

बहुत अपनो और दोस्तो को मरते देखा। पर रात तक सूचना आ गई कि हम युद्ध जीत गए थे।

1972 की लड़ाई में वो जिस गाड़ी में थे उसके पास बम फटा, ट्रक पलट गया पर उन्हें लगा जैसे कोई सफेद आकृति सी आयी और उन्हें थोड़ा दूर पटक दिया। उन्हें लगा शायद पिताजी की आत्मा आयी हो या गांव के देवी देवता ने बचा लिया होगा।गांव के देवी देवता में उनकी आस्था बहुत बढ़ गयी थी।

फौज से रिटायर हो स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में सिक्योरिटी गार्ड लगे। खाली समय मे बैंक की कुर्शिया ठीक कर देते थे।रंग पुताई कर देते थे। खाली बैठने की आदत न थी। पैसा भी मिलता था। इमानदारी संस्कार में थी। सो सब के चहेते भी थे।

फौज के बाद इन्हें हिंसा बिल्कुल पसंद न थी। जमीनों के झगड़ो में भी नुकसान उठा लेते थे पर लड़ाई से दूर शांति से जीना चाहते थे।जब रिटायर होने के बाद गांव लौट तो गांव वैसा का वैसा ही था। बस एक सरकारी स्कूल बन गयी थी। बाकी लाइट पानी कुछ न था।

फौज से रिटायर होने के बाद ही उन्होंने शादी की थी। अक्सर गांव के लोग यही करते थे। 32,34 की उम्र तक रिटायर हो शादी करते थे, वो जो आधे जिंदा बच के आ जाते थे।

पीढ़ियों से इस गांव की शायद यही परम्परा या नियती रही हैं। 300 साल पहले जब इनके पूर्वजो को ये गांव राजाओ की सेवा और युद्ध मे बलिदान के लिए मिला था, तब दो हजार लोग यहां बसने आये थे ,अब 300 साल बाद 400 के आसपास लोग हैं। पांच छह संतान सामान्य थी पर आधे से ज्यादा कही न कही काम आ जाते।

अभी भी एक टांग हाथ कटे कई सैनिक मिल जाएंगे, जिन्होंने बाद में शादियां ही नही की।

इनके दो बेटे एक का नाम शैतान सिंह व एक का नाम जालिम सिंह था। उनको नाम तो पसंद न थे पर महाराज ने रखवा दिए। बेटे नाम के बिल्कुल विपरीत थे। पढ़ाई में कमजोर ही थे। शैतान सिंह आठवीं में मासाब को चाय पिला पिला कर और कप प्लेट धो कर जैसे तैसे पास हो गया।

आगे पढ़ाई उससे न हुई। तो काकोसा के पास जोधपुर शहर आ होटल में वेटर की नौकरी पकड़ ली। पिता तो जिंदगी भर बाहर ही रहे ,उनसे ज्यादा कुछ सीखने को न मिला। गांव में जितना सिख सका वो ही था।

वरुण होटल में छह वेटर थे उसमे से पाँच आज की भाषा मे दलित थे।वो शैतान सिंह से खुश न थे । कहते थे हमारी नौकरी खा रहा हैं। एक बार एयरफोर्स में साफ सफाई वाले कि भर्ती आयी पर वंहा की भीड़ ने इसको मारके ही भगा दिया। कहा इन नौकरियों पे सिर्फ हमारा हक़ हैं।

गुस्से और परेशानी के बीच वो काम करता रहता था। सेठजी उसके व्यवहार और ईमानदारी से खुश थे पर काबिलियत के अनुसार और कुछ काम उसको दे नही सकते थे।

एक गरीब घर की लड़की अचरज कंवर से शैतान सिंह की शादी हो गयी। अचरज कंवर के माता पिता का बचपन मे ही देहांत हो गया था। काका ने जैसे तैसे शादी करवा दी, देने को कुछ भी न था। भूर सिंह खुश थे कि बच्चे की शादी तो हो गयी।

शैतान सिंह की आमदनी कम ही थी।साइकल से आना जाना करता था, कभी होटल रुक जाता तो कभी काकोसा के घर। कुछ दिनों बाद एक कमरा ले लिया और पत्नी को शहर ले आया।

पैसे ज्यादा न थे, तो कमरा भी ऐसा ही मिला। गांव में रहने वाली अनपढ़ अचरज को छोटा सा कमरा जेल की तरह लगता था।टायलेट से घिन्न आती थी, उसे खुले में शौच की आदत थी।

शिकायत भी करती तो शैतान सिंह लड़ पड़ता।वो पिताजी से पैसे मांगता न था और भूर सिंह कंजूस भी थे उनसे रुपया खर्च न होता था। वो एक एक पाई बचाने में ही भरोसा करते थे। वे खुद बीमार पड़ने पर भी दवाई न लेते थे।धीरे धीरे स्वत ठीक हो जाते। हालांकि अब उनके दो दो पेंशन आती थी पर फिर भी उनका स्वभाव ही ऐसा हो गया था।

उन्हें ये समझ नही आता था कि वो अनपढ़ थे फिर भी दो दो नौकरी कर ली। पूरा घर संभाल लिया। ये आठवी तक पढ़े हैं फिर भी कोई ढंग का काम क्यों नही करते।

जल्द ही शैतान सिंह के घर बच्ची हुई। बच्ची के बाद अचरज की तबियत खराब रहने लग गई। शैतान सिंह भी देवी देवताओं पर डॉक्टर से ज्यादा भरोसा रखता था। जब भी अचरज पेट मे दर्द की शिकायत करती शैतान सिंह कहता बायांसा बापजी पे भरोसा रखो।

शैतान सिंह होटल से रोज परेशान होके आता, कभी ठाकर होने का ताना मिलता, कभी कुछ। एक पल को जोश भी आता पर उसमे वो स्वाभिमान जैसी भावनाएं न थी।बस पैसा मिलता रहे तो जीवन चलता रहे।

घर आते ही अचरज तबियत का कहती तो उसे दो थप्पड़ जड़ वो अपनी परेशानी कम कर लेता। एक बायांसा बापजी की तश्वीर ला के रख दी कि इनकी पूजा करो सब ठीक हो जाएगा।

शादी के बाद कभी अचरज पिहर न गयी, उसकी पहले भी कुछ ज्यादा कद्र न थी। शादी करवादी ये भी उनका एहसान ही था। वो डरती भी थी कि मेरा कुछ नही पर इनकी वहां इज्जत न हुई तो , वो दुःख से मर जायेगी। अब पति ,सास, ससुर, बच्ची सब हैं, उसका परिवार हैं। वो बस इनकी सेवा करना चाहती थी, इनकी कही हर बात मानना ही उसका धर्म था।

शैतान सिंह दारू सिगरेट से तो दूर ही था पर अब उसने चाय भी छोड़ दी थी कि कुछ पैसे बच सके। पर कुछ फर्क न पड़ा। आखिर उसने अचरज और बच्ची को गांव भेज दिया ।

अचरज गांव की खुली हवा में खुश तो थी पर पेट का दर्द उसे परेशान करता रहता। उसने अपनी सास को भी बताया तो वो हल्दी पिलाने लगी। वो सब भी देवता ध्याने की बात करते।

भूर सिंह का छोटा भाई शहर में ही रहता था। वो उनका बड़ा आदर करता था।वो अख्सर गांव आते रहते थे और उनको शहर आने का भी कहते। पर भूर सिंह को शहर न सुहाता था, कुछ देर में ही शहर खाने लगता और बस पकड़ वो गांव चल देते।

अचरज की बेटी अब सात महीने की होने वाली थी। एक दिन आंगन में झाड़ू लगाते,अचरज पेट दर्द के साथ गिर पड़ी।खड़ा किया तो उल्टियां करने लगी। गांव में तो कोई अस्पताल था नही, 11 किलोमीटर दूर ओसियां में था जिसके लिए 2 किलोमीटर दूर से बस पकड़नी होती थी।

शैतान सिंह से बात भी की, उसने कहा ओसियां दिखा दो, फर्क ना पड़े तो जोधपुर ले आओ, काकोसा के यहां ,में भी यही हूँ।

जालिम सिंह अचरज का देवर था। वो भी अपने भाई जैसा ही था । उसको ये भी न पता था की वो है ही क्यों। मानव भावनाए, समझदारी ये बड़ी बातें थी। वो डरपोक भी बहुत था। बस खाने का शौक था।

जालिम ने कहा जाटो के यहां से जीप मंगवा लेता हूँ। 300 रुपये लगेंगे। 50 रुपये वो कमाने की फिराक में था।

भूर सिंह ने कहा -दो कदम में बोट(प्याऊ) स्टैंड हैं, वहां से बस मिल जायेगी।

जालिम सिंह और भूर सिंह अचरज के साथ चल दिये। भूर सिंह पत्नी को साथ नही ले गये, एक जने का किराया और क्यों लगाना। खुद बहु से बात नही कर सकते थे तो जालम को साथ ले गए।

बोट स्टैंड, घर से 2 किलोमीटर था, उस मिट्टी से टैक्टर ही निकल सकता था।काफी बालू रेत थी। अचरज धीरे धीरे चल पा रही थी। आज उसे मिट्टी जकड़ रही थी। इतना मुश्किल चलना उसे कभी न लगा।

घूंघट में पसीना नल से पानी की तरह टपक रहा था।

बीनणी जल्दी चलो बस निकल जायेगी। बस ये आवाज़ उसके कानों में आ रही थी। वो ससुरजी की बात कैसे टाल सकती थी, सालो बाद बाप मिला हैं। वो पूरी जान लगा के चल रही थी। फिर भी दो बस निकल गयी।

गांवों में बस में आदमी औरतो को सीट दे देते हैं इससे थोड़ा आराम मिला।

बस से उतर कर अस्पताल पहुंचे। डॉक्टर भी देर से आये। जब बारी आयी तो डॉक्टर ने कहा ये सीरियस केस हैं आप तुरंत जोधपुर ले जाओ।

उस समय तीन बज चुके थे, भूर सिंह ने सोचा शहर पहुंचते पहुंचते छह बज जाएंगे। फिर रात रुकना पड़ेगा। उन्हें वहां रुकना पसंद न था। इससे अच्छा सुबह जल्दी निकलेंगे, दिन में दवा दारू कर शाम तक घर लौट आयेंगे। जालिम को ढूंढा तो वो एक कोने में खड़ा कुल्फी खा रहा था। एक थप्पड़ जड़ उसे चलने को कहा।

अचरज को अब अस्पताल से बस स्टैंड फिर बोट स्टैंड,वहां से दो किलोमीटर घर ,फिर सुबह घर से बोट स्टैंड फिर पैदल। फिर जोधपुर तक बस में आना पड़ा। वो गांव की बेटी थी उसने हिम्मत न हारी। काका ससुर के घर भी पहुंच गई। काकिसा के पांव छुए ही थे कि बेहोश हो गिर पड़ी।

काकोसा ने एक पल की देर किए बिना टैक्सी बुलाई। और गांधी हॉस्पिटल ले गए। पानी के छांटे मारने से थोड़ा उसे होश आया।

इमरजेंसी में डॉक्टर ने जैसे ही ब्लड सैंपल लिया ,उसका खून सफेद और पीला था। डॉक्टर ने कहा - "ये तो मर चुकी हैं। अब कुछ नही हों सकता।"

शैतान सिंह ने कहा "पर ये तो बोल रही हैं ना।"

डॉक्टर -"इसका खून पानी बन चुका है। काफी पुराना पीलिया है ज्यादा से ज्यादा 5 मिनट और।

शैतान ने अचरज को देखा।"

अचरज -" शायद मेरे भाग में परिवार का सुख लिखा नही हैं। देखो बायासा बापजी ने पीलिया कर दिया। हमारी बेटी का ध्यान रखना।"

अचरज नही रही। उसके तिये के दिन शैतान सिंह एक दम से चिल्लाया, "मुझे भी पीलिया हो गया हैं। मेरे हाथ देखो पूरे पीले हैं।" उसने आस पास में कोई छुरा रखा था उससे हाथ काटने लगा।

भूर सिंह ने झठ से उसके हाथ पकड़ लिए। जालिम, जालिम जोर से चिल्लाए।

जालिम दूर खड़ा नुक्ती से बने लड्डू खा रहा था ।शैतान सिंह पागलो की तरह हँसे जा रहा था।

बाप बस दोनों बेटों को देखे जा रहा था।