बुधवार, 7 अप्रैल 2021
प्रेम रोग
नाई की दुकान
एक साहब बाल कटा रहे है. एक मैडम भी बैठी हैं, उनको थ्रेडिंग करानी है. कोरोना की वजह से स्टाफ कम हैं. मैडम अखबार पढ़ रही हैं.
साहब - "तेरे तो धंधे का खूब नुकसान हुआ होगा."
नाइ - "हां, साहब कोरोना ने तो बर्बाद कर दिया. 50 परसेंट धंधा डाउन है".
साहब -" अरे हमारे भी हालात खराब ही है. पूरे 20 लाख का नुकसान हुआ है. ये तो बस चला रहे हैं जैसे तैसे."
नाइ - "अरे साहब आपको क्या फर्क पड़ता हैं."
तभी लिखमाराम जो कि गरीब है, दुकान में आता हैं. सफाई कर्मचारी , झाड़ू लगाने वाला हैं.लिखमाराम साहब को देख नमस्कार करता है.
साहब - "और भाई लिखमाराम कैसा है".
लिखमा - "बस साहब आप की मेहरबानी है."कह कर नीचे बैठता है.
मैडम - अरे आप नीचे क्यों बैठे है. पुरी बेंच तो खाली है. बैठ जाइए.
साहब- "अरे हां लिखमा, ऊपर बैठ जा... ( लिखमा खड़ा होता ही है कि) , चल कोई नही, ये तो सम्मान हैं तेरा......
लिखमा नीचे ही बैठ जाता है."
मैडम कुछ सोच कर, फिर अखबार पे ध्यान देती है.
साहब-( तेज़ आवाज़ से)" एक तो सरकार ने झूठ फैला दिया. कोरोना सोरोना सब अफवाह है. सरकार को फायदा हैं. लोग भी डरपोक हैं, मास्क लगा के घूम रहे हैं, एक दूजे से मिलना बंद कर दिया हैं. इसी से सब के धंधे बर्बाद हो गए हैं. बहुत बड़ा घोटाला है ये.."
(बात सुन लिखमाराम, अपना मास्क उतार उपर वाली जेब मे रख लेता हैं.)
नाइ -" सही बात साहब. हर कोई इतना थोड़ी जानता है. ( लिखमा को देखते हुवे) ये सब तो भेड़ चाल वाले है."
मैडम - "अरे सर, कितने देश घोटाले करेंगे. पूरी दुनिया मे वायरस फैला हैं. बास बस इतनी है, नया वायरस हैं, सो जैसे जैसे रिजल्ट आ रहे है, वैसे ही जानकारी में बदलाव आ रहे है.'और मास्क लगाने में क्या बुराई, और भी फैलने वाली बीमारी से बचाव होता है."
साहब - "अब आप लेडीज को भी क्या समझाना."
मैडम - "क्या मतलब?"
साहब - "कहने का मतलब. मैं बिना मास्क के कई रिस्तेदारो से मिला हूं, जिनको कोरोना हुआ है. कईयों के साथ बैठ खाना खाया है. एक बार तो कोरोना वार्ड में जाके मास्क निकाल दिया. 2 घंटे घूमता रहा. वो तो डॉक्टर नाराज होने लगे तो फिर लगाना पड़ा."
नाइ - "क्या बात, वाह"
मैडम कुछ बोलती उसके बीच मे ही लिखराम ने अखबार मांगा. अखबार लेते ही, लिखमाराम को 2 जोर से छींक आयी.
कुछ छीटें साहब के मुंह पर पडे.
साहब - ( गुस्से में) - "पागल हो गया है क्या? मास्क क्यों नही लगता. अनपढ़ गंवार साले."मैडम हैरानी से साहब को देखती है.
साहब -" नाइ को- कितने रुपये हुवे तेरे"
नाइ - "80 साहब"
साहब 100 का नोट देता है.
नाइ - "खुले नही है साहब, बिस रुपया अगली बार ले लेना."
साहब -" सब मुझसे ही कमाएगा क्या?"लिखमाराम जेब से खुले 20 रुपये निकाल के देता है.
साहब गुस्से में उससे रुपये ले, दुकान के बाहर निकल जाता है.
मैडम हैरानी से उसको जाते हुवे देखती रहती हैं.
कोरोना
नाटक के चरित्र
1. सुधा जी - (उम्र 40 साल) - मास्टरनी हैं ,सब से बात कर लेती हैं. मोहल्ले में सब जानते हैं.
2. श्यामजी - (उम्र 62 साल) अखबार पढ़ने का शोक, सुबह का अखबार भी शाम तक चाटते रहते हैं. अपने आप को ज्ञानी ही समझते हैं. बड़ी बड़ी बातें करने वाले
3. मोहन जी -(उम्र 68 साल)- ध्यान ,योग पर भरोशा करने वाले, दुसरो की बात मानने वाले, थोड़े डरपोक टाइप. दुसरो की राय लेते ही रहते हैं.
4.भंवर जी - ( उम्र -52 साल) - गाने सुनने के शौकीन. बिस्कुट, चॉक्लेट कुछ न कुछ खाते ही रहते हैं. मज़ाक करने, बातों का चटकारे लेने वाले आदमी. सिगरेट नही पीते, पर कभी कभार सुरता राम जी के साथ पी लेते हैं.
5. सुरता राम जी -( उम्र -53 साल) किसी से बहस नही ,बीड़ी , सिगरेट पीने वाले, हां में हां मिलाने वाले. टोली के साथ मस्त रहना. मौका मिलने पर जबान खोलना.
6. वर्माजी - ( उम्र - 58 साल) - प्रोफेसर , लिटरेट आदमी. जानकारी दुनिया भर की. राजनीतिक बाते और वर्ल्ड नॉलेज की बाते करने वाले.
7. अरुणजी - ( उम्र 57 साल) - कम ही बोलते हैं, सब के बोलने के बाद, उन्ही सब की राय पे एक बात कह देते हैं.
सूत्रधार - जैसा कि आप सब जानते है कि दुनिया कैसे महामारी की मार झेल रही हैं. कोरोना से बचने के लिए मास्क व सोशल distancing काफी प्रभावी रहा है. पर हम में से कुछ लोग खुद ही डॉक्टर बन जाते है और अपना निर्णय देना शुरू कर देते हैं.मुझे तो डर है कि कल कोरोना की वैक्सीन आ गयी तो ,हम तो यु ट्यूब पे देख ,घर पर ही अपनी वैक्सीन ना बना ले.हम जानकारी की कमी के कारण ,क्या क्या धारणाएं बना लेते हैं, देखिए ज़रा..
सभी लोग एक साथ आते है और संदेश देते हैं
" अपनी समझ को बढ़ाना हैं
कोरोना को अब हराना हैं
देश का साथ निभाना हैं
मास्क सभी को लगाना है"
फिर नाटक शुरू
{ शाम का समय , सब आदमी घर के बाहर चौकी ( दालान, बरामदा, चौपाल) पर बैठे गप्पे मार रहे हैं, कम आवाज़ में फ़ोन में गाने लगा ,भंवर जी आनंद ले रहे हैं , सुरता राम जी के साथ सिगरेट भी शेयर हो रही हैं, श्याम जी अखबार पढ़ रहे हैं.मोहन जी सब को देखते हुवे भी अंगुलियों को ध्यान मुद्रा में किये हुवे, ध्यान में जाने की असफल कोशिश कर रहे हैं, अरुणजी नज़र बचाते हुवे मोहल्ले की जवान लड़कियों को आते जाते देख रहे हैं. वर्मा जी किसी विचार में डूबे है,उदास से, सामने नजर पर देख किसी को नही रहे }
मोहन जी- "श्यामजी , मुझे तो गले मे बड़ा दर्द रहता हैं पिछले तीन एक दिन से. कल तो सुबह 5 बजे तक नींद ही नही आई. खुद ही उठ के पानी गर्म किया, थोड़ा सा नमक डाल, गरारे किए, तब चैन पड़ा."
भंवर जी -"( मस्ती में, चटकारे लेते हुवे) - मोहनजी , कोरोना तो नही हो गया आपको.( सब हँसते हैं) कुछ नही थोड़ी सिगरेट खींचो, ऐसी गर्मी होगी फेफड़ो में, कफ वफ सब गायब".( सब फिर से हँसते हैं)
श्याम जी - ( अखबार समेटते हुवे ,गहनता से ) - "घर पे ही देशी दवा करो. उकाली पियो , लूंग,काली मिर्च की. हल्दी के गरारे करो. हॉस्पिटल जाने की गलती मत करना. वो तो इंतज़ार में बैठे हैं. कोई बुढ़ा, ठाढ़ा आ भर जाए.फिर मरके ही बाहर आता हैं. किडनियां निकाल लेते हैं. एक वीडियो भी देखा मेने सुबह ही, फ़ोन पे भेजा भाई के लड़के ,राघव ने".
सुरता रामजी - "बॉडी भी नही देते. खुद ही जला देते हैं. कुछ को देते भी है तो पूरा पैक करके. रीति रिवाज कुछ नही,10-20 आदमी जाओ, फूंक के आ जाओ. पास भी कोन जाए, कौन हाथ लगाए".
वर्मा जी - "मुझे तो लगता हैं, सब देशों की गवर्मेंट ने मिल के बड़ा प्लान किया हैं. सब जगह बूढ़े ही तो मर रहे हैं. इटली, स्पेन, फ्रांस , जर्मनी. अमरीका या भारत को ही ले लो. वहां ओल्ड एज वालो के ऊपर सरकार का भारी खर्च आता है और यहां पेंशन देनी पड़ती है.
बूढ़े साफ। कितना पैसा बचेगा सरकारों का."
अरुणजी - "कुछ तो गड़बड़ हैं। पहले कहते थे जानलेवा बीमारी हैं , एक बार हुई तो मरना तय है और अब कह रहे हैं 70 परसेंट से ऊपर रिकवरी रेट हैं. ऐसा होता हैं क्या"
भंवर जी - ".... ये हमको चु........ बना रहे हैं और हम बन रहे हैं."
( सुधाजी घर से दूध लाने के लिए निकली हैं, हाथ मे छोटा थैला लिए ,सब को एक साथ बैठे देख कर)
सुधा जी - "गुरुजी( श्यामजी) , वर्माजी, आप सब. ऐसे टाइम में सब एक साथ. ये लो, एक ही सिगरेट पी रहे हैं। कोरोना का टाइम हैं। खराब टाइम हैं। आप सब तो समझदार हो, मास्क भी नही लगा रखे। "
श्यामजी - ( हलका लेते हुवे व समझाते हुवे) "अब कोरोना में पहले वाली बात नही रही. वायरस कमजोर पड़ गया हैं। तीन दिन में लोग अपने आप ठीक हो रहे हैं. अब फिक्र करने की इतनी बात नही है।"
मोहन जी - ( खांसते हुवे) - "नही ,ध्यान रखने में कोई बुराई नही हैं. मास्क तो लगा ही लेना चाहिए."
सुधा जी - ( चिंता करते हुवे) अरे आपको तो सर्दी ज़ुकाम हो रखा हैं. गला भी बैठा हैं. कफ जम गया लगता हैं. सरकारी डिस्पेंसरी पास ही तो हैं, जाके दिखा दो। टेस्ट भी करवा लेना। यहां तो भीड़ भी नही रहती।"
सुरता रामजी - ( श्यामजी के पक्ष में बोलता हुवा) - "रहने दो सुधा जी. अब आप लेडीज लोग को भी क्या समझाना. किडनियां, फेफड़े, लिवर सब निकाल लेते हैं. घर पे रहे तो ही बचेंगे, हॉस्पिटल वाले तो इंतज़ार में बैठे हैं.कोई आ भर जाए..."
वर्मा जी -"अब हमारे तो पार्टियां होती ही रहती हैं. फिर नॉन वेज तो होना ही हैं. फिर कलीग लोग इमोशनल और हो जाते हैं. कई बार एक ही प्लेट में साथ बैठ जाते हैं. ( हँसके, याद करते हुवे) पीने के शेरिंग वाले मामले। दो बार ऐसा हो गया, बाद में पता चला, जो साथ मे खा रहा था, उसे कोरोना था. अब मुझे तो नही हुआ कोरोना और वो लोग भी अपने आप ही रिकवर हो गए."
भंवर जी - "गेली फिलम है कोरोना. कुछ पता नही, है कि नही. सबकी अलग राम कहानी. किसी को होता भी है या डॉक्टरों को बस लाखों का बिल बनाना हैं."
अरुण जी - "सही बात , इसका ज्यादा लोड नही लेना. अभी मेरा बेटा भी जबरदस्ती लेके गया मुझे. ये टेस्ट करवाने. अब वहां पर तो कोरोना वाले ही आते हैं. नही हो ,उसको भी कोरोना हो जाए. बेटे की जिद पर जैसे तैसे करवाना पड़ा. अब लिखवा के ले लो , मेरा नेगेटिव ही आएगा."
सुधा जी - ( गुस्से में) "कहाँ से सुनी ये सब बातें. कुछ पता भी हैं आप लोगो को , क्या हालात हो रखे है."
मोहनजी -" हां, आप बताओ सुधाजी, आप तो अध्यापक हो, ज्यादा जानते हो."
( सब निराश होते हुवे, जैसे वो सुनना ही नही चाहते)
सुधा जी -"पहली बात , कोरोना का टेस्ट फ्री है. सरकारी डिस्पेंसरी या प्राथमिक चिकित्सालय भी सैंपल कलेक्ट कर रहे है. दूसरे दिन तक रिपोर्ट आ जाती है.रिपोर्ट आने के बाद सर्दी झुखाम के अलावा, विटामिन सी, मल्टी विटामिन्स व इम्युनिटी बढ़ाने वाली दवाई भी दी जाती है ,वो सब भी फ्री है."
मोहन जी - "अच्छा"
"फिर आपके इलाके के बी एल ओ , डॉक्टर, पुलिस अधिकारी व नगर निगम के सदस्य के साथ एक व्हाट्सएप्प ग्रुप बनता हैं. जिसमे आपके एरिया के कोरोना से प्रभावित और भी लोग होते हैं."
अरुण जी -" बी एल ओ क्या होता हैं."
सुधा जी - "आपके एरिया का बूथ लेवल ऑफिसर. सरकारी अधिकारी जो सीधा आपसे जुड़ा रहता है."व्हाट्सएप्प पर डॉक्टर हर दिन आपके स्वास्थ्य की जानकारी लेता हैं. आपके ऑक्सीजन का लेवल आपसे जानता रहता हैं.पहले घर पे ही क्वारंटाइन किया जाता है. कोई जबरदस्ती हॉस्पिटल लेकर नही जाता हैं.बी एल ओ यहां तक ध्यान रखता है कि अगर आप बुजुर्ग है और बच्चे बाहर रहते हैं तो घर पे जरूरी सामान पहुचाने की व्यवस्था भी करता है।
चार पांच दिन में डॉक्टर घर आकर चेक करके जाता हैं. साइन होते है उसकी विजिट के, रिपोर्ट जाती है.आपका कचरा भी नगर निगम वाला लेकर जाता है, आपको बाहर नही फेंकना है. ये तक नोर्म्स हैं गवर्नमेंट के.."
वर्मा जी - "ह्म्म्म"
श्याम जी - (हैरान होते हुवे) "इतना कुछ..."
सुधा जी - "हां , और ख़ुदा न खास्ता आपकी तबियत बिगड़ी और हॉस्पिटल में जगह न हो तो डॉक्टर एम्बुलेंस से इमरजेंसी सर्विस जिसमें ऑक्सीजन की पूर्ति कराना या ड्रिप लगाना आदि मदद मुहैया कराता है, सिर्फ एक व्हाट्सएप्प के मैसेज मात्र से."सरकार इस महामारी को काबू करने के लिए और आपकी सहायता के लिए बहोत कुछ कर रही है. पर आपकी डींगे खत्म हो तो..."
( तभी अरुण जी का काल आता है, अरुण काल सुन के सुन्न सा हो जाता है, सब पूछते है क्या हुआ)
अरुण जी - ( डरा हुआ) - "मेरी रिपोर्ट पॉजिटिव आई है ."
सब एकदम शांत, सुधा जी को देखते है और नज़रे झुका कर निकलने लगते है.श्यामजी चलने ही लगते है कि घबरा के गिर पड़ते है. सुधा उठाने आती है. बिना उसे देखे ही अपने घर मे घुस जाते है."
सभी एक साथ फिर आते हैं और संदेश देते हैं
" अपनी समझ को बढ़ाना हैं
कोरोना को अब हराना हैं
देश का साथ निभाना हैं
मास्क सभी को लगाना है"!
स्त्री पुरुष
( सन 2110)
(झील के किनारे के पास,पहाड़ी पर बैठे दो प्रेमी)
( 28 वर्ष का युवक साधु वेश में, कामिनी सी सुंदर अपनी प्रेमिका से वार्तालाप कर रहा है)
दिव्यांशु - तुम अब भी प्रतीक्षा कर रही हो ?
सरिता - मृत्यु पर्यंत तुम्हारा प्रतीक्षा करूंगी। तुम्हारी तपस्या पूर्ण होने तक।
दिव्यांशु- तुम जानती हो। मेरे दादाश्री व पिताश्री ने इस इस पृथ्वी को पुनर्जीवन दिया। जब मनुष्य मन पूरी तरह मलिन हो गया था। धन व सत्ता के लोभ में, इस धरा को अणु एवम् परमाणु युद्धों से बंजर कर दिया था। विलुप्त होती मानव जाति व इस धरा को को वनस्पतियों,, औषधियों, पेड़ - पोधों से,उन्होंने पुनर्जीवित किया था।
मनुष्य इतना मूर्ख कैसे हो गया था कि अपने ही काल का बीज उसने स्वयं बोया,उसे सींचा भी और स्वयं बढ़ा किया और फिर आत्महत्या भी की।
सरिता - क्या मनुष्य का मन अभी मलिन नहीं?
क्या कुछ घटनाओं के बारे में तुमने नहीं सुना?
दिव्यांशु- यह और भी कष्टदायक है। क्या कोई ऐसा मार्ग नहीं, उपाय नहीं,जिसे अपनाकर मनुष्य मन कभी मलीन ही ना हो।बस इसी का हल खोजने में मैंने अपना जीवन अर्पण कर दिया है। और अब शायद मैं सत्य के बहुत निकट हूं।
सरिता - दिव्यांशु.…
क्या प्रेम का अधिकार सिर्फ मुझे और तुम्हें हैं? आज जहां सब जगह भय व्याप्त है,वहां प्रेम की स्वच्छंदता और स्वतंत्रता कहां!
मुझे भोजन के लिए हत्या का कारण फिर भी ठीक जान पड़ता है, परंतु कमजोर स्त्रियों,कुमारियो के साथ बलात व्यवहार, उनकी लज्जा भंग! यह सब सुनकर स्वास लेना भी मुझे दुर्भर लगता है।
सरिता - तुम भी दिव्यांशु..
( तभी दिव्यांशु के सिर पर वार होता है।दो लोगों उसे रस्सी से बांध देते हैं)
(सरिता के साथ बलात्कार की घटना।संपूर्ण दृश्य नृत्य के रूप में दिखाया जाए)
(दिव्यांशु की मूर्छा टूटती है।रक्षा के लिए बंधन तोड़ने का प्रयत्न करता है तभी एक छुरा उसके हृदय के आर पार कर दिया जाता है)
दिव्यांशु - हे प्रभु! अगर मेरी श्रद्धा मानवता के लिए सच्ची रही है। तो प्रभु, भविष्य में वह सभी पुरुष जो किसी स्त्री की इच्छा के बिना, उसे बलात हथियाने की चेष्टा करें ;वह उसे छूते ही नष्ट हो जाए। मैं श्राप देता हूं!
Fadeout
(झील के किनारे के पास,पहाड़ी पर बैठे दो प्रेमी. एक दूसरे से बातें कर रहे हैं।एक दूसरे को प्रेम से निहार रहे हैं)
(तभी मधुर संगीत बजने लगता है और दोनों नृत्य करने लगते है।श्रृंगार रस से भरपूर,प्रेमालाप)
(दोनों नाच रहे हैं कुछ दुष्ट लोग आसपास से आते रहते हैं। युवती को छूने की चेस्टा करते हैं और भस्म हुए जाते हैं)
(दोनों का प्रेमालाप जारी है)
(संगीत और नृत्य से इस दृश्य को सुंदर बनाया जाए)
(दोनों नाचते गाते राइट विंग से निकल जाते हैं)
Fadeout
(नेपथ्य से आवाज "कुछ सालों बाद")
(औरतों की बैठक। मुखिया एक स्त्री है।उसके सामने दो पुरुष और 4 स्त्रीयां खड़ी है)
मुखिया स्त्री - यह सब क्या हो रहा है?
पुरुष एक - कल एक और पुरुष का हरण हो गया।साथ में उसके पुत्र का भी।पुरुष को उसके पुत्र की हत्या का डर दिखाकर, उसे सहवास के लिए विवश किया गया।
मुखिया स्त्री - कोई बताएगा! पुरुषों की रक्षा का दायित्व किसका है?
4 औरतें (एक साथ)- हमारा
मुखिया स्त्री - उस नगर का मुख्य रक्षक कौन था?
स्त्री एक - देवी बिनल
मुखिया - जो निर्बल पुरुषों की रक्षा नहीं कर सकता। उसे देवी कहलाने का कोई अधिकार नहीं। उससे देवी की उपाधि छीन ली जाए और न्यायालय में उपस्थित होने के आदेश दिए जाए।
Fade out
(न्यायपालिका का दृश्य)
मुखिया स्त्री - न्यायपालिका की कार्रवाई शुरू की जाए।
स्त्री एक -- उत्तम नगर में पुरुषों की रक्षा का दायित्व तुम्हारा था। क्या तुमने अपने कर्तव्य का पालन पूर्ण श्रद्धा से किया ?
मुख्य रक्षक (देवी बीनल ) - जी पूर्ण श्रद्धा से।
मुखिया स्त्री -- फिर ये घटना कैसे हुई?
मुख्य रक्षक देवी बिनल - कारण आप भी जानते हैं !
मुखिया औरत - कैसा कारण ?
मुख्य रक्षक बिनल - आप जानते हैं पुरुषों की संख्या अत्यधिक कम है। औरतों की भी अपनी शारीरिक आवश्यकताएं हैं।
मुखिया स्त्री - देवी बिनल,इस नगर के बाहर पुरुषों का वेश्यालय भी तो है।क्या वह...
देवी बिनल - वहां पहले से ही पुरुषों की संख्या कम है। वहीं उनके लिए इस आनंद की अनुभूति का कोई मूल्य नहीं।वह इससे नीरस है। कितने ही पुरुष बाल्यावस्था में ;अपने घर के, आसपास की स्त्रीयों द्वारा कई घटनाओं के शिकार हो जाते हैं। अतएव वो नीरस हैं। मुद्राएं दोगुनी करने पर भी कोई इस कार्य में रुकने को तैयार ही नहीं।
मुखिया स्त्री - तो फिर क्या किया जाए।
देवी बिनल- कोई ठोस उपाय ही खोजना पड़ेगा।अब तो भगवान शिव ही कुछ कर सकते हैं।
मुखिया स्त्री - तो अब शिव ही करेंगे।
Fadeout
(मुखिया स्त्री, स्त्री 1 और 2 के साथ,भगवान शिव की अर्चना कर रही है। कोरस में गीत चल रहा है)
(शिव की संस्कृत में आरती हो, रोमांचक वातावरण का निर्माण किया जाए)
मुखिया स्त्री - हे महादेव अगर मन वचन और कर्म से मैं शुद्ध रही हूं तो कृपा कर आप दर्शन दे
(प्रसन्न हो शिव दर्शन देते हैं)
शिव -उठो पुत्री
मुखिया स्त्री - प्रभु आप अंतर्यामी हैं। स्त्रियां मृत्यु सा जीवन जी रही है। किसी निरर्थक वस्तु का ना होना भी उसे और मूल्यवान बना देता है। भौतिक अनुभूति की चाह में मानवता की हत्या हो रही है। अब आप ही उपाय सुझाए।
और यह सब कैसे शुरू हुआ और क्यों?
शिव -बेटी,एक साधु ह्रदय प्रेमी पुरुष का श्राप लगा है, स्त्रियों की रक्षा हेतु।
मुखिया स्त्री - लेकिन यह कैसी रक्षा! यह मृत्यु है।
शिव- अत्यधिक सुरक्षित जीवन की चाह,जीवन ही को मार देती है।
मुखिया स्त्री - क्या पुराने काल में स्त्रियों स्वयं अपनी रक्षा नहीं कर पाती थी? हम तो स्वयं निर्बल पुरुषों को सुरक्षा प्रदान करती है।
शिव - हां, पुत्री हर एक घटना,एक नई घटना की तरफ काल को मोड़ देती है।एक ऐसा युग भी था।जब प्रचुर मात्रा में अस्त्र-शस्त्र भी विद्यमान थे। एक उंगली दबाने मात्र से स्त्री अपनी रक्षा कर सकती थी, प्रतिशोध ले सकते थी। तब भी वह निर्बल ही बनी रही। पुरुष का सहारा तलाश करती रही। अपने प्रतिशोध का भार भी उसने पुरुष पर डाल दिया। कभी भाई, कभी वृद्ध पिता; तो कभी प्रेमी पर !
स्त्री 1 - स्त्रियां इतनी कायर थी।
शिव - हां और फिर पुरुषों ने उनकी रक्षा का भार, अपने कंधों पर ले लिया और और रक्षा किससे ! स्वयं पुरुषों से।
पुरुषो ने स्त्री की लज्जा भंग को अपने मान सम्मान का प्रश्न बनाया, न की स्त्री का।
स्वयं आत्मनिर्भर होने की अपेक्षा वो पुरुषों के आदेशानुसार चलने लगी।
स्त्री 2 - वह कैसे ?
शिव- पहले पुरुषों ने उनकी रक्षा के लिए; उनके बाहर जाने पर प्रतिबंध लगाया।उसके बाद उनके वस्त्रों पर,कि क्या क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं।
मुखिया स्त्री - वस्त्रों पर भी
शिव - हां, स्त्रियां ढकी रहती थी वस्त्रों से। कड़ी धूप में भी, बस दो नेत्रों से देखा करती थी, घर जाने का मार्ग, वो भी धुंधला सा ...
मुखिया स्त्री - फिर
शिव - फिर प्रतिबंध लगे उनके मन पर
मुखिया स्त्री - वो कैसे ?
शिव - उसे बताया गया कि पुरुष को जन्म देने वाली स्त्री, स्वयं निर्बल है। प्रकृति ने जिसे चुना मातृत्व के लिए,वह स्वयं दुर्बल है।
और नारियों ने यह स्वीकार भी कर लिया।कि हां वह दुर्बल है, निर्बल है।
स्त्री 1 - अचरज है !
शिव - उस काल में शृंगार कर पुरुषों को लुभाना, आकर्षित करना ही बस,जीवन रह गया था स्त्रियों का।
स्त्री 2- परंतु प्रभु,श्रृंगार तो शोभा हैं नारी की।
शिव - यह भ्रम तुम्ह लोगो को कैसे हुआ।अपने आसपास देखो, प्रकृति को देखो ! श्रृंगार केवल पुरुषों के लिए है। स्त्री स्वंयम ही सौंदर्य है।
मुखिया स्त्री - वह कैसे !
शिव- मोर को देखो।प्रकृति ने सिंगार मोर को दिया है।मुकुट, तिलक, पंख, विविध रंग। मोरनी को देखो। वह सहज स्वरूप हैं।
सिंह को देखो। शिरोधरा केसों के हार से सुशोभित। और शेरनी सहज स्वरूप में। कुक्कुट को देखो और कुक्कुटी...
स्त्री 1- और शिकार भी सिंहनी करती है।
शिव - स्त्री शक्ति का प्रतीक है,फिर स्त्री निर्बल कैसे हो सकती है।
मुखिया स्त्री - इसका अर्थ पुरुष शृंगार कर स्त्री को आकर्षित करता था।
शिव - स्त्री स्वयं जो सौंदर्य और शक्ति हैं।वो पुरुषों को लुभाने के प्रयास क्यों कर करे।
तीनो स्त्रीयां (एक साथ) - प्रभु,अब आप ही मार्गदर्शन करें।हमारी समस्याएं आपके सामने प्रत्यक्ष हैं।
शिव - ( मुखिया स्त्री को) हल तो तुम्हें पता ही है।
मुखिया स्त्री - स्त्री के लिए पुरुष ही हल है और पुरुष के लिए स्त्री। दोनों एक दूसरे के पूरक है। किसी एक का अंत होने से समस्त मनुष्य प्रजाति का ही अंत हो जाएगा।
लेकिन पुरुष है कहां ? पूरी पृथ्वी में कितने पुरुष हैं शेष हैं !
शिव - पुरूष हैं।वो पुरुष बचे रह गए हैं, जिनमें पुरुषत्व हैं। संख्या में कम है। लेकिन यही सही समय भी है, जब आने वाली पीढ़ियां सन्मार्ग पर लाई जाए और यह दायित्व है हर माता और बहन का कि वह अपने पुत्र,भाई को सिखाएं की औरत के साथ क्या व्यवहार उचित है।
मुखिया स्त्री - किन गुणों से युक्त पुरुष बचे रह गए प्रभु ?
शिव- जिन्होंने स्त्री को केवल भोग का साधन न माना। स्वयं की तरह ही जीव माना।
स्त्री 1 - और
शिव - जिन्होंने उनसे प्रेम तो किया परंतु स्त्री की अनिच्छा पर उनके साथ बलात कुछ न किया।
स्त्री 2- और
शिव - वह पुरुष बच्चे रह गए,जिन्होंने प्रेम में त्याग के महत्व को समझा। जिन्होंने प्रेम में पराजय भी स्वीकार की। विवेक त्याग जिसने विजय के लिए अनुचित प्रयास नहीं किए।
मुखिया स्त्री - प्रभु,एक पुरानी कहावत हमने सुनी हैं की
"युद्ध व प्रेम में सब कुछ मान्य हैं। "
शिव - इस पृथ्वी में सबसे विवेकहीन पुरुष की ये उक्ति थी। जिसने शरीर के प्राप्ति को ही प्रेम समझ लिया था।
न युद्ध में और न ही प्रेम में सब कुछ मान्य हैं।
मनावता की हदे लांघ कर किए गए कर्म कैसे उचित हो सकते हैं।
मुखिया स्त्री - जो अपना मन हार गए ! प्रेम न मिलने पर भी जो प्रेम करते रहे। ऐसी पुरुषों में कोनसा गुण है।
शिव - यह प्रेम का गुण है।
भंवरे का, पतंगों का, चातक का गुण हैं।
स्त्री 1 - भंवरे का गुण !
शिव - बड़ी से बड़ी कठोर लकड़ी को भी काट देने वाला भंवरा, फूल की कोमल पत्तियों में जब कैद हो जाता है तब उसे काटता नहीं वरन श्वासावरोध होने पर भी,अपने प्राण तक त्याग देता है; परंतु उन्हें काटता नहीं। यह उसका प्रेम है।
स्त्री 2- पतंगे का गुण
शिव - पतंगे अग्नि के प्रेम में जलकर राख हो जाते हैं।
मुखिया स्त्री - प्रेम ही है हल। चातक का प्रेम!
शिव - चातक वर्षा की चाह में,शुद्ध पाने की चाह में प्राण त्याग देता है। लेकिन मलिन नदी- नालों से अपनी प्यास नहीं बुझाता।
जब शुद्र जीव जंतु में ये गुण हैं,तो मनुष्य तो परमात्मा की उत्कृष्ट कृति है।
इकाई -इकाई से समाज का मंदिर बनता है।जब तक एक- एक इकाई संस्कारों के साथ घड़ी नहीं जाएगी। तब तक समाज मंदिर स्वरूप नहीं लेगा
मुखिया स्त्री - परंतु प्रभु,मनुष्यों में दुर्गुणों है ही क्यूं?
अगर परमात्मा दुर्गुण देते ही नहीं
शिव - मनुष्य परमात्मा की कटपुतली मात्रा नहीं हैं। परमात्मा के प्रेम की कृति हैं मनुष्य। मनुष्य को वरदान है, परमात्मा का सबसे अनमोल वरदान!
तीनो स्त्रियां - अनमोल वरदान !
शिव - स्वतंत्रता का !
मुखिया स्त्री - स्वतंत्रता का ?
शिव - मनुष्य स्वतंत्र है चाहे तो दूषित,मलिन, निकृष्ट जीवन व्यतीत करें या उत्कृष्ट जीवन की तलाश करे। ऐसे उत्कृष्ट पुरुष स्त्रियों के संतुलन से ही सृष्टि में जीवन संभव है सरिता।
तीनो स्त्री - सरिता !
शिव - ( मुखिया स्त्री को) -हां पुत्री। तुम ही थी सरिता, शुद्ध प्रेम का प्रतीक। फिर तुम्हारा प्रेम अधूरा कैसे रह सकता है। और है कहीं तुम्हारी प्रतीक्षा करता दिव्यांशु। जैसे कभी तुमने उसकी प्रतीक्षा की थी। जाओ और खोजी दिव्यांशु को और उस जैसे पुरुषों को, जिनमें दिव्यांशु जैसे गुण विद्यमान हो।
जाओ पुत्री जाओ।
तीनो स्त्रियां - शत शत प्रणाम प्रभु।
(आशीर्वाद देते हैं। शिव अंतर्ध्यान हो जाते हैं)
Fade out
(स्त्रियां खोज में निकलती हैं। पुरुषों परदे के पीछे से निकल निकल कर आते हैं।खुशी से एक दूसरे को देख कर दौड़ के पास आते हैं। गले मिलते हैं।आनंद का,श्रृंगार का वातावरण बनता हैं)
(गाना शुरू होता है सब नृत्य में मग्न होते हैं )
सरिता व दिव्यांशु प्रेम से आलिंगन करते हैं।