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गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

तू ही तू

 ( एक बड़ा सा कमरा, जो किसी हाल से भी बड़ा हो.. 10x10 का पलंग लगा हुआ हैं. उसके बाद में भी 70 परसेंट एरिया खाली हैं. बैठने के लिए महंगे से सोफे लगे हैं..टेबल पर कई तरह के फ्रूट्स रखे हैं.. कई तरह के फूल रखे हुवे हैं..जो हर दिन बदल दिए जाते हैं..)


प्रेम : लगता हैं आज भी खिड़कियां लॉक हैं..


प्रीत : आप इतने उतावले क्यों हो. उन्होंने बोला है ना.. वह वक्त आने पर खोल देंगे.


प्रेम: हां ठीक है.. उतावला नहीं ..लेकिन मुझे ऐसा लगता है एक तरफ यहां झील या समंदर हैं.. लहरों का शोर सुनाई देता.. दूसरी तरफ जंगल.. या बहुत सारे पेड़.. पक्षी कितना चहकते हैं ना.. 


प्रीत: हां , मुझे अक्सर एक कोयल की कूक सुनाई देती है..


प्रेम: कोयल! अजीब बात है मुझे चिड़िया के चहकने की.. मोरनी की हूक .... और भी बहुत सारे पक्षी होंगे ..सब की बहुत मधुर आवाजे सुनाई देती हैं.. कोयल की कूक ,मैंने ध्यान नहीं दिया ..आज ध्यान से सुनूंगा.. इसलिए बाहर निकलना चाहता हूं


प्रीत: क्यों! आपको मेरे साथ अच्छा नहीं लगता यहां, फैसेलिटीज भी तो अच्छी है .. ..फ्रेश फ्लावर्स , फ्रेश फ्रूट्स ..हर दिन आ जाते हैं.. एयर कंडीशंड रूम हैं.. और आप हैं..


प्रेम: नहीं ऐसा नहीं है ..मुझे आपके साथ बहुत अच्छा लगता है, लेकिन.. लेकिन फिर भी.. मैं कौन हूं... आप कौन हैं ..हमारे नाम क्या हैं?..आप जानते हैं..


प्रीत: नहीं.. मुझे भी नहीं पता ..लेकिन आपको जब देखा.. मुझे डर नहीं लगा ... आप अजनबी नही लगे ..फिर आपसे बातें शुरू हुई...

अब ठीक ही है.. उन्होंने कहा है ना.. धीरे-धीरे खुद ब खुद पता लग जाएगा। मुझे यह लोग खराब नहीं लगते.. उल्टा अच्छे ही है।


प्रेम: हां अच्छे ही है लेकिन हमे साथ रहते काफी दिन हो गए हैं और हमें बाहर भी नहीं जाने दिया जा रहा ..

प्रीत: यह सब छोड़िए ना ...अच्छा सुनिए ...मुझे कल रात एक ख़्वाब आया.. हम दोनो ˈहज़्‌बन्‍ड्‌ वाइफ थे..


प्रेम: अच्छा!

प्रीत : आपने शायद कोई क्राइम किया था... क्या किया था ,यह पता नहीं... तो हम दोनों अपने दो बच्चों के साथ; एक बग्गी में छुप के कहीं भाग रहे थे ..फिर भागते भागते एक फोर्ट जिसका नाम मेहरानगढ़ था.. उसमे जा छुपे..


प्रेम : किसी किले में क्यो?


प्रीत : क्योंकि वहां पर बड़ा सा मेला लगा था और भीड़ ज्यादा थी.. जिससे हम लोग वहां पर छुप सकते थे... सुरक्षित रह सकते थे.. वहां पर पूजा और हो रही थी...


प्रेम: फिर क्या हुआ..


प्रीत : वहां पर भी राजा के सैनिक हमे ढूंढ रहे थे ..मैंने बच्चों को सुरक्षित जगह पर छुपा दिया था... हम फोर्ट में ही छुपने वाले थे ..आपको प्यास लगी ... मैं पानी लेने बाहर गई.. कुछ सैनिकों की नजर मुझ पर पड़ी.. मेरी वजह से आप और बच्चे ना पकड़े जाएं तो मैं वहां से भाग गई..


प्रीत-- : लेकिन फिर आपका और बच्चों का सोच... मैं फिर किले की तरफ आई ...उस समय रात के 8:00 रहे थे .. यह फोर्ट के दरवाजे बंद होने का समय था..


प्रेम : फिर!


प्रीत : आप वहां नहीं थे जहां मैंने आपको छुपाया था.. मैंने आपको आवाज दी ..आपने मेरी आवाज सुनी भी थी.. लेकिन आप मुझे छोड़कर घाटी से नीचे उतर गए और सागरिया फाटक वाले दरवाजे से..भागते हुवे बहुत दूर चले गए ..


प्रेम : अरे! लेकिन हमारे बच्चे ...


प्रीत-- : उनको मैंने छुपा तो दिया था ..लेकिन उसके बाद वो सपने में नहीं थे ..

प्रेम-- : बड़ा कहानी टाइप का सपना हैं जी आपका..

प्रीत-- : हां, हैं तो.. 


प्रेम: सुनके मन बहुत खुश हुआ ..

प्रीत : अच्छा ( हंसती हैं).. सपना ही हैं.. कोई खास बात नही..

प्रेम: : हम्मम.. ठीक है ..कोई बात नहीं ...कम से कम मुझे खुश तो हो लेने दो


प्रीत : हां होइए खुश.. बिल्कुल होइए..

प्रेम-- : मेरे साथ एक चीज़ होती हैं

प्रीत-- : क्या?


प्रेम: : अक्सर मुझे तुम्हारी आंखे दिख जाती हैं, सोते वक्त .. सपनो में.. काफी बार जागते हुवे भी.. तुम्हारा चेहरा नज़र के सामने रहता हैं.. , without any reason


प्रीत-- : मैं तो कहूंगी बहुत सुंदर बात है ये..


प्रेम: : हां... बिल्कुल..


प्रीत : आप मुझे इतने बड़े किले में अकेला छोड़ कर चले गए.. मुझे अच्छा नहीं लगा.


प्रेम: : ये कैसे हुआ..समझ नही आया..


प्रेम: : आदमी बीवी को तो फिर भी छोड़ दे.. बच्चो को छोड़ के कैसे भाग गया..ऐसा क्या अपराध किया होगा.... या हो सकता हैं, मेरे साथ न होने से तुम और बच्चो को कम खतरा हो, इसलिए मैं चला गया ...लेकिन जो भी हो.... मैं वापस आऊंगा..


प्रीत-- : हाय रे दैया ! मतलब बीवी को छोड़कर जाने का कोई गम नहीं.

..

प्रेम: -- : गम तो होता ही हैं, आदमी कहे भले ना, लेकिन अपनी बीवी बच्चों को ,परिवार को सुरक्षित देखना चाहता हैं..


प्रीत-- : हां ,यह सही बात है..


प्रेम: : कोई वजह होगी, पता करूंगा.. मैं तुम्हे छोड़ के क्यों गया?


प्रीत-- : अरे कोई बात नहीं सपना ही तो था..


( Next Day).


प्रेम : मेरे साथ कल एक अजीब सी बात हुई..


प्रीत : जैसे कि..


प्रेम : जैसे की , मैने भी सपना देखा, फिर तुम्हारे सपने में चला गया... जहां से तुम छोड़ के गई... बाद में मेरे साथ क्या हुआ, जानती हो! ... सारी घटनाएं बैकफ्लैश में देखी.. तब कुछ कुछ पता लगा.. कुछ कुछ धुंधला था..


प्रीत-- : अरे ऐसा थोड़ी होता हैं...


प्रेम: : मेरे साथ क्या हुआ .. सुन तो लीजिए


प्रीत-- : अच्छा ठीक है आप बताइए..


प्रेम: : मुझे ठीक-ठीक याद नहीं की... मैंने तुम्हे पहली बार किधर देखा था..हम कैसे मिले..हमारी शादी कैसे हुई.. जहां तक मुझे सपना याद आता हैं...तुम पे राजा का बेटा मरता था... और इस वजह से मैंने उसे   कुश्ती में पटक पटक के मारा था...उसके बाद ही तुमने मुझे देखना शुरू किया.. नही तो हजारों नज़रे तुम्हारी तरफ थी... उसमे से मेरी छोटी आंखों पर तुम्हारी नज़र क्यूं रुक जाती..


प्रीत-- : हाए...बोलते रहो ..


( प्रेम जैसे होश में नहीं.. वो बोले जा रहा हैं)..


प्रेम: : याद हैं तुम्हे ..जब सखियों के साथ तुर्जि के झालरे पर पानी भरने आती थी... वहां पे पुरुषों का आना मना था.. लेकिन उधर जो पेड़ हैं ना... जहां कोयल बोलती थी और तुम उस तरफ देखती थी.. वहां में छुपा रहता था.. याद हैं तुम्हे कभी कभी कोयल ज़्यादा भी बोलती थी..


( जैसे प्रीत भी होश खो चुकी थी...सुने जा रही थी...)


प्रेम: : मैं अक्सर शहर की उन गलियों से गुजरता था.. जिन पर तुम चली हो... तुम्हारे साथ चलने का ऐहसास होता था..

 तुम्हे मेला याद हैं..जयपुर से व्योपारी आते थे.. तुम्हे चूड़ियां, झुमके और पायल पसंद थी.. मैं भी वही सब खरीद लेता था.. सोचता था.. कभी तुम्हे..

लेकिन तुम एक नज़र भर के देखती थी.. इठलाते हुवे चली जाती थी..मुझे देख कर इतनी हसती क्यों थी?


प्रीत-- : क्योकी तुम मुझे नज़रे चूरा कर देखते थे ... और जब तुम पकड़े जाते थे ....तो भाग जाते थे

 फिर तुमने पहली बार मुझे शादी की रात, मुँह दिखाई मे.... ये सब दिया था..


प्रेम: : ऐसा नहीं है की मैं मेले में तुम्हारा हाथ नही थाम सकता था.. मैं इन लोगो से नही डरता था..डरता था तो तुम्हारी नाराज़गी से, अपना बनाने वाली तुम्हारी आंखों से और मेरे दादाजी से भी.. वो भी तो साथ आते थे ना..


प्रीत-- : मारे शर्म के तुम्हारी आँखे झुक जाती थी..


प्रेम: : हां, और तुमने कहा था..मुझे कबसे जानते हो.. मैने कहा था... पता नही..शायद जब से चांद बना हैं..


प्रीत-- : और दादाजी को भी खूब पता था की तुम उस मेले में उनके साथ क्यूँ आते थे ..तब ही वे मुझे गुस्से की नज़रो से देखते थे..

 और उस रात तुमने पहली बार मेरी आँखो मे देखा था..


प्रेम: : हां ,तब सब कुछ रुक सा गया था, या सब कुछ खो सा गया था... समय.. मैं .. बस बची थी तो सिर्फ तुम.

 मैं तुम था या तुम मैं.. उस रात कोई नही कह सकता था.. या दो थे ही नहीं..क्या योग इसी को कहते हैं..

 दादाजी शहर में फैली वो बात सुन चुके थे .. राजकुमार की नज़र तुम पर हैं और नज़र कितनी बुरी बला हैं वो जानते थे.. ऐसा नहीं की वो तुमसे गुस्सा थे.. वो हम दोनो के खिंचाव को जानते थे.. और दोनो के लिए वो डरते थे..


प्रीत-- : हा, तभी जब हमारी शादी के खिलाफ पूरा परिवार था.. तब दादाजी ही हमारे साथ थे..


प्रेम : हां..

उस रात से दो बच्चो तक का सफ़र.. वो समय क्या था... जैसे बारह महीनो सावन, जैसे मौसम में मिसरी घुली थी...


प्रीत-- : और जैसे चाँद मुस्कुरा रहा हो..


प्रेम: : तुम्हारी चूड़ियों की खनक से चांद शरमा जाता था..तुम्हारी पायल की छमक से सूरज ताल मिला के चलता था.. जैसे शिव ने सालो बाद समाधी तोड़ी हो और पार्वती का आलिंगन किया हो..


प्रेम: : जैसे फूल हवाओं में तैर रहे हो और तितलियां सुंदर धुन में नाच गा रही हो..

संयासियों ने केशरी चोला त्याग कर फूलों का शृंगार कर लिया हो..


प्रेम: : बस तुम थी..तुम्हारे बालों की महक, बदन की नरमायी.. सुबह तुम्हारे टूटे बदन की वो अंगड़ाई..


प्रीत-- : मेरी वो चूड़िया, पायल, वो बिन्दी सब तुम्हारे लिए ही तो था। मेरे लिए तो शिव भी तुम और चाँद भी तुम। मेरा जन्म ही तुमसे प्रेम करने के लिए हुआ था।


प्रेम: लेकिन मुझे आज भी याद नहीं की उस दिन क्या हुआ.. जब तुम मेरे लिए ज़माने से लड़ रही थी.. हम दोनो भाग रहे थे... तुम वापस आने का कह कर गई.. और फिर मैं अकेले ही भाग रहा था..

हां, याद आया..धूनी बाबा ने मुझसे कहा था की तुम दोनो.. आज के नही..अभी नही मिले.. हमेशा से साथ हो..जीवन को ही सत्य, प्रेम बनाने में लगे हो..लेकिन सफ़र आसान न होगा..


प्रीत-- : काश आज धूनी बाबा होते... हमने कितनी बार उनकी तपती धूनी के पास.. चांद को निहारते हुवे...सर्दियों की वो ठंडी राते गुजारी थी..


प्रेम: : धूनी बाबा ने कहा था, तुम्हारी लड़ाई तो खुद प्रकृति और परमात्मा से हैं... बूंद सागर में मिल ,सागर हो जाती हैं.. तुम दो बूंदे मिल, सागर हो जाना चाहती हो...


 मैने उनसे पूछा भी ,की हुवे या नहीं हम भी सागर? और वो मुस्कुरा उठे... बोले तुम्हारा प्रेम ही तुम्हारा कवच है.. वो तुम दोनो को क्षमता देगा, रक्षा करेगा.. फिर तुम्हे मैने अकेले क्यों छोड़ दिया?


प्रीत : पता नही...


प्रेम: : याद हैं तुम्हे ,मैं जयपुर गया था..तुम्हारे लिए सितारे और काँच लगा लहंगा लाया था.. जब तुम उसे पहन के घूमर करती थी...

हम दो थे तो जीवन था.. हमारे होने का मतलब था...अकेले तो मैं नहीं.. तुम नही..कुछ भी नही..


प्रीत-- : और उन काँच की खास बात पता है क्या थी?


प्रेम: : क्या?


प्रीत-- : की घूमर करते वक़्त उन काँच में तुम ही तुम दिखाई देते थे..


प्रेम: : हां, उस दिन तुम राधा बनके नाची थी... पसीने से तर बतर..पर तुम मोहिनी सी.. नाचे ही जा रही थी.. और सब लोगो के सामने .. मुझे कैसे बाहों में भर लिया... मैं घबरा गया था.. शायद सब देख रहे होंगे..पर पता नही..तुम्हारी आंखों से नज़र ही नहीं हटी.. उस दिन तुमने मुझे आगे बढ़कर..अपने गुलाब.. मेरे होटों पर... बाक़ी सबने भी कांटो का काम किया.. घर जैसे वृंदावन का बाग बन गया था..


प्रीत-- : मुझे भान नही था लोगो का.. मै तो अपने ..कान्हा के लिए .. कान्हा से रास ... बस..


प्रेम: : दादाजी अक्सर कहते थे..दुकान चलो..सोता ही रहेगा क्या?... हां, अक्सर मैं सो जाता था.. खो जाता था.. तुम्हारी बाहों में... तुम्हारी बाते सुनते हुवे, जिंदगी जैसे portrait mode पे चल रही थी...सब कुछ धुंधला हो जाता था..दुकान भी, दादाजी की आवाज भी.. शहर भी.. बस तुम थी..बस तुम ..


( अचानक प्रेम कहते कहते रुकता हैं, ज़मीन पर घिर पड़ता हैं)

( प्रीत पानी के छींटे मारती हैं.. प्रेम को पानी पिलाती है )


प्रेम : प्रीत..


प्रीत : हां ,प्रेम..


प्रेम: मैं तुम्हें छोड़ के नही भागा था प्रीत.. राजा का बेटा उसी दिन राजा बना था...वो मेले में सब को.. निर्दोषों को भी मार देते.. मुझे सामने आना पड़ा...

बच्चे अपनी आंखों के सामने मुझे.. मरते न देख ले.. इसलिए मैं वहा से..


प्रीत-- : हां... हां...हां.. ( रोती हैं)


और मैं ये जुदाई बर्दाश्त ना कर सकी और चली आई तुम्हारे पास...

हमारे बच्चो को दादाजी के पास छोड़ कर..


प्रेम: : रोओ मत प्रीत.. लेकिन फिर भी देखो ..हम मरे नही..हमारे प्रेम ज़िंदा हैं.. हमारे बच्चे..हमारे एक होने का सुख..


प्रीत-- : तुम इतना प्रेम क्यूँ करते हो ,प्रेम..


प्रेम: : क्योंकि तुम प्रेम थी... बस प्रेम..


प्रेम: : अब तो समझ भी नही आता प्रीत, की मैं था, तुम थी या बस प्रेम था..


प्रीत-- : तुम और मै ही तो प्रेम है..


प्रेम: लेकिन हम अभी है कहां ..


प्रीत: मुझे कल जब  सपना आया , तभी इन लोगो  ने बताया कि ..हम वहां हैं जहां प्रेमी होने चाहिए... एक साथ में...ये लोग इसे Heaven, जन्नत या स्वर्ग भी कहते हैं..

मैं इंतजार कर रही थी ..बस तुम्हे सब याद आ जाए.. तुम लौट आओ मेरे पास..  

क्या अब भी तुम इन खिड़कियों को खोलना चाहोगे?

इनके पार वैभव हैं, अपार सुख हैं..


प्रेम: नही.. हम चले वापस अपनी धरा पर.. फिर से प्रेम करने के लिए.. बार बार प्रेम करने के लिए..


( दोनो विलीन होने लगते हैं....)

बुधवार, 7 अप्रैल 2021

प्रेम रोग

                                                नाटक।    

                                                 प्रेम रोग

पर्दा उठता है।

एक आदमी कुर्सी पर बैठा किताब पढ़ रहा है.

उम्र करीब 45 साल,. शांत ,समझदार, ठहराव से युक्त व्यक्तित्व.

तभी उमंग की एंट्री होती हैं. असंतुष्ट और चिड़ा हुआ. 35 साल का युवा, 4 साल पहले ही शादी हुई है.

उमंग - यश भाई, अब में और नही निभा सकता. मुझे आज़ाद होना है. दीपिका की किटपिट अब नही झेल सकता. सास बहू में , में ही पिसता हूँ बस.

अब जिंदगी बोर हो गयी है.लाइफ में कोई उमंग, उत्साह, मस्ती है ही नही

काश में उस दिन इमोशनल न होता, रेणुका के साथ भाग जाता, घर परिवार की फिक्र न करता.

आज रेणुका का साथ होता तो जिंदगी कुछ और ही होती.

इंसान को उसी से शादी करनी चाहिए, जिससे प्यार हो.

यश - और तुम्हे कैसे पता लगेगा कि अब तुम प्रेम करने के लायक हो. पूरी उम्र ही निकल गयी तो?

उमंग - कैसे पता लगेगा क्या? एक नज़र में प्यार हो जाता है.

यश खड़ा होता है, उमंग को होल्ड करता है और आंखों में आंखे डाल, बोलता है

यश - उसे देखा और वक़्त रुक सा गया हो जैसे. उसकी आंखों की गहराई, उसी में डूब जाने का मन करता है.

उमंग - असहज होते हुवे - हां, हां वही

यश - उसके नर्म मुलायम होंठ, गुलाब से गाल, सुराही सी गर्दन, अपनी तरफ बुलाता जवान जिस्म..

उमंग - यश के हाथ हटाते हुवे - सिर्फ शरीर नही, प्यार भी तो होता है

ये सब छोड़ो, तुम बताओ, मेरी परेशानी का हल क्या है।

यश - देखो

उमंग - देखो?

यश - हां , देखो. तुम्हारे आस पास जो प्यार का बाजार है. कभी सिनेमा प्यार बेचता है. कभी कोई साधु संत बना व्यक्ति, प्रेम को भगवान का दर्जा देता है.

पर सत्य, सत्य ध्यान से, देखने से ही विदित होता हैं.

आओ तुम भी देखो, हम सब देखे.

उमंग और यश ,अपनी कुर्शियों पर बैठ जाते है. उनपे लाइट डिम हो जाती है. अंधेरे में बैठे दो दर्शक से दिखते है.

(प्रथम जोड़ा) लड़का ,लड़की. उम्र 19,20 साल.

लेफ्ट विंग से लड़की और राइट से लड़का , आते है. स्टेज के सेंटर में मिलते है.

पास से गुजरते हैं तो,लड़का रुक सा जाता है, उसकी नज़र लड़की पर से हटती ही नही. लड़की शरमा के हँस देती है.

वापस चलने को होते ही फ्रीज हो जाते है.

यश - अब इनका रोज मिलना हुआ. लड़की को ,कुछ ही दिन में पता लग गया कि लड़का बड़ा उतावला है. सौ जगह लड़की की बाते करने लगा. कई अनजान लोग लड़की को भाभीजी , भाभीजी कहने लगे. तो लड़की ने दूरी बना ली.

आगे देखो

लड़का, लड़की अनफ्रीज़ होते है.

लड़का चिल्लाते हुवे, लड़की के पास आता है.

लड़का - में तुमसे प्यार करता हूँ. तुम्हारे बिना जी नही सकता. या तो में खुद मर जाऊँगा या तुम्हे मार दूंगा.

लड़की - में जीना चाहती हूं. तुम्हे मरना हो तो मरो.

लड़का गुस्से में चाकू निकालता है. लड़की के पेट मे घोंप देता है.

लड़का डर के स्टेज के लेफ्ट विंग की तरफ भाग जाता है.

घायल लड़की भी लड़खड़ाते, राइट विंग से बाहर हो जाती है.

उमंग - हैरत से - ये क्या?

यश - अभी और भी देखो

(दूसरा जोड़ा) लड़का, लड़की, उम्र 27,28 साल.

लड़की लेफ्ट विंग से आती है, लड़का राइट विंग से. दोनों एक दूसरे को अच्छे से जानते है. पास आते है.

लडक़ी- तुम ऑफिस के नीचे ऐसे....., वैसे भी हमारी बाते ही हो रही है आजकल

लड़का- यार तुम रूम पे भी तो नही आ रही आजकल. (सिर खुजाते हुवे) वो अपने लिए सेफ्टी का सामान भी ले आया था. पूरा का पूरा बॉक्स ....

लड़की - हट.. तुम पहले ये बताओ, मुझमें क्या अच्छा लगता है.

लड़का - तुम बहुत सेक्सी हो.

लड़की - और

लड़का, लड़की को कामुकता से देखते हुवे

लड़का - कि, तुम बहुत सेक्सी हो.

लड़की - और

लड़का seduce होते हुवे

लड़का- तुम बहुत..... सेक्सी हो यार

लड़का लड़की दोनों फ्रीज

उमंग - एक्साइट होते हुवे - आगे क्या

यश - देखो

लड़का, लड़की अनफ्रिज

लड़की - आई एम प्रेग्नेंट, इडियट. बच्चा होने के बाद अपनी फैमिली से बात करोगे.

लड़का - अभी बच्चा क्यों, एबॉर्शन करवा लो, अभी तो तुम....

लड़की - हां, कि में ,सेक्सी हूं, इडियट,चिटर..

लड़का कंधे उचकाता हुवा, राइट विंग से आउट हो जाता है.

लड़की स्टेज के लेफ्ट तरफ जाती है और फंदा लगा लेती है. कुछ लोग उसे उतार, लेफ्ट विंग से लेके चले जाते है.

यश - और देखना है.

उमंग - कुछ नही बोलता. शांत खड़ा रहता है.

(तीसरा जोड़ा) आदमी जो कि बाप है और उसकी लड़की

लड़की गुस्से मे बाप की तरफ चल के आती है.

लड़की - डैडी, वो टैक्सी वाला है तो क्या, में उससे प्यार करती हूं.

मुझे आपकी होटल्स, फार्म हाउसेस नही चाहिए . आपकी इकलौती बेटी हूं, पापा.

मेरे लिए इतना भी नही कर सकते.

बाप - बेटा, में कैसे समझाऊं ?

बाप बेटी फ्रीज

उमंग - इसमे क्या गलत है. प्यार करती है.

यश - देखो

लड़की - पापा उसने मुझे धोखा दिया हैं. वो कोई प्यार व्यार नही करता. दिन भर दारू पीके पड़ा रहता हैं. बच्चो के सामने ,मुझे, मारता है पापा.

में उसे छोड़ आई पापा.

बाप - रुआंसा होते हुवे , बेटी को गले लगाता है- कोई बात नही बेटा.

बेटी का हाथ, पकडे हुवे, बाप बेटी लेफ्ट विंग की तरफ निकल जाते है.

उमंग- बेसब्र होते हुवे - अरे तो प्यार किधर है.

यश उसे स्टेज की तरफ देखने का इशारा करता है.

(चौथा जोड़ा) पति पत्नी

पती - अपनी बच्ची को गोद मे उठाए, उससे बाते कर रहा है

पति - अरे यार एक घंटा हो गया, आफिस भी जाना है, अभी तक शेव भी नही की. तुम्हारा काम ही खत्म नही होता.

पत्नी - हां तो छह बजे उठा करो. पड़े रहते हो 8 बजे तक तो.
          चाय भी चाहिए, खाना भी चाहिए, बच्ची को भी रखलो.

पति - अरे ठीक ठीक हैं. अब गुड़िया का संभालो.

पत्नी बच्चे को लेफ्ट विंग की तरफ सुला आती है.

तभी पांच सेकंड के लिए फ्रीज , फिर रिलैक्स

पति- इस बार ना मनाली जाएंगे. कितना टाइम हो गया ना, कही गए ही नही.

पत्नी - कितना ख़र्चा आएगा.

पति - 40-50 हज़ार

पत्नी - इतनी सेविंग हैं, हमारे पास?

पति- अरे कर लेंगे, इधर उधर से, तुम्हारे लिए जान हाजिर है.

तभी बेटी की एंट्री होती है.

पापा, अब में बस से कॉलेज नही जाऊंगी. कैसे कैसे लोग होते है, घूरते हैं, गन्दे तरीके से.., मुझे स्कूटी चाहिए, नही तो कल से कॉलेज जाना बंद.

बाप बेटी के सिर पर हाथ फेरता है.

बाप - कितने की आती है ये स्कूटी

बेटी - 70 हज़ार की

एक पल को पति पत्नी एक दूसरे को देखते है.

बाप बेटी का हाथ पकड़ता है और मुस्कुरा के कहता है.

चल बेटा, स्कूटी लेके आते है.

बाप बेटी लेफ्ट विंग की तरफ निकलते है, पत्नी राइट विंग की तरफ निकलती है.

कुछ दूरी बाद ,पति पत्नी फ्रीज हो जाते है, बेटी आगे निकल जाती है.

5 सेकंड बाद रिलैक्स
बुजुर्ग आदमी को उसकी पत्नी दवाई व पानी का ग्लास देती है.

पति - अरे नही, नही

पत्नी - नही क्यों ? खाना खाने के बाद ,दवाई लेनी ह ना. 
कल भी आपका ब्लड प्रेशर बढ़ा हुवा था.

आदमी - बेटी का तो समझ आता है, शादी हो गयी है. तुम्हारा नालायक लड़का एक साल से घर नही आया.

पत्नी- बैंगलोर बड़ा शहर है. समय नही मिलता होगा उसको.

आओ आपको बाहर घूमा लाऊं.

पति, पत्नी को बड़े प्यार से देखता है. दोनों एक दूसरे को देखते हैं . पत्नी हाथ पकड़, पति के साथ लेफ्ट विंग की तरफ निकल जाती है.

उमंग और यश पे लाइट आती है.

उमंग - मुझे कुछ काम याद आया, में आता हूँ वापस.

यश अपनी किताब ले, हँसते हुवे, राइट विंग की तरफ निकल जाता है.

पर्दा गिरता है.

नाई की दुकान

एक साहब बाल कटा रहे है. एक मैडम भी बैठी हैं, उनको थ्रेडिंग करानी है. कोरोना की वजह से स्टाफ कम हैं. मैडम अखबार पढ़ रही हैं.

साहब - "तेरे तो धंधे का खूब नुकसान हुआ होगा."

नाइ - "हां, साहब कोरोना ने तो बर्बाद कर दिया. 50 परसेंट धंधा डाउन है".

साहब -" अरे हमारे भी हालात खराब ही है. पूरे 20 लाख का नुकसान हुआ है. ये तो बस चला रहे हैं जैसे तैसे."

नाइ - "अरे साहब आपको क्या फर्क पड़ता हैं."

तभी लिखमाराम जो कि गरीब है, दुकान में आता हैं. सफाई कर्मचारी , झाड़ू लगाने वाला हैं.लिखमाराम साहब को देख नमस्कार करता है.

साहब - "और भाई लिखमाराम कैसा है".

लिखमा - "बस साहब आप की मेहरबानी है."कह कर नीचे बैठता है.

मैडम - अरे आप नीचे क्यों बैठे है. पुरी बेंच तो खाली है. बैठ जाइए.

साहब- "अरे हां लिखमा, ऊपर बैठ जा... ( लिखमा खड़ा होता ही है कि) , चल कोई नही, ये तो सम्मान हैं तेरा......

लिखमा नीचे ही बैठ जाता है."

मैडम कुछ सोच कर, फिर अखबार पे ध्यान देती है.

साहब-( तेज़ आवाज़ से)" एक तो सरकार ने झूठ फैला दिया. कोरोना सोरोना सब अफवाह है. सरकार को फायदा हैं. लोग भी डरपोक हैं, मास्क लगा के घूम रहे हैं, एक दूजे से मिलना बंद कर दिया हैं. इसी से सब के धंधे बर्बाद हो गए हैं. बहुत बड़ा घोटाला है ये.."

(बात सुन लिखमाराम, अपना मास्क उतार उपर वाली जेब मे रख लेता हैं.)

नाइ -" सही बात साहब. हर कोई इतना थोड़ी जानता है. ( लिखमा को देखते हुवे) ये सब तो भेड़ चाल वाले है."

मैडम - "अरे सर, कितने देश घोटाले करेंगे. पूरी दुनिया मे वायरस फैला हैं. बास बस इतनी है, नया वायरस हैं, सो जैसे जैसे रिजल्ट आ रहे है, वैसे ही जानकारी में बदलाव आ रहे है.'और मास्क लगाने में क्या बुराई, और भी फैलने वाली बीमारी से बचाव होता है."

साहब - "अब आप लेडीज को भी क्या समझाना."

मैडम - "क्या मतलब?"

साहब - "कहने का मतलब. मैं बिना मास्क के कई रिस्तेदारो से मिला हूं, जिनको कोरोना हुआ है. कईयों के साथ बैठ खाना खाया है. एक बार तो कोरोना वार्ड में जाके मास्क निकाल दिया. 2 घंटे घूमता रहा. वो तो डॉक्टर नाराज होने लगे तो फिर लगाना पड़ा."

नाइ - "क्या बात, वाह"

मैडम कुछ बोलती उसके बीच मे ही लिखराम ने अखबार मांगा. अखबार लेते ही, लिखमाराम को 2 जोर से छींक आयी.

कुछ छीटें साहब के मुंह पर पडे.

साहब - ( गुस्से में) - "पागल हो गया है क्या? मास्क क्यों नही लगता. अनपढ़ गंवार साले."मैडम हैरानी से साहब को देखती है.

साहब -" नाइ को- कितने रुपये हुवे तेरे"

नाइ - "80 साहब"

साहब 100 का नोट देता है.

नाइ - "खुले नही है साहब, बिस रुपया अगली बार ले लेना."

साहब -" सब मुझसे ही कमाएगा क्या?"लिखमाराम जेब से खुले 20 रुपये निकाल के देता है.

साहब गुस्से में उससे रुपये ले, दुकान के बाहर निकल जाता है.

मैडम हैरानी से उसको जाते हुवे देखती रहती हैं.


कोरोना

 नाटक के चरित्र


1. सुधा जी - (उम्र 40 साल) - मास्टरनी हैं ,सब से बात कर लेती हैं. मोहल्ले में सब जानते हैं.


2. श्यामजी - (उम्र 62 साल) अखबार पढ़ने का शोक, सुबह का अखबार भी शाम तक चाटते रहते हैं. अपने आप को ज्ञानी ही समझते हैं. बड़ी बड़ी बातें करने वाले


3. मोहन जी -(उम्र 68 साल)- ध्यान ,योग पर भरोशा करने वाले, दुसरो की बात मानने वाले, थोड़े डरपोक टाइप. दुसरो की राय लेते ही रहते हैं.


4.भंवर जी - ( उम्र -52 साल) - गाने सुनने के शौकीन. बिस्कुट, चॉक्लेट कुछ न कुछ खाते ही रहते हैं. मज़ाक करने, बातों का चटकारे लेने वाले आदमी. सिगरेट नही पीते, पर कभी कभार सुरता राम जी के साथ पी लेते हैं.


5. सुरता राम जी -( उम्र -53 साल) किसी से बहस नही ,बीड़ी , सिगरेट पीने वाले, हां में हां मिलाने वाले. टोली के साथ मस्त रहना. मौका मिलने पर जबान खोलना.


6. वर्माजी - ( उम्र - 58 साल) - प्रोफेसर , लिटरेट आदमी. जानकारी दुनिया भर की. राजनीतिक बाते और वर्ल्ड नॉलेज की बाते करने वाले.


7. अरुणजी - ( उम्र 57 साल) - कम ही बोलते हैं, सब के बोलने के बाद, उन्ही सब की राय पे एक बात कह देते हैं.


सूत्रधार - जैसा कि आप सब जानते है कि दुनिया कैसे महामारी की मार झेल रही हैं. कोरोना से बचने के लिए मास्क व सोशल distancing काफी प्रभावी रहा है. पर हम में से कुछ लोग खुद ही डॉक्टर बन जाते है और अपना निर्णय देना शुरू कर देते हैं.मुझे तो डर है कि कल कोरोना की वैक्सीन आ गयी तो ,हम तो यु ट्यूब पे देख ,घर पर ही अपनी वैक्सीन ना बना ले.हम जानकारी की कमी के कारण ,क्या क्या धारणाएं बना लेते हैं, देखिए ज़रा..




सभी लोग एक साथ आते है और संदेश देते हैं




" अपनी समझ को बढ़ाना हैं


 कोरोना को अब हराना हैं


  देश का साथ निभाना हैं


  मास्क सभी को लगाना है"




फिर नाटक शुरू




{ शाम का समय , सब आदमी घर के बाहर चौकी ( दालान, बरामदा, चौपाल) पर बैठे गप्पे मार रहे हैं, कम आवाज़ में फ़ोन में गाने लगा ,भंवर जी आनंद ले रहे हैं , सुरता राम जी के साथ सिगरेट भी शेयर हो रही हैं, श्याम जी अखबार पढ़ रहे हैं.मोहन जी सब को देखते हुवे भी अंगुलियों को ध्यान मुद्रा में किये हुवे, ध्यान में जाने की असफल कोशिश कर रहे हैं, अरुणजी नज़र बचाते हुवे मोहल्ले की जवान लड़कियों को आते जाते देख रहे हैं. वर्मा जी किसी विचार में डूबे है,उदास से, सामने नजर पर देख किसी को नही रहे }




मोहन जी- "श्यामजी , मुझे तो गले मे बड़ा दर्द रहता हैं पिछले तीन एक दिन से. कल तो सुबह 5 बजे तक नींद ही नही आई. खुद ही उठ के पानी गर्म किया, थोड़ा सा नमक डाल, गरारे किए, तब चैन पड़ा."




भंवर जी -"( मस्ती में, चटकारे लेते हुवे) - मोहनजी , कोरोना तो नही हो गया आपको.( सब हँसते हैं) कुछ नही थोड़ी सिगरेट खींचो, ऐसी गर्मी होगी फेफड़ो में, कफ वफ सब गायब".( सब फिर से हँसते हैं) 




श्याम जी - ( अखबार समेटते हुवे ,गहनता से ) - "घर पे ही देशी दवा करो. उकाली पियो , लूंग,काली मिर्च की. हल्दी के गरारे करो. हॉस्पिटल जाने की गलती मत करना. वो तो इंतज़ार में बैठे हैं. कोई बुढ़ा, ठाढ़ा आ भर जाए.फिर मरके ही बाहर आता हैं. किडनियां निकाल लेते हैं. एक वीडियो भी देखा मेने सुबह ही, फ़ोन पे भेजा भाई के लड़के ,राघव ने".




सुरता रामजी - "बॉडी भी नही देते. खुद ही जला देते हैं. कुछ को देते भी है तो पूरा पैक करके. रीति रिवाज कुछ नही,10-20 आदमी जाओ, फूंक के आ जाओ. पास भी कोन जाए, कौन हाथ लगाए".




वर्मा जी - "मुझे तो लगता हैं, सब देशों की गवर्मेंट ने मिल के बड़ा प्लान किया हैं. सब जगह बूढ़े ही तो मर रहे हैं. इटली, स्पेन, फ्रांस , जर्मनी. अमरीका या भारत को ही ले लो. वहां ओल्ड एज वालो के ऊपर सरकार का भारी खर्च आता है और यहां पेंशन देनी पड़ती है. 


बूढ़े साफ। कितना पैसा बचेगा सरकारों का."




अरुणजी - "कुछ तो गड़बड़ हैं। पहले कहते थे जानलेवा बीमारी हैं , एक बार हुई तो मरना तय है और अब कह रहे हैं 70 परसेंट से ऊपर रिकवरी रेट हैं. ऐसा होता हैं क्या"




भंवर जी - ".... ये हमको चु........ बना रहे हैं और हम बन रहे हैं."




( सुधाजी घर से दूध लाने के लिए निकली हैं, हाथ मे छोटा थैला लिए ,सब को एक साथ बैठे देख कर)




सुधा जी - "गुरुजी( श्यामजी) , वर्माजी, आप सब. ऐसे टाइम में सब एक साथ. ये लो, एक ही सिगरेट पी रहे हैं। कोरोना का टाइम हैं। खराब टाइम हैं। आप सब तो समझदार हो, मास्क भी नही लगा रखे। "




श्यामजी - ( हलका लेते हुवे व समझाते हुवे) "अब कोरोना में पहले वाली बात नही रही. वायरस कमजोर पड़ गया हैं। तीन दिन में लोग अपने आप ठीक हो रहे हैं. अब फिक्र करने की इतनी बात नही है।"  




मोहन जी - ( खांसते हुवे) - "नही ,ध्यान रखने में कोई बुराई नही हैं. मास्क तो लगा ही लेना चाहिए."




सुधा जी - ( चिंता करते हुवे) अरे आपको तो सर्दी ज़ुकाम हो रखा हैं. गला भी बैठा हैं. कफ जम गया लगता हैं. सरकारी डिस्पेंसरी पास ही तो हैं, जाके दिखा दो। टेस्ट भी करवा लेना। यहां तो भीड़ भी नही रहती।" 




सुरता रामजी - ( श्यामजी के पक्ष में बोलता हुवा) - "रहने दो सुधा जी. अब आप लेडीज लोग को भी क्या समझाना. किडनियां, फेफड़े, लिवर सब निकाल लेते हैं. घर पे रहे तो ही बचेंगे, हॉस्पिटल वाले तो इंतज़ार में बैठे हैं.कोई आ भर जाए..."




वर्मा जी -"अब हमारे तो पार्टियां होती ही रहती हैं. फिर नॉन वेज तो होना ही हैं. फिर कलीग लोग इमोशनल और हो जाते हैं. कई बार एक ही प्लेट में साथ बैठ जाते हैं. ( हँसके, याद करते हुवे) पीने के शेरिंग वाले मामले। दो बार ऐसा हो गया, बाद में पता चला, जो साथ मे खा रहा था, उसे कोरोना था. अब मुझे तो नही हुआ कोरोना और वो लोग भी अपने आप ही रिकवर हो गए."




भंवर जी - "गेली फिलम है कोरोना. कुछ पता नही, है कि नही. सबकी अलग राम कहानी. किसी को होता भी है या डॉक्टरों को बस लाखों का बिल बनाना हैं."




अरुण जी - "सही बात , इसका ज्यादा लोड नही लेना. अभी मेरा बेटा भी जबरदस्ती लेके गया मुझे. ये टेस्ट करवाने. अब वहां पर तो कोरोना वाले ही आते हैं. नही हो ,उसको भी कोरोना हो जाए. बेटे की जिद पर जैसे तैसे करवाना पड़ा. अब लिखवा के ले लो , मेरा नेगेटिव ही आएगा."




सुधा जी - ( गुस्से में) "कहाँ से सुनी ये सब बातें. कुछ पता भी हैं आप लोगो को , क्या हालात हो रखे है." 




मोहनजी -" हां, आप बताओ सुधाजी, आप तो अध्यापक हो, ज्यादा जानते हो."




( सब निराश होते हुवे, जैसे वो सुनना ही नही चाहते)




सुधा जी -"पहली बात , कोरोना का टेस्ट फ्री है. सरकारी डिस्पेंसरी या प्राथमिक चिकित्सालय भी सैंपल कलेक्ट कर रहे है. दूसरे दिन तक रिपोर्ट आ जाती है.रिपोर्ट आने के बाद सर्दी झुखाम के अलावा, विटामिन सी, मल्टी विटामिन्स व इम्युनिटी बढ़ाने वाली दवाई भी दी जाती है ,वो सब भी फ्री है."




मोहन जी - "अच्छा"




"फिर आपके इलाके के बी एल ओ , डॉक्टर, पुलिस अधिकारी व नगर निगम के सदस्य के साथ एक व्हाट्सएप्प ग्रुप बनता हैं. जिसमे आपके एरिया के कोरोना से प्रभावित और भी लोग होते हैं."




अरुण जी -" बी एल ओ क्या होता हैं."




सुधा जी - "आपके एरिया का बूथ लेवल ऑफिसर. सरकारी अधिकारी जो सीधा आपसे जुड़ा रहता है."व्हाट्सएप्प पर डॉक्टर हर दिन आपके स्वास्थ्य की जानकारी लेता हैं. आपके ऑक्सीजन का लेवल आपसे जानता रहता हैं.पहले घर पे ही क्वारंटाइन किया जाता है. कोई जबरदस्ती हॉस्पिटल लेकर नही जाता हैं.बी एल ओ यहां तक ध्यान रखता है कि अगर आप बुजुर्ग है और बच्चे बाहर रहते हैं तो घर पे जरूरी सामान पहुचाने की व्यवस्था भी करता है।  


चार पांच दिन में डॉक्टर घर आकर चेक करके जाता हैं. साइन होते है उसकी विजिट के, रिपोर्ट जाती है.आपका कचरा भी नगर निगम वाला लेकर जाता है, आपको बाहर नही फेंकना है. ये तक नोर्म्स हैं गवर्नमेंट के.."




वर्मा जी - "ह्म्म्म"




श्याम जी - (हैरान होते हुवे) "इतना कुछ..."




सुधा जी - "हां , और ख़ुदा न खास्ता आपकी तबियत बिगड़ी और हॉस्पिटल में जगह न हो तो डॉक्टर एम्बुलेंस से इमरजेंसी सर्विस जिसमें ऑक्सीजन की पूर्ति कराना या ड्रिप लगाना आदि मदद मुहैया कराता है, सिर्फ एक व्हाट्सएप्प के मैसेज मात्र से."सरकार इस महामारी को काबू करने के लिए और आपकी सहायता के लिए बहोत कुछ कर रही है. पर आपकी डींगे खत्म हो तो..."




( तभी अरुण जी का काल आता है, अरुण काल सुन के सुन्न सा हो जाता है, सब पूछते है क्या हुआ)




अरुण जी - ( डरा हुआ) - "मेरी रिपोर्ट पॉजिटिव आई है ."




सब एकदम शांत, सुधा जी को देखते है और नज़रे झुका कर निकलने लगते है.श्यामजी चलने ही लगते है कि घबरा के गिर पड़ते है. सुधा उठाने आती है. बिना उसे देखे ही अपने घर मे घुस जाते है."




सभी एक साथ फिर आते हैं और संदेश देते हैं




" अपनी समझ को बढ़ाना हैं


  कोरोना को अब हराना हैं


  देश का साथ निभाना हैं


  मास्क सभी को लगाना है"!

स्त्री पुरुष

 ( सन 2110)


(झील के किनारे के पास,पहाड़ी पर बैठे दो प्रेमी)


( 28 वर्ष का युवक साधु वेश में, कामिनी सी सुंदर अपनी प्रेमिका से वार्तालाप कर रहा है)


दिव्यांशु - तुम अब भी प्रतीक्षा कर रही हो ?


सरिता - मृत्यु पर्यंत तुम्हारा प्रतीक्षा करूंगी। तुम्हारी तपस्या पूर्ण होने तक।


दिव्यांशु- तुम जानती हो। मेरे दादाश्री व पिताश्री ने इस इस पृथ्वी को पुनर्जीवन दिया। जब मनुष्य मन पूरी तरह मलिन हो गया था। धन व सत्ता के लोभ में, इस धरा को अणु एवम् परमाणु युद्धों से बंजर कर दिया था। विलुप्त होती मानव जाति व इस धरा को को वनस्पतियों,, औषधियों, पेड़ - पोधों से,उन्होंने पुनर्जीवित किया था।


मनुष्य इतना मूर्ख कैसे हो गया था कि अपने ही काल का बीज उसने स्वयं बोया,उसे सींचा भी और स्वयं बढ़ा किया और फिर आत्महत्या भी की।


सरिता - क्या मनुष्य का मन अभी मलिन नहीं? 


 क्या कुछ घटनाओं के बारे में तुमने नहीं सुना?


दिव्यांशु- यह और भी कष्टदायक है। क्या कोई ऐसा मार्ग नहीं, उपाय नहीं,जिसे अपनाकर मनुष्य मन कभी मलीन ही ना हो।बस इसी का हल खोजने में मैंने अपना जीवन अर्पण कर दिया है। और अब शायद मैं सत्य के बहुत निकट हूं।


सरिता - दिव्यांशु.…


क्या प्रेम का अधिकार सिर्फ मुझे और तुम्हें हैं? आज जहां सब जगह भय व्याप्त है,वहां प्रेम की स्वच्छंदता और स्वतंत्रता कहां!


 मुझे भोजन के लिए हत्या का कारण फिर भी ठीक जान पड़ता है, परंतु कमजोर स्त्रियों,कुमारियो के साथ बलात व्यवहार, उनकी लज्जा भंग! यह सब सुनकर स्वास लेना भी मुझे दुर्भर लगता है।


सरिता - तुम भी दिव्यांशु..


( तभी दिव्यांशु के सिर पर वार होता है।दो लोगों उसे रस्सी से बांध देते हैं)


(सरिता के साथ बलात्कार की घटना।संपूर्ण दृश्य नृत्य के रूप में दिखाया जाए)


(दिव्यांशु की मूर्छा टूटती है।रक्षा के लिए बंधन तोड़ने का प्रयत्न करता है तभी एक छुरा उसके हृदय के आर पार कर दिया जाता है)


दिव्यांशु - हे प्रभु! अगर मेरी श्रद्धा मानवता के लिए सच्ची रही है। तो प्रभु, भविष्य में वह सभी पुरुष जो किसी स्त्री की इच्छा के बिना, उसे बलात हथियाने की चेष्टा करें ;वह उसे छूते ही नष्ट हो जाए। मैं श्राप देता हूं! 


Fadeout


(झील के किनारे के पास,पहाड़ी पर बैठे दो प्रेमी. एक दूसरे से बातें कर रहे हैं।एक दूसरे को प्रेम से निहार रहे हैं)


(तभी मधुर संगीत बजने लगता है और दोनों नृत्य करने लगते है।श्रृंगार रस से भरपूर,प्रेमालाप)


(दोनों नाच रहे हैं कुछ दुष्ट लोग आसपास से आते रहते हैं। युवती को छूने की चेस्टा करते हैं और भस्म हुए जाते हैं)


(दोनों का प्रेमालाप जारी है)


(संगीत और नृत्य से इस दृश्य को सुंदर बनाया जाए)


(दोनों नाचते गाते राइट विंग से निकल जाते हैं)


Fadeout


(नेपथ्य से आवाज "कुछ सालों बाद")


(औरतों की बैठक। मुखिया एक स्त्री है।उसके सामने दो पुरुष और 4 स्त्रीयां खड़ी है)


मुखिया स्त्री - यह सब क्या हो रहा है?


 पुरुष एक - कल एक और पुरुष का हरण हो गया।साथ में उसके पुत्र का भी।पुरुष को उसके पुत्र की हत्या का डर दिखाकर, उसे सहवास के लिए विवश किया गया।


मुखिया स्त्री - कोई बताएगा! पुरुषों की रक्षा का दायित्व किसका है?


 4 औरतें (एक साथ)- हमारा


मुखिया स्त्री - उस नगर का मुख्य रक्षक कौन था?


 स्त्री एक - देवी बिनल


 मुखिया - जो निर्बल पुरुषों की रक्षा नहीं कर सकता। उसे देवी कहलाने का कोई अधिकार नहीं। उससे देवी की उपाधि छीन ली जाए और न्यायालय में उपस्थित होने के आदेश दिए जाए।


Fade out


(न्यायपालिका का दृश्य)


मुखिया स्त्री - न्यायपालिका की कार्रवाई शुरू की जाए।


 स्त्री एक -- उत्तम नगर में पुरुषों की रक्षा का दायित्व तुम्हारा था। क्या तुमने अपने कर्तव्य का पालन पूर्ण श्रद्धा से किया ?


मुख्य रक्षक (देवी बीनल ) - जी पूर्ण श्रद्धा से।


 मुखिया स्त्री -- फिर ये घटना कैसे हुई?


 मुख्य रक्षक देवी बिनल - कारण आप भी जानते हैं !


मुखिया औरत - कैसा कारण ?


मुख्य रक्षक बिनल - आप जानते हैं पुरुषों की संख्या अत्यधिक कम है। औरतों की भी अपनी शारीरिक आवश्यकताएं हैं। 


मुखिया स्त्री - देवी बिनल,इस नगर के बाहर पुरुषों का वेश्यालय भी तो है।क्या वह... 


देवी बिनल - वहां पहले से ही पुरुषों की संख्या कम है। वहीं उनके लिए इस आनंद की अनुभूति का कोई मूल्य नहीं।वह इससे नीरस है। कितने ही पुरुष बाल्यावस्था में ;अपने घर के, आसपास की स्त्रीयों द्वारा कई घटनाओं के शिकार हो जाते हैं। अतएव वो नीरस हैं। मुद्राएं दोगुनी करने पर भी कोई इस कार्य में रुकने को तैयार ही नहीं।


मुखिया स्त्री - तो फिर क्या किया जाए।


 देवी बिनल- कोई ठोस उपाय ही खोजना पड़ेगा।अब तो भगवान शिव ही कुछ कर सकते हैं।


मुखिया स्त्री - तो अब शिव ही करेंगे।


Fadeout


(मुखिया स्त्री, स्त्री 1 और 2 के साथ,भगवान शिव की अर्चना कर रही है। कोरस में गीत चल रहा है)


(शिव की संस्कृत में आरती हो, रोमांचक वातावरण का निर्माण किया जाए)


मुखिया स्त्री - हे महादेव अगर मन वचन और कर्म से मैं शुद्ध रही हूं तो कृपा कर आप दर्शन दे


(प्रसन्न हो शिव दर्शन देते हैं)


शिव -उठो पुत्री


मुखिया स्त्री - प्रभु आप अंतर्यामी हैं। स्त्रियां मृत्यु सा जीवन जी रही है। किसी निरर्थक वस्तु का ना होना भी उसे और मूल्यवान बना देता है। भौतिक अनुभूति की चाह में मानवता की हत्या हो रही है। अब आप ही उपाय सुझाए। 


और यह सब कैसे शुरू हुआ और क्यों?


शिव -बेटी,एक साधु ह्रदय प्रेमी पुरुष का श्राप लगा है, स्त्रियों की रक्षा हेतु।


मुखिया स्त्री - लेकिन यह कैसी रक्षा! यह मृत्यु है।


शिव- अत्यधिक सुरक्षित जीवन की चाह,जीवन ही को मार देती है।


मुखिया स्त्री - क्या पुराने काल में स्त्रियों स्वयं अपनी रक्षा नहीं कर पाती थी? हम तो स्वयं निर्बल पुरुषों को सुरक्षा प्रदान करती है।


शिव - हां, पुत्री हर एक घटना,एक नई घटना की तरफ काल को मोड़ देती है।एक ऐसा युग भी था।जब प्रचुर मात्रा में अस्त्र-शस्त्र भी विद्यमान थे। एक उंगली दबाने मात्र से स्त्री अपनी रक्षा कर सकती थी, प्रतिशोध ले सकते थी। तब भी वह निर्बल ही बनी रही। पुरुष का सहारा तलाश करती रही। अपने प्रतिशोध का भार भी उसने पुरुष पर डाल दिया। कभी भाई, कभी वृद्ध पिता; तो कभी प्रेमी पर !


 स्त्री 1 - स्त्रियां इतनी कायर थी।


शिव - हां और फिर पुरुषों ने उनकी रक्षा का भार, अपने कंधों पर ले लिया और और रक्षा किससे ! स्वयं पुरुषों से।


पुरुषो ने स्त्री की लज्जा भंग को अपने मान सम्मान का प्रश्न बनाया, न की स्त्री का।


स्वयं आत्मनिर्भर होने की अपेक्षा वो पुरुषों के आदेशानुसार चलने लगी।


 स्त्री 2 - वह कैसे ?


शिव- पहले पुरुषों ने उनकी रक्षा के लिए; उनके बाहर जाने पर प्रतिबंध लगाया।उसके बाद उनके वस्त्रों पर,कि क्या क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं।


मुखिया स्त्री - वस्त्रों पर भी 


शिव - हां, स्त्रियां ढकी रहती थी वस्त्रों से। कड़ी धूप में भी, बस दो नेत्रों से देखा करती थी, घर जाने का मार्ग, वो भी धुंधला सा ...


 मुखिया स्त्री - फिर 


शिव - फिर प्रतिबंध लगे उनके मन पर 


मुखिया स्त्री - वो कैसे ?


शिव - उसे बताया गया कि पुरुष को जन्म देने वाली स्त्री, स्वयं निर्बल है। प्रकृति ने जिसे चुना मातृत्व के लिए,वह स्वयं दुर्बल है। 


और नारियों ने यह स्वीकार भी कर लिया।कि हां वह दुर्बल है, निर्बल है।


 स्त्री 1 - अचरज है !


शिव - उस काल में शृंगार कर पुरुषों को लुभाना, आकर्षित करना ही बस,जीवन रह गया था स्त्रियों का।


स्त्री 2- परंतु प्रभु,श्रृंगार तो शोभा हैं नारी की।


शिव - यह भ्रम तुम्ह लोगो को कैसे हुआ।अपने आसपास देखो, प्रकृति को देखो ! श्रृंगार केवल पुरुषों के लिए है। स्त्री स्वंयम ही सौंदर्य है।


 मुखिया स्त्री - वह कैसे !


शिव- मोर को देखो।प्रकृति ने सिंगार मोर को दिया है।मुकुट, तिलक, पंख, विविध रंग। मोरनी को देखो। वह सहज स्वरूप हैं।


 सिंह को देखो। शिरोधरा केसों के हार से सुशोभित। और शेरनी सहज स्वरूप में। कुक्कुट को देखो और कुक्कुटी...


 स्त्री 1- और शिकार भी सिंहनी करती है।


शिव - स्त्री शक्ति का प्रतीक है,फिर स्त्री निर्बल कैसे हो सकती है।


 मुखिया स्त्री - इसका अर्थ पुरुष शृंगार कर स्त्री को आकर्षित करता था।


शिव - स्त्री स्वयं जो सौंदर्य और शक्ति हैं।वो पुरुषों को लुभाने के प्रयास क्यों कर करे।


तीनो स्त्रीयां (एक साथ) - प्रभु,अब आप ही मार्गदर्शन करें।हमारी समस्याएं आपके सामने प्रत्यक्ष हैं।


शिव - ( मुखिया स्त्री को) हल तो तुम्हें पता ही है।


 मुखिया स्त्री - स्त्री के लिए पुरुष ही हल है और पुरुष के लिए स्त्री। दोनों एक दूसरे के पूरक है। किसी एक का अंत होने से समस्त मनुष्य प्रजाति का ही अंत हो जाएगा।


 लेकिन पुरुष है कहां ? पूरी पृथ्वी में कितने पुरुष हैं शेष हैं !


शिव - पुरूष हैं।वो पुरुष बचे रह गए हैं, जिनमें पुरुषत्व हैं। संख्या में कम है। लेकिन यही सही समय भी है, जब आने वाली पीढ़ियां सन्मार्ग पर लाई जाए और यह दायित्व है हर माता और बहन का कि वह अपने पुत्र,भाई को सिखाएं की औरत के साथ क्या व्यवहार उचित है।


मुखिया स्त्री - किन गुणों से युक्त पुरुष बचे रह गए प्रभु ?


शिव- जिन्होंने स्त्री को केवल भोग का साधन न माना। स्वयं की तरह ही जीव माना।


स्त्री 1 - और 


 शिव - जिन्होंने उनसे प्रेम तो किया परंतु स्त्री की अनिच्छा पर उनके साथ बलात कुछ न किया।


स्त्री 2- और 


शिव - वह पुरुष बच्चे रह गए,जिन्होंने प्रेम में त्याग के महत्व को समझा। जिन्होंने प्रेम में पराजय भी स्वीकार की। विवेक त्याग जिसने विजय के लिए अनुचित प्रयास नहीं किए।


मुखिया स्त्री - प्रभु,एक पुरानी कहावत हमने सुनी हैं की


"युद्ध व प्रेम में सब कुछ मान्य हैं। "


शिव - इस पृथ्वी में सबसे विवेकहीन पुरुष की ये उक्ति थी। जिसने शरीर के प्राप्ति को ही प्रेम समझ लिया था।


न युद्ध में और न ही प्रेम में सब कुछ मान्य हैं। 


मनावता की हदे लांघ कर किए गए कर्म कैसे उचित हो सकते हैं।


मुखिया स्त्री - जो अपना मन हार गए ! प्रेम न मिलने पर भी जो प्रेम करते रहे। ऐसी पुरुषों में कोनसा गुण है।


शिव - यह प्रेम का गुण है।


 भंवरे का, पतंगों का, चातक का गुण हैं।


स्त्री 1 - भंवरे का गुण !


शिव - बड़ी से बड़ी कठोर लकड़ी को भी काट देने वाला भंवरा, फूल की कोमल पत्तियों में जब कैद हो जाता है तब उसे काटता नहीं वरन श्वासावरोध होने पर भी,अपने प्राण तक त्याग देता है; परंतु उन्हें काटता नहीं। यह उसका प्रेम है।


स्त्री 2- पतंगे का गुण


 शिव - पतंगे अग्नि के प्रेम में जलकर राख हो जाते हैं।


मुखिया स्त्री - प्रेम ही है हल। चातक का प्रेम!


 शिव - चातक वर्षा की चाह में,शुद्ध पाने की चाह में प्राण त्याग देता है। लेकिन मलिन नदी- नालों से अपनी प्यास नहीं बुझाता।


जब शुद्र जीव जंतु में ये गुण हैं,तो मनुष्य तो परमात्मा की उत्कृष्ट कृति है।


 इकाई -इकाई से समाज का मंदिर बनता है।जब तक एक- एक इकाई संस्कारों के साथ घड़ी नहीं जाएगी। तब तक समाज मंदिर स्वरूप नहीं लेगा  


मुखिया स्त्री - परंतु प्रभु,मनुष्यों में दुर्गुणों है ही क्यूं?


अगर परमात्मा दुर्गुण देते ही नहीं 


शिव - मनुष्य परमात्मा की कटपुतली मात्रा नहीं हैं। परमात्मा के प्रेम की कृति हैं मनुष्य। मनुष्य को वरदान है, परमात्मा का सबसे अनमोल वरदान!


तीनो स्त्रियां - अनमोल वरदान !


शिव - स्वतंत्रता का !


 मुखिया स्त्री - स्वतंत्रता का ?


शिव - मनुष्य स्वतंत्र है चाहे तो दूषित,मलिन, निकृष्ट जीवन व्यतीत करें या उत्कृष्ट जीवन की तलाश करे। ऐसे उत्कृष्ट पुरुष स्त्रियों के संतुलन से ही सृष्टि में जीवन संभव है सरिता।


तीनो स्त्री - सरिता !


शिव - ( मुखिया स्त्री को) -हां पुत्री। तुम ही थी सरिता, शुद्ध प्रेम का प्रतीक। फिर तुम्हारा प्रेम अधूरा कैसे रह सकता है। और है कहीं तुम्हारी प्रतीक्षा करता दिव्यांशु। जैसे कभी तुमने उसकी प्रतीक्षा की थी। जाओ और खोजी दिव्यांशु को और उस जैसे पुरुषों को, जिनमें दिव्यांशु जैसे गुण विद्यमान हो।


 जाओ पुत्री जाओ।


तीनो स्त्रियां - शत शत प्रणाम प्रभु।


(आशीर्वाद देते हैं। शिव अंतर्ध्यान हो जाते हैं)


Fade out


(स्त्रियां खोज में निकलती हैं। पुरुषों परदे के पीछे से निकल निकल कर आते हैं।खुशी से एक दूसरे को देख कर दौड़ के पास आते हैं। गले मिलते हैं।आनंद का,श्रृंगार का वातावरण बनता हैं)


 (गाना शुरू होता है सब नृत्य में मग्न होते हैं )


सरिता व दिव्यांशु प्रेम से आलिंगन करते हैं।