बुधवार, 7 अप्रैल 2021

1999 A Love Story अ लव स्टोरी

ये बात 1999 की है,

हम 8वी कक्षा पास कर चुके थे और नवी में ,नई स्कूल में एड्मिसन की तैयारी थी।

आप कह सकते हैं कि इतनी पुरानी बात क्यों निकाली गई।

क्या है कि जब वर्तमान जिंदगी घिसी सी, बुझी सी, एक जैसी लगने लगती है तो हम अक्सर कोई पुराना किस्सा, या याद में सुख तलाशने लगते है, कि ,कभी जिंदगी हम पर भी मेहरबान थी।

हम 10,12 दोस्त लोग बचपन से ही घर के पास वाली इंग्लिश मीडियम स्कूल में जाते थे। इंग्लिश मीडियम स्कूल की ख़ासियत होती है कि वहां जाके आप अपनी हिन्दी खराब कर देते हैं और इंग्लिश का तो...

खेर छोड़िये।

इंग्लिश मीडियम स्कूल को मारवाड़ी मीडियम बनाने में हमने कोई कसर न छोड़ी।

अच्छी बात ये थी कि हमारी कोहेड स्कूल थी ,लडकिया साथ थी और बुरी बात ये की लड़कियों के पास बैठना या उनसे टच हो जाने वाले को अछूत का सर्टिफिकेट दे दिया जाता था। 

6,7 दिन दोस्त लोग बात नही किया करते थे, कुछ लात,घुसे और ठोले मारने के बाद ही इस पाप से मुक्त हुवा जा सकता था

अब हम आठवी पास कर चुके थे, ये स्कूल आठवी तक की ही थी।नवी क्लास में हमें माहेश्वरी स्कूल में डाल दिया गया।

क्यूँ?

क्योंकि कुछ दोस्तों को उनके पिताजी ने ,उस स्कूल में भेजने का निश्चय कीया।

अपने बच्चे की समझ के अलावा ,माँ बाप को क्लास के सारे बच्चो की समझ पे भरोशा होता है

खैर।।

हम दोस्त लोग 14,15 साल की उम्र के थे। एक ,दो, के बकरी की तरह हल्की दाढ़ी और मूछे उगने लगी थी, जैसे नई घास, जमीन से निकलती हुई प्रतीत होती है।

हम बचपन से इतने साथ रहे थे, कि दोस्त ,भाई जैसे हो गये थे।

ये वो उम्र थी, जब लगता था कि सूरज आप ही के लिए उगता है और चांद तारे आपके चारो तरफ ही चक्कर लगाते हैं।

आप सबसे खास व्यक्ति है और ईश्वर पूरे दिन बस आप ही का ध्यान रखने में व्यस्त रहते है।

पहली बार तोते पिंजरे से आज़ाद हो रहे थे। हुकसा, जो हमारे टेम्पो ड्राइवर थे ,बड़े मन मोजी, मस्त मोला इंसान थे, वो हम सबको इक्कठा कर, टेम्पो में भर कर ले जाते थे।

नये नये चार टायर वाले मिनीडोर टेम्पो शुरू हुवे थे।

दाग द फायर के तेज आवाज में गाने - दिल दीवाना ना जाने कब हो गया।।।।हमें दीवाना बना रहे थे।

महेश्वरी स्कूल इंग्लिश मीडियम तो थी, पर कोहेड स्कूल न थी।

पहला दिन ,स्कूल के सामने ही सोहन लाल मनिहार (sms;लड़कियों की स्कूल), हज़ारो की तादात में लड़कियां।

 हमारे पुरानी स्कूल में भी लडकिया काफी सुंदर थी, पर इस बार इनको देख कर हमारे हृदय की केमिस्ट्री में जो बदलाव महसूस हो रहे थे, वो अद्भुत थे।

उनको देख हमारे होठ कब स्माइली से हो जाते थे, पता न चलता था।

अच्छी बात ये थी कि चेहरे बदलते जाते थे पर हमारी भावनाएं तठस्थ थी।

मैं ओर मेरे जैसा ही साथी ओंकार जब इन लड़कियों को देख कर, आपस मे आंखे मिलाते थे तो एक दूसरे की खुशी ,आंखों में देख पाते थे।

आंखे भी होती हैं दिल की ज़ुबान…।

यश चोपड़ा और शाहरूख की फिल्मों का रोमांस कितना realism पे आधारित है, ऐसी भावनाओ के बाद ही आप समझ सकते है।

हमें जिंदगी के कुछ अद्भुत ज्ञान से परिचय इसी उम्र में हुआ।

सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखता हैं, ये कहावत हमें पूर्ण रूप से अब ही समझ आयी थी।

बहुत कम उम्र में इकोनॉमिक्स का सबसे बड़ा सिंद्धांत समझ आया कि, डिमांड और सप्लाई कैसे आप को प्रभावित करते हैं।

इंटरवल टाइम में प्याऊ के पास खड़े होके, लड़कियों को निहारते हुवे, मां के हाथ के खाने का स्वाद ही अद्भुत लगता था।

सालो साल हमने पराठे और कैरी का अचार ही खाया था, ज्यादातर टिफिन में यही आता था, हमें कभी कोई शिकायत नही हुई।

स्कूल जल्दी पहुंचना, इंटरवल में लगातार गर्दन घुमाये एक दिशा में देखना, छुट्टी में फिर उसी स्कूल को देखना, श्रद्धा और भक्ति में एक योगी की क्या दशा होनी चाइये, उसके हम उदाहरण थे।

 हम अपने लक्ष्य को लेके इतने तल्लीन थे कि पढ़ाई पे हमारा ज़रा भी ध्यान न था।

बस मुश्किल ये थी कि पहले दिन का चेहरा हमें अगले दिन याद न रहता था।

पर जो भी सुंदर व मासूम चेहरा हमारे सामने पड़ता ,हम उसे उसी श्रद्धा व प्यार से निहारते थे। भेदभाव के हम पक्षधर न थे।

क्लास से भी बाहर लडकिया दिखती थी ; क्योंकि उनकी स्कूल रोड पार कर सामने ही थी।

वैज्ञानिक बनने की दिशा में कदम उठाते हुवे हम कही से आईना ले आये, रिफ्लेक्शन व रिफ्रैक्शन की थ्योरी पे बहुत काम किया पर सफलता हाथ न लगी।

वो वक़्त ऐसा रहा कि कुछ तरंगे, भावनाएं हमारे आसपास तेर रही हो, स्वर्ग का सा माहोल हो जैसे। जैसे जोधपुर में मनाली उत्तर आया हो। जबकि हमने मनाली के वादियों के बारे में सिर्फ सुना था,पर इश्क़ शायद वादियों जैसा ही खूबसूरत होता है।

संत रैदास जी ने सही फरमाया - मन चंगा तो कटौती में गंगा।

हमारी ऐसी श्रद्धा से भगवन प्रशन्न कैसे न होते।

और विज्ञान मेले का महेश हिंदी मीडियम स्कूल में शुभारंभ हुवा।

पूरे जोधपुर प्रदेश से लड़के लड़कियां इसमें भाग ले रहे थे.

हमे हमारी स्कूल की यूनिफार्म सबसे सुंदर लगती थी, सुथिंग ब्लू पेंट पर स्काई ब्लू विद वाइट लाइनिंग का शर्ट बड़ा फबता था।

पर आज येलो शर्ट,रेड फ्रॉक वाली स्कूल ड्रेस हमे बड़ी आकर्षित कर रही थी।

पूरी क्लास को विज्ञान मेला देखने को बोला गया। सीढिया चढ़ जब हम उस हाल में पहुंचे, आंखों की जैसे प्यास बुझ गयी। भक्त को जैसे भगवान का साक्षात्कार हुवा।

एक सूरत भक से हृदय में उतर गई। मासूम सा चेहरा,हमारी ही उम्र की 14,15 साल की लड़की, घुंघराले बाल, वही रेड ,येलो मिक्स ड्रेस।माधुरी दीक्षित सी

माधुरी दीक्षित पे फिर प्यार उमड़ आया।

फिर से?

हुवा यूं कि मेरे एक दोस्त ,जीतू जैन ने एक दिन मुझे कहा -बिना कपड़ों के लड़किया देखनी हैं। मेने ईमानदारी से 'हां' में सर हिला दिया। मेने पूछा कोनसी लड़की, उसने कहा बहुत सारी.

 मुझे लगा, ये जैन है, अमीर ही होगा, हम दोनों कुर्शियों पे बैठे होंगे और लड़कियां आस पास घूमेगी, हमें रिझायेगी। और क्या पता में किसी को छू भी पाऊँ।

बड़ी उम्मीदें लिए में गया, हम कुर्सी पे भी बैठे पर वो साइबर कैफे था, नए नए शुरू हुवे थे, में पहली बार ही गया और उसने देसीबाबा।कॉम नाम की साइट खोली, उसमे माधुरी को देखा।

उत्साह और तकलीफ दोनों थी। जिस माधुरी को हम प्यार करते है वो किसी के साथ ऐसा कैसे कर सकती है।

खैर

वो लड़की माधुरी दीक्षित सी लगी मुझे। और प्यार हो गया।

हम्म........

पीछे मुड़ के देखा तो ओंकार की आंखों में भी मूरत उत्तर आयी थी।

दोनों भाई साथ बेठे, दोनों की हालत एक सी थी। दोनों का भगवान एक था।

भगवान तो एक ही होता है।

अब दोनों ने नाम पता करने की ठानी। पर नेम प्लेट जहां ,टांग रखी थी उसे देखने की सीधी हिम्मत न थी।

मुझे हमेशा आंखों में देख के ही प्यार हुवा है, शरीर पे मेरी कभी निगाह न गयी। आंखों से पीना ही मुझे आता था। भाव हिलोरे लेने लगते थे। मन पंख सा हल्का हो उड़ने लगता था। मुझमे ऐसे ही प्यार की भूख थी।

बार बार उसके पास जाना, उससे बात करना, उसकी, हां जी ,हां जी, सुनना।

कोयल सी आवाज़ क्या होती है।प्रेम में ये उपमायें क्यों दी जाती है। सब समझ आ रहा था।

हम भाषाविद हो रहे थे।

उसका नाम 'रक्षा' था। वो भी हमें देख के कभी कभी हल्की सी हंसती थी पर अपनी हंसी संभाल लेती थी।

उसको पता था कि हम दोनों उसके पास आयेंगे, और उसकी सहेलियों को भी पता लगने लगा था।

मोहब्बत छुपाये नही छुपती साहब।

उस विज्ञान मेले में उसके प्रोजेक्ट के अलावा क्या क्या था, हमें आज भी याद नही पड़ता.

जब मौका लगता, हमारे पैर उसकी तरफ चल पड़ते थे।

सुख के क्षण मिनटों में गुजर जाते है, वो 3 दिन कब निकले पता ही न चला।

इंटरवल में बाहर आये तो पता चला कि रक्षा को फर्स्ट प्राइज मिला था और कुछ देर पहले वो चली गयी।

जिस समय ये खबर मिली हम समोसे खा रहे थे।

यकीन मानिये हमारा मन बहुत दुखी था, दिल टूट गया हो जैसे।ऐसी अवस्था मे भी हमें समोसे का स्वाद बराबर आ रहा था।

अपने अनुभव से ही इस सत्य की प्राप्ति होती है कि शरीर और मन अलग अलग होते है.

हम क्लास में गये और उसकी याद में नई कलर की गई बेंच पर R।S। लिख , आहें भरने लगे.

आँखे बंद करते तो उसका चेहरा और आवाज़ का प्रयत्क्ष दर्शन होने लगता.

हम वियोग में इतने व्याकुल थे कि अपनी टेबल के अलावा और भी टेबल पर इश्क़ जाहिर करने लगे।

हमें तब रुकना पड़ गया जब हमारी चाहत की वजह से दोस्त रोहित शर्मा को मार पड़ने लगी।

हाफ इयरली एग्जाम हुवे और हम अच्छे नंबरो से फेल हुवे।

में इंटेलीजेंट बच्चा था और ये सदमा मेरे लिए भारी था।

घर आते ही तेज़ आंसुओ की धारा बह निकली। घर वालो ने रिपोर्ट कार्ड देखा पर कुछ नही बोला, हौसला ही बढ़ाया।

पर आंशू न रुके और मुझे लता जी के डीप गाने का भी अर्थ समझ आया..

जो मैं जानती कि प्रीत करे दुःख होए

तो नगर ढिंढोरा पीटती कहती

प्रीत ना करियो कोई

हमारी मोहब्बत मुकम्मल तो न हुई, पर प्यार के निशां आज भी उन क्लास की बेंचो पर जरूर होंगें।

बस कुछ नाम बदल गए होंगे और कुछ चेहरे।

प्रेम रोग

                                                नाटक।    

                                                 प्रेम रोग

पर्दा उठता है।

एक आदमी कुर्सी पर बैठा किताब पढ़ रहा है.

उम्र करीब 45 साल,. शांत ,समझदार, ठहराव से युक्त व्यक्तित्व.

तभी उमंग की एंट्री होती हैं. असंतुष्ट और चिड़ा हुआ. 35 साल का युवा, 4 साल पहले ही शादी हुई है.

उमंग - यश भाई, अब में और नही निभा सकता. मुझे आज़ाद होना है. दीपिका की किटपिट अब नही झेल सकता. सास बहू में , में ही पिसता हूँ बस.

अब जिंदगी बोर हो गयी है.लाइफ में कोई उमंग, उत्साह, मस्ती है ही नही

काश में उस दिन इमोशनल न होता, रेणुका के साथ भाग जाता, घर परिवार की फिक्र न करता.

आज रेणुका का साथ होता तो जिंदगी कुछ और ही होती.

इंसान को उसी से शादी करनी चाहिए, जिससे प्यार हो.

यश - और तुम्हे कैसे पता लगेगा कि अब तुम प्रेम करने के लायक हो. पूरी उम्र ही निकल गयी तो?

उमंग - कैसे पता लगेगा क्या? एक नज़र में प्यार हो जाता है.

यश खड़ा होता है, उमंग को होल्ड करता है और आंखों में आंखे डाल, बोलता है

यश - उसे देखा और वक़्त रुक सा गया हो जैसे. उसकी आंखों की गहराई, उसी में डूब जाने का मन करता है.

उमंग - असहज होते हुवे - हां, हां वही

यश - उसके नर्म मुलायम होंठ, गुलाब से गाल, सुराही सी गर्दन, अपनी तरफ बुलाता जवान जिस्म..

उमंग - यश के हाथ हटाते हुवे - सिर्फ शरीर नही, प्यार भी तो होता है

ये सब छोड़ो, तुम बताओ, मेरी परेशानी का हल क्या है।

यश - देखो

उमंग - देखो?

यश - हां , देखो. तुम्हारे आस पास जो प्यार का बाजार है. कभी सिनेमा प्यार बेचता है. कभी कोई साधु संत बना व्यक्ति, प्रेम को भगवान का दर्जा देता है.

पर सत्य, सत्य ध्यान से, देखने से ही विदित होता हैं.

आओ तुम भी देखो, हम सब देखे.

उमंग और यश ,अपनी कुर्शियों पर बैठ जाते है. उनपे लाइट डिम हो जाती है. अंधेरे में बैठे दो दर्शक से दिखते है.

(प्रथम जोड़ा) लड़का ,लड़की. उम्र 19,20 साल.

लेफ्ट विंग से लड़की और राइट से लड़का , आते है. स्टेज के सेंटर में मिलते है.

पास से गुजरते हैं तो,लड़का रुक सा जाता है, उसकी नज़र लड़की पर से हटती ही नही. लड़की शरमा के हँस देती है.

वापस चलने को होते ही फ्रीज हो जाते है.

यश - अब इनका रोज मिलना हुआ. लड़की को ,कुछ ही दिन में पता लग गया कि लड़का बड़ा उतावला है. सौ जगह लड़की की बाते करने लगा. कई अनजान लोग लड़की को भाभीजी , भाभीजी कहने लगे. तो लड़की ने दूरी बना ली.

आगे देखो

लड़का, लड़की अनफ्रीज़ होते है.

लड़का चिल्लाते हुवे, लड़की के पास आता है.

लड़का - में तुमसे प्यार करता हूँ. तुम्हारे बिना जी नही सकता. या तो में खुद मर जाऊँगा या तुम्हे मार दूंगा.

लड़की - में जीना चाहती हूं. तुम्हे मरना हो तो मरो.

लड़का गुस्से में चाकू निकालता है. लड़की के पेट मे घोंप देता है.

लड़का डर के स्टेज के लेफ्ट विंग की तरफ भाग जाता है.

घायल लड़की भी लड़खड़ाते, राइट विंग से बाहर हो जाती है.

उमंग - हैरत से - ये क्या?

यश - अभी और भी देखो

(दूसरा जोड़ा) लड़का, लड़की, उम्र 27,28 साल.

लड़की लेफ्ट विंग से आती है, लड़का राइट विंग से. दोनों एक दूसरे को अच्छे से जानते है. पास आते है.

लडक़ी- तुम ऑफिस के नीचे ऐसे....., वैसे भी हमारी बाते ही हो रही है आजकल

लड़का- यार तुम रूम पे भी तो नही आ रही आजकल. (सिर खुजाते हुवे) वो अपने लिए सेफ्टी का सामान भी ले आया था. पूरा का पूरा बॉक्स ....

लड़की - हट.. तुम पहले ये बताओ, मुझमें क्या अच्छा लगता है.

लड़का - तुम बहुत सेक्सी हो.

लड़की - और

लड़का, लड़की को कामुकता से देखते हुवे

लड़का - कि, तुम बहुत सेक्सी हो.

लड़की - और

लड़का seduce होते हुवे

लड़का- तुम बहुत..... सेक्सी हो यार

लड़का लड़की दोनों फ्रीज

उमंग - एक्साइट होते हुवे - आगे क्या

यश - देखो

लड़का, लड़की अनफ्रिज

लड़की - आई एम प्रेग्नेंट, इडियट. बच्चा होने के बाद अपनी फैमिली से बात करोगे.

लड़का - अभी बच्चा क्यों, एबॉर्शन करवा लो, अभी तो तुम....

लड़की - हां, कि में ,सेक्सी हूं, इडियट,चिटर..

लड़का कंधे उचकाता हुवा, राइट विंग से आउट हो जाता है.

लड़की स्टेज के लेफ्ट तरफ जाती है और फंदा लगा लेती है. कुछ लोग उसे उतार, लेफ्ट विंग से लेके चले जाते है.

यश - और देखना है.

उमंग - कुछ नही बोलता. शांत खड़ा रहता है.

(तीसरा जोड़ा) आदमी जो कि बाप है और उसकी लड़की

लड़की गुस्से मे बाप की तरफ चल के आती है.

लड़की - डैडी, वो टैक्सी वाला है तो क्या, में उससे प्यार करती हूं.

मुझे आपकी होटल्स, फार्म हाउसेस नही चाहिए . आपकी इकलौती बेटी हूं, पापा.

मेरे लिए इतना भी नही कर सकते.

बाप - बेटा, में कैसे समझाऊं ?

बाप बेटी फ्रीज

उमंग - इसमे क्या गलत है. प्यार करती है.

यश - देखो

लड़की - पापा उसने मुझे धोखा दिया हैं. वो कोई प्यार व्यार नही करता. दिन भर दारू पीके पड़ा रहता हैं. बच्चो के सामने ,मुझे, मारता है पापा.

में उसे छोड़ आई पापा.

बाप - रुआंसा होते हुवे , बेटी को गले लगाता है- कोई बात नही बेटा.

बेटी का हाथ, पकडे हुवे, बाप बेटी लेफ्ट विंग की तरफ निकल जाते है.

उमंग- बेसब्र होते हुवे - अरे तो प्यार किधर है.

यश उसे स्टेज की तरफ देखने का इशारा करता है.

(चौथा जोड़ा) पति पत्नी

पती - अपनी बच्ची को गोद मे उठाए, उससे बाते कर रहा है

पति - अरे यार एक घंटा हो गया, आफिस भी जाना है, अभी तक शेव भी नही की. तुम्हारा काम ही खत्म नही होता.

पत्नी - हां तो छह बजे उठा करो. पड़े रहते हो 8 बजे तक तो.
          चाय भी चाहिए, खाना भी चाहिए, बच्ची को भी रखलो.

पति - अरे ठीक ठीक हैं. अब गुड़िया का संभालो.

पत्नी बच्चे को लेफ्ट विंग की तरफ सुला आती है.

तभी पांच सेकंड के लिए फ्रीज , फिर रिलैक्स

पति- इस बार ना मनाली जाएंगे. कितना टाइम हो गया ना, कही गए ही नही.

पत्नी - कितना ख़र्चा आएगा.

पति - 40-50 हज़ार

पत्नी - इतनी सेविंग हैं, हमारे पास?

पति- अरे कर लेंगे, इधर उधर से, तुम्हारे लिए जान हाजिर है.

तभी बेटी की एंट्री होती है.

पापा, अब में बस से कॉलेज नही जाऊंगी. कैसे कैसे लोग होते है, घूरते हैं, गन्दे तरीके से.., मुझे स्कूटी चाहिए, नही तो कल से कॉलेज जाना बंद.

बाप बेटी के सिर पर हाथ फेरता है.

बाप - कितने की आती है ये स्कूटी

बेटी - 70 हज़ार की

एक पल को पति पत्नी एक दूसरे को देखते है.

बाप बेटी का हाथ पकड़ता है और मुस्कुरा के कहता है.

चल बेटा, स्कूटी लेके आते है.

बाप बेटी लेफ्ट विंग की तरफ निकलते है, पत्नी राइट विंग की तरफ निकलती है.

कुछ दूरी बाद ,पति पत्नी फ्रीज हो जाते है, बेटी आगे निकल जाती है.

5 सेकंड बाद रिलैक्स
बुजुर्ग आदमी को उसकी पत्नी दवाई व पानी का ग्लास देती है.

पति - अरे नही, नही

पत्नी - नही क्यों ? खाना खाने के बाद ,दवाई लेनी ह ना. 
कल भी आपका ब्लड प्रेशर बढ़ा हुवा था.

आदमी - बेटी का तो समझ आता है, शादी हो गयी है. तुम्हारा नालायक लड़का एक साल से घर नही आया.

पत्नी- बैंगलोर बड़ा शहर है. समय नही मिलता होगा उसको.

आओ आपको बाहर घूमा लाऊं.

पति, पत्नी को बड़े प्यार से देखता है. दोनों एक दूसरे को देखते हैं . पत्नी हाथ पकड़, पति के साथ लेफ्ट विंग की तरफ निकल जाती है.

उमंग और यश पे लाइट आती है.

उमंग - मुझे कुछ काम याद आया, में आता हूँ वापस.

यश अपनी किताब ले, हँसते हुवे, राइट विंग की तरफ निकल जाता है.

पर्दा गिरता है.

प्प्यार

आज का प्यार

मेरा मानना है कि प्रेम हो जाता है, ऐसा नही है न ही किया जाता है.

प्रेम निभाया जाता है.



नेह निबाहन कठिन है, सबसे निबहत नाहि

चढ़बो मोमे तुरंग पर, चलबो पाबक माहि। कबीर 



इसे ऐसे समझे

 पहली नज़र में ही कोई मन को अच्छा लगता है. वो इंसान की पसंद या दो इंसानों की केमिस्ट्री हो सकती हैं.

आपकी केमिस्ट्री 10 लोगो के साथ भी अच्छी हो सकती है.

प्रेम वही कर सकता है जो स्टेन्ड ले सकता हैं. आपके साथ खड़ा हो सकता है.

जो प्रेम करते है और कहते है कि वो मजबूर है, नही तो ये कर लेते, वो कर लेते और इमोशनल ड्रामा में उलझे रहते है.

वो अपना और दूसरे का नुकसान करते हैं.

आप साफ साफ क्यों नही कहते कि आप को दो थप्पड़ खाने में और अपने परिवार, पड़ोसी और समाज मे बदनाम होने का डर है.

जब तक चोरी चोरी चुपके चुपके आप को इमोशनल सैटिस्फैक्शन मिल रहा था, तब तक कोई परेशानी नही थी. अब जब साथ खड़े होने की, सामना करने की बात आई है तो जिम्मेदारी उठाने से डर रहे हैं.

असल मे आप डरपोक है और प्रेम आपके लिए हैं ही नही. 

रोते रहने को ,दुखी होने को , तड़पने को और अफसोस करने को प्रेम नही कहते हैं.

बॉलीवुड की प्यार की थ्योरी से बाहर निकले.

"वीर भोग्य वसुंधरा". वीर व्यक्ति ही इस संसार मे आनंद ले सकता है. कायर के लिए क्या सुख.

मुझे लगता है, प्यार सिर्फ संसार के एक प्रतिसत से भी कम लोगो के लिए है. सब इसके काबिल ही नही.

 स्वर्ग पाने के लिए या कुछ बड़ा पाने के लिए ,कुछ काबिलियत,और कुछ गुण आवश्यक हैं.

 प्रेम तो आपकी नजर में परमात्मा या स्वर्ग समान ही होगा.

वैसे ही प्रेम के लिए भी काबिलियत चाहिए.

मजबूर लोग कुछ नही कर सकते. मजबूर लोगो को प्रेम नही करना चाहिए.

वैसे भी आपके हिसाब से भी नब्बे प्रतिशत लोग, बिना प्रेम के ही साथ मे रहते है तो आप भी उनके साथ हो जाए.

सोचिए महाराणा प्रताप, गोबिंद सिंह जी, शिवाजी महाराज, दुर्गादास राठौड़, राजसिंह जी मेवाड़ मजबूर होते तो क्या होता. ये सब विपति में और उभर के आए और सही रास्ते पर ही बढ़े.

आप अपनी शारीरिक इच्छा व इमोशनल नीड्स पूरी कर रहे है ,तो उसके लिए, ईमानदार रहे. सामने वाले को बताए कि बस इतनी ही जरूरत है. उसके आगे प्रेम वरेम कुछ नही, इससे आगे बस का नही.

अपने आप से ईमानदार रहे.

या यूं कहें कि आप को रोमांस( romance) पसंद है. लव की जिम्मेदारी आप नही उठा सकते.

लड़को की और परेशानी है. "यार लड़की ने आई लव यू बोल दिया. अब तो उससे प्यार करना ही पड़ेगा". 

ये वो लोग है जो प्यार भी मजबूर हो के करते है. 

या फिर आप काम चला रहे है कि अभी इससे कर लेते है, आगे कोई और सुंदर आएगी तो उससे कर लेंगे.

ध्यान से समझिए आप सिर्फ कुछ मानसिक व शारीरिक सुख प्राप्त करने के मूड में हैं, उसमे कोई बुराई भी नही पर इसको प्रेम का नाम दे, सामने वाले को धोखे में रखना भी तो एक अपराध है.

क्या आप साफ साफ कह नही सकते ? या साफ कहने से आपके इरादे पूरे नही होंगे.

प्रेम बेईमान, मौकापरस्त, डरपोक और गैर जिम्मेदार लोगों के लिए नही है, इस और कदम न बढ़ाये.

प्रेम का गुण लड़का, लड़की दोनों में होना चाहिए. किसी एक मे होने से भी कुछ न बनेगा.

इसीलिए शास्त्र कहते है, कुपात्र को दान देने से दाता नष्ट हो जाता है.

गलत व्यक्ति पर दया, प्रेम, ज्ञान, धन लुटाने से, आप ही नष्ट हो जाते है.

अपने अहंकार को, अपने आप को, अपनी इच्छाओं को पिघलाना पड़ता है. पूरा चरित्र इंसानों को बदल जाता है. तब कहीं प्रेम की ज्योत प्रवेश करती है, आप में. प्रेम को पूर्ण इसीलिए कहते है क्योंकि उस अवस्था मे आप सिर्फ देने के भाव मे होते है, आप स्वयं संतुष्ट भाव मे होते है, आपको कुछ चाह ही नही होती.

स्वयंम प्रेम की चाह भी नही.

चाह गयी चिंता मिटी, अब हंसा बे परवाह
जिसको कुछ न चाहिए, वो ही शहंशाह



कबीरा यह घर प्रेम का,खाला का घर नाहीं,

सीस उतारे भुइं धरे,तब पैठे घर माहीं !! कबीर


एक बजे

एक कमरे में चार दोस्त रात को एक बजे, बैठ के दारू पी रहे हैं। सब कॉलेज फ्रेंड हैं। पहला लड़का, लड़की लिव इन मे रहते हैं, दो दोस्त आज उनके यही रुक गए हैं।

पहला लड़का - यार इस रूम में ना पहले कोई किरायेदार थे। एक औरत थी उसको करंट लग गया, इसी रूम में, चिपक के मर गयी। मकान मालिक ने बताया।

दूसरा लड़का - नही यार

लड़की - हां, हां, आंटी ने हम दोनों को बताया था।

तीसरा लड़का ( ज्यादा पिआ हुआ, थोड़ा बहका हुआ) - ह्म्म्म भूत होते हैं, हां भूत होते है

दूसरा लड़का - (विक्रम जो सबका classmate था, कुछ ही दिन पहले रोड़ एक्सीडेंट में expire हो गया था) - यार अपन सब का जिगरी , विक्रम कितनी जल्दी चला गया। उसकी आत्मा को बुलाये क्या? अगर मन से ध्यान लगा के याद करो, अगर उनकी आत्मा भटक रही है तो वो बात कर लेती है। मैने पढ़ा है।

पहला लड़का - पागल हो गए हो क्या? रात की एक बजी है। फालतू के काम नहीं करने।

तीसरा लड़का - हां, बुलाते हैं, बुलाते हैं।

लड़की - यार में भूत वूत को तो नहीं मानती, पर इंटरेस्टिंग है। ट्राई करते है ना

लड़की पहला लड़के का हाथ पकड़ बैठ जाती है, तीसरा लड़का भी हाथ पकड़ लेता है। दूसरा लड़का खिड़की में रखी मोमबत्ती उठाता है, जला के बीच मे रख देता हैं, लाइट बंद कर देता है। सब एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए प्रार्थना कर रहे है।

सबकी आंखे बंद है। कुछ देर बाद

तीसरा लड़का एकदम से लुढ़क जाता है। सब थोड़ा सा डर जाते है।

पहला लड़का - इसको क्या हुआ।

लड़की - ज्यादा पी थी, नींद आ गयी होगी।

दोनों दूसरे लड़के को देखते हैं।

दूसरा लड़के की गर्दन झुकी हुई, अपने पैरों की तरफ देख रहा हो जैसे, पायल ठीक कर रहा हो जैसे, हल्का सा हँसता सा, गुनगुनाता हुआ

छन छनन न छन, छन छनन न छन

पहला लड़का - यार नाटक मत करो।

दूसरा लड़का अब गाना गाते हुए, खड़ा होता है। लड़की की तरह अंगड़ाई लेते हुए

आजा आजा रे पिया

आज माने ना जिया

पहला लड़का- डर से चीख निकल जाती है। घिसता हुआ पीछे की तरफ खिसकता है।

दूसरा लड़का, पहले लड़के की तरफ बढ़ता हुआ, गाना जारी रखता है।

बाहों में ले ले मुझे

सोचता है क्या, ओ जाने जा

पहला लड़का डर के पीछे दीवार से लग जाता हैं, गुमसुम सा, खामोश सा हो बस दूसरा लड़के को एकटक देखता रहता हैं।

इसी बीच मे लड़की भाग के जाती है और रसोई से चाकू ले आती हैं, वो दूसरे लड़के की तरफ चाकू दिखाते हुए

लड़की - ( डर और गुस्से के साथ) - मज़ाक मत कर, नहीं तो मार दूंगी ,सच में

दूसरा लड़का - जोर से हँसता है। कुछ देर हँसने के बाद- मज़ा आ गया, फट्टू सालों...

लड़की - बेवकूफ़

दूसरा लड़का ,लड़की, पहला लड़के के पास जाके, उसको हिलाते है। पर वो उसी गुमसुम हालत में, शांत...


नाई की दुकान

एक साहब बाल कटा रहे है. एक मैडम भी बैठी हैं, उनको थ्रेडिंग करानी है. कोरोना की वजह से स्टाफ कम हैं. मैडम अखबार पढ़ रही हैं.

साहब - "तेरे तो धंधे का खूब नुकसान हुआ होगा."

नाइ - "हां, साहब कोरोना ने तो बर्बाद कर दिया. 50 परसेंट धंधा डाउन है".

साहब -" अरे हमारे भी हालात खराब ही है. पूरे 20 लाख का नुकसान हुआ है. ये तो बस चला रहे हैं जैसे तैसे."

नाइ - "अरे साहब आपको क्या फर्क पड़ता हैं."

तभी लिखमाराम जो कि गरीब है, दुकान में आता हैं. सफाई कर्मचारी , झाड़ू लगाने वाला हैं.लिखमाराम साहब को देख नमस्कार करता है.

साहब - "और भाई लिखमाराम कैसा है".

लिखमा - "बस साहब आप की मेहरबानी है."कह कर नीचे बैठता है.

मैडम - अरे आप नीचे क्यों बैठे है. पुरी बेंच तो खाली है. बैठ जाइए.

साहब- "अरे हां लिखमा, ऊपर बैठ जा... ( लिखमा खड़ा होता ही है कि) , चल कोई नही, ये तो सम्मान हैं तेरा......

लिखमा नीचे ही बैठ जाता है."

मैडम कुछ सोच कर, फिर अखबार पे ध्यान देती है.

साहब-( तेज़ आवाज़ से)" एक तो सरकार ने झूठ फैला दिया. कोरोना सोरोना सब अफवाह है. सरकार को फायदा हैं. लोग भी डरपोक हैं, मास्क लगा के घूम रहे हैं, एक दूजे से मिलना बंद कर दिया हैं. इसी से सब के धंधे बर्बाद हो गए हैं. बहुत बड़ा घोटाला है ये.."

(बात सुन लिखमाराम, अपना मास्क उतार उपर वाली जेब मे रख लेता हैं.)

नाइ -" सही बात साहब. हर कोई इतना थोड़ी जानता है. ( लिखमा को देखते हुवे) ये सब तो भेड़ चाल वाले है."

मैडम - "अरे सर, कितने देश घोटाले करेंगे. पूरी दुनिया मे वायरस फैला हैं. बास बस इतनी है, नया वायरस हैं, सो जैसे जैसे रिजल्ट आ रहे है, वैसे ही जानकारी में बदलाव आ रहे है.'और मास्क लगाने में क्या बुराई, और भी फैलने वाली बीमारी से बचाव होता है."

साहब - "अब आप लेडीज को भी क्या समझाना."

मैडम - "क्या मतलब?"

साहब - "कहने का मतलब. मैं बिना मास्क के कई रिस्तेदारो से मिला हूं, जिनको कोरोना हुआ है. कईयों के साथ बैठ खाना खाया है. एक बार तो कोरोना वार्ड में जाके मास्क निकाल दिया. 2 घंटे घूमता रहा. वो तो डॉक्टर नाराज होने लगे तो फिर लगाना पड़ा."

नाइ - "क्या बात, वाह"

मैडम कुछ बोलती उसके बीच मे ही लिखराम ने अखबार मांगा. अखबार लेते ही, लिखमाराम को 2 जोर से छींक आयी.

कुछ छीटें साहब के मुंह पर पडे.

साहब - ( गुस्से में) - "पागल हो गया है क्या? मास्क क्यों नही लगता. अनपढ़ गंवार साले."मैडम हैरानी से साहब को देखती है.

साहब -" नाइ को- कितने रुपये हुवे तेरे"

नाइ - "80 साहब"

साहब 100 का नोट देता है.

नाइ - "खुले नही है साहब, बिस रुपया अगली बार ले लेना."

साहब -" सब मुझसे ही कमाएगा क्या?"लिखमाराम जेब से खुले 20 रुपये निकाल के देता है.

साहब गुस्से में उससे रुपये ले, दुकान के बाहर निकल जाता है.

मैडम हैरानी से उसको जाते हुवे देखती रहती हैं.


मान

एक विचार हममे है और बहुत गहरा है कि हम बाकी लोगों से थोड़े ज्यादा समझदार है. दूसरी तरह से कहे तो आपको अभिमान है कि आपके पास दुसरो से ज्यादा ज्ञान हैं. और आपने ये तर्क की कसौटी पर तोल के देख लिया हैं और आपको बात ठीक भी लगती है.

क्योंकि आप जिनसे मिले हो, उनकी परेशानियां आपने हल की है और उन लोगो ने भी आपको कृतज्ञ होते हुवे अच्छा आदमी, गुरु और भगवान तक कि उपाधि दी हैं.

आप जानते हो कि आप कईयों की परेशानियां हल कर सकते हो. क्योंकि आप अपने आप को भी हैंडल कर सकते हो.

आप अपने जैसे ही लोगो से मिलते हो और आप सामने वाले कि तारीफ भी करते हो, वो भी आपकी तारीफ करता हैं. दोनों ही एक दूसरे को बुद्धिमान, हाई स्टेट ऑफ माइंड मानते हो.

अब जिनके मस्तिक के स्तर नीचे हैं ,उनके साथ उठ बैठ नही पाते. जो नीच, रेपिस्ट, हत्यारे हैं, वैसे आप नही है, इसका संतोष आपको है.

आप में एक नही, बहुत काबिलियत है. आप जहां बुद्धि से तेज़ है, वहीं आप शरीर से शक्तिशाली भी. उसके अलावा भी जिस भी फील्ड में हाथ डालते हो, वहां दुसरो से अच्छा करते हो.

आप अपनी पिछली जिंदगी को भी देखते है तो आपको अपने अनुभव ज्यादा गहरे लगते हैं और आपने जिंदगी में बहुत कुछ देख लिया है.

करीब करीब आप अपने को कृष्ण के समान, सोलह कलाओं से पूर्ण ही मानते हो.

आप परमात्मा के शुक्रगुजार भी हो कि उन्होंने आपको सही गलत की समझ दी है और नेक रास्ता दिखाया है.

साधु संतों की भी आपकी संगत है.

पर क्या ये सच्चाई है या आप ऐसा अपने बारे में सोचते है.

इतना सब अनुभव के बाद भी जिंदगी आपको नीरस क्यों लगती है.

आपका ज्ञान जिसने आप को बदल के रख दिया, क्या वो आपके अंदर से आया था

या

फिर अनुभवी इंसानों ,किताबो और गूगल से आपके पास आया और आप ने समझ लिया और जीवन मे उतार लिया.

चलो समझ तो आपकी अच्छी है. ये तो आपकी खुद की ही है?

अगर आप उस बच्चे की तरह पैदा होते जिसे आजकल स्पेशल चाइल्ड कहा जाता है. तब क्या होता?

यानी समझ भी प्रकृति से मिली है.

अगर शरीर मे कोई ऐब रह जाता, एक आंख, एक पैर, एक हाथ छोटा बड़ा तो क्या आप इतने ही शक्तिशाली होते.

इसलिए दुर्गादास, गुरु गोबिंद सिंह जी, शिवाजी महाराज व्यक्तिगत वीरता के गुलाम नही थे.

गुरु गोबिंद अपने बुद्धि बल व शारीरिक बल को कभी भी अपना न मानते थे, वो आंतरिक तोर से प्रभु ,प्रकृति जो भी आप कहे,उसके सामने नतमस्तक थे.

आपके पास जो ज्ञान है वो ही असल ज्ञान है इसका भी आपको मान है क्योंकि वो आपके आदर्श पुरुष, धर्म या परिवार से आपको मिला हैं.

पर क्या आपको फ़टे जूतों में दस तरह की सिलाई करनी आती है. या एक गांव का ग्वार अपने 100 ऊँटो के पैर के निशानों में अपने खोये ऊंट के पैर के निशान पहचान लेता है. 30 साल ऊंट चराते हुवे उसके सेन्सेस( इन्द्रिय समता) विकसित हुवे है.

एक आदमी बड़े तेज़ चाल में चल रहे हारमोनियम को सुनने मात्र से, बिना एक सेकंड की देर लगाए, सारे सुर गाके सुना देता है.

एक छोटा बच्चा भी कई परिस्थितियों को आपसे अच्छे ढंग से संभाल लेता है, आप अब गुस्से और जानकरी के बोझ में वो लचीलापन खो चुके हो.

लेकिन आपको आपका ज्ञान ज्यादा महत्वपूर्ण लगता है क्योंकि वह जीवन की वास्तविकताओं और आध्यात्मिकता से जुड़ा हुवा है. क्या ऐसा नही है?

आप अपने आप को शिवाजी महाराज की तरह मानते हो, आपको लगता है जैसे उनका ज्ञान, उनके भाव आप मे उतरे हो. और क्या की कोई आंगिक के शिक्षक आपको कहे कि आपकी आंगिक भाषा थोड़ा लड़की या किन्नर की तरह है.

क्या 100 लोगों की नज़रों में आपकी इमेज अलग अलग नही हो सकती. आपको कोई बोले भले न पर मन ही मन मानता हो कि आप एक नीच ,आलसी,मतलबी और मूर्ख इंसान हो. जो कि स्वयंम आप अपने बारे नही मानते.

लेकिन आप इतना तो मानते हैं कि आपके जीवन मे बहुत गरीबी और तकलीफे आयी जिसने आपको और मजबूत बनाया, है ना?
इसके लिए तो ताली होनी चाहिए.

पर कितने लोग है जो कॉलेज, स्कूल तक भी पहुंच नही पाते. उनकी माएं कचरा चुग चुग के उनको जिंदा रख रही हो.

और क्या जो गरीबी कोई मापदंड ही न हो? जैसे बुद्ध, महावीर, राम, कृष्ण...

तो फिर तुम क्या हो.

एक नाली में दारू पीके सोये आदमी में और आप मे रत्ती भर का फर्क नही हैं.

कुछ तो फर्क हैं, नही?

हां हैं, जीवन की संभावनाओं का फर्क हैं.

इसलिए विवेकानंद हमेशा आशावादी व अति उत्साही थे. क्योंकि जीवन मे संभावनाएं है.

जिसको आप ज्ञान दे रहे हो ,वो कल आपका गुरु बन के बैठा होगा और जिसको आप गुरु मानते हो वो 70 साल की उम्र में किसी बच्ची के बलात्कार के जुर्म में सजा भुगत रहा होगा.

पर एक बात तो हैं, आपने रास्ता सही चुना है , नही?

जरा सोचिए ह्त्या तो आप भी करना चाहते थे, किसी के साथ जबरदस्ती भी करना चाहते थे. आप सोचने में लगे थे और किसी ने कर दिया.

और जो हल्का सा फर्क आप मानते हो ,वही बस आपका मान, अहंकार घमंड हैं, उसको विदा हो जाना चाहिए.

फिर आप सबसे बात कर सकते है. सबके दिल के करीब जा सकते है. फिर आप दोस्त हो सकते है.

इसलिए बुद्ध नतमस्तक हो अंगुलिमाल के पास जा सकते है. आपको क्या लगता है ,उन्होंने एक हत्यारे को ज्ञान दिया और दस मिनट में वो आदमी बदल गया. क्या ऐसा हो सकता है ? या क्या आपके साथ ऐसा होता है?

अंगुलिमाल से अंगुलिमाल ही मिला था और कुछ बात हो गयी थी बस... और दो बुद्ध साथ हो गए थे.

राम केवट, बन्दर, भालुओं के साथ केवट बन्दर भालू ही थे. यह तरलता , शीतलता तब ही आती हैं जब आप कुछ होते नही है.

अब क्या करे में और आप तो समझदार भी है और अच्छे इंसान भी.

Note - लेख का अर्थ बिल्कुल भी नही है कि आप कुसंगति में रहे. बस ये हैं कि आप अपने को और गहरा जान सको.




मुझे जानो

हर इंसान अपनी बातें, खुशियां, दुःख शेयर करना चाहता है. बात करके ही इंसानों को संतुष्ठी मिलती हैं. ये बेहद जरूरी हैं , आधे इंसानों के मानसिक रोग और दुख दूर हो जाए अगर ,इंसान इंसान से बात करे.लेकिन मैं यहां कुछ और कहना चाहता हूं. हम कहीं न कहीं इस चीज में उलझे रहते हैं कि लोग आपको ऐसे जाने.आपके बारे में आपकी एक राय है और आप अक्सर "आप कैसे हैं" , ये लोगो को डायरेक्ट या इनडाइरेक्ट तरीके से लोगों को जाहिर करते हैं.

इसमे समस्या ये है कि आप बताना चाह रहे हैं कि आप कितने ज्ञानी, अनुभवी या सीधे इंसान हैं. आप चाहते हैं की लोग आपको वैसे ही जज करे या आपको माने जो आप अपने बारे में सोचते हैं.दो दिन वो मान भी ले, लेकिन तीसरे दिन आपकी हरकत या व्यवहार बदलता है या ऐसे ही उनकी राय आपके बारे में कुछ और हो जाती हैं तो आप क्या करेंगे. आप अपनी इमेज को फिर से उनको समझाएंगे.या जो इमेज आपने पहले बना दी थी, वापस खुद वैसा ही व्यवहार करेंगे.

ये ऐसा ही है जैसे खुद को जंजीरो में जकड़े रखना.इससे क्या फर्क पड़ता है कि दूसरा आपके बारे में क्या सोचता है. जो आपके अपने है उन्होंने आपकी लाख बुराई के बाद भी आपका साथ दीया है और कई गुणों के बाद भी कईयों ने आपका साथ छोड़ दिया.हर आदमी की अपनी ही राय होती हैं, गलत या सही जो भी हो. इसलिए आप लोगों की नज़रों में अपने आप को देखना छोड़े और वो करें जो आपको खुशी देता है.

लोगों की महापुरुषों के बारे में भी अपनी निजी राय होती हैं या थी.
आदर्श महापुरुष गुरु गोबिंद सिंह जी जब सो रहे थे तब उन्ही के दो अंगरक्षकों पठानों ने उनपे आक्रमण किया, निसंदेह उन्हें गुरु गोबिंद सिंह जी खराब या चालबाज़ लगे होंगे. उनकी राय पक्की हो गयी तभी ऐसा कर पाए होंगे.

मरने के बाद लोग महापुरुषों को भी भुला देते हैं, आप और में तो कुछ भी नही.

सो आज़ाद होके जियो और खुश रहो.

लोगों से खूब बातें करो, छोटे बड़े सबसे मिलो बिना ये सोचे कि आपके बारे में क्या राय बन रही हैं.

रिश्ता तेरा मेरा इंसानियत का ही अच्छा है.

नामो के रिश्तों को रोज अखबारों में तार तार होते देखा है.